Saturday, July 17, 2010

"पुर पुतइ पुरै पुर"

            ह  एक कुमाऊ  की पुरानी लोक कथा है| किसी गांव मे  एक गरीब परिवार रहता था | परिवार क्या था एक माँ थी एक बेटी थी| बेटी का नाम पुतइ  था| दोनों माँ बेटी जंगल से फल फूल तोड़  कर उन्हें बेच कर अपना गुजारा चलाती थीं| एक दिन माँ जंगल मे फल फूल तोड़ने गई |बेटी को घर की रखवाली के लिए घर मे छोड़ गई| घर मे पहले दिन के कुछ फल पड़े हुए थे| माँ जंगल को जाते समय कह गई थी कि इन फलों का ध्यान रखना| इन फलों को कोई खा ना जाए| बेटी ने ऐसा ही किया| चिड़िया तोते आदि उड़ाती रही| शाम  को जब माँ घर आई तो देखा कि फल पहले से कम हैं क्यूंकि फल सूख चुके थे| सूखने के बाद वह कम हो गए| माँ ने गुस्से में आकर बेटी के सर में डंडा दे मारा और बेटी की मौत हो गई| रात को खूब बारिश होगइ उस से उसके फल भीग गए भीगने के बाद फल फिर से उतने ही हो गए |यह देख कर माँ को बहुत पछतावा हुआ कि फल तो पूरे ही हैं|मैंने बगैर सोचे समझे ही अपनी बेकसूर बेटी को मार डाला|और वह कहने लगी "पुर पुतइ पुरै पुर " अर्थात वह अपनी बेटी से कहती है कि बेटी फल तो पूरे के पूरे हैं| मैंने ही तुझे गलत समझ कर मार डाला है|वह इस गम को सहन नहीं कर सकी और पुर पुतइ पुरै पुर कहते हुए उसके भी प्राण निकल गए| कहते हैं अगले जन्म  मे उसने  घुघूती (फाख्ता)  के रूप मे जन्म  लिया और वह आज भी इधर उधर पेड़ों मे बैठ कर "पुर पुतइ पुरै पुर" पुकारती फिरती है| इसलिए बगैर सोचे समझे कोई काम  नहीं करना चाहिए|
                                                                      के: आर: जोशी  (पाटली)

Monday, July 12, 2010

"आत्मा की आवाज"

            किसी गांव में  एक गरीब ब्राह्मण  रहता था | ब्राह्मण  गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था|परमात्मा में  आस्था रखने वाला था | वह रोज सवेरे उठ कर गंगा में  नहाने जाया करता था| नहा धो कर पूजा पाठ किया करता था| रोज की  तरह वह एक दिन गंगा में  नहाने गया नहा कर जब वापस आ रहा था तो उसने देखा रास्ते में  एक लिफाफा पड़ा हुआ है| उसने लिफाफा उठा लिया| लिफाफे को खोल कर देखा तो वह ब्राह्मण  हक्का बक्का रह गया लिफाफे मे काफी सारे नोट थे| रास्ते में  नोटों को गिनना  ठीक न समझ कर उसने लिफाफा बंद कर दिया और घर की तरफ चल  दिया| घर जाकर उसने पूजा पाठ करके लिफाफे को खोला | नोट गिनने पर पता चला की  लिफाफे मे पूरे बीस हजार रूपये थे| पहले तो ब्रह्मण ने सोचा कि भगवान  ने उस की सुन ली है| उसे माला माल  कर दिया है |
             ब्राह्मण  की ख़ुशी  जादा देर रुक नहीं सकी| अगले ही पल उसके दिमाग  में  आया कि हो सकता है यह पैसे मेरे जैसे किसी गरीब के गिरे हों| सायद किसी ने अपनी बेटी की शादी  के लिए जोड़ कर रख्खे हों| उसकी आत्मा ने  आवाज दी कि वह इन पैसों को ग्राम प्रधान को दे आये| वह उठा और ग्राम प्रधान के घर की तरफ को चल  दिया| अभी वह ग्राम प्रधान के आँगन  मे ही गया था उसे लगा कोई गरीब आदमी पहले से ही ग्राम प्रधान के घर आया हुआ है | वह भी उन के पास पहुँच गया| गरीब आदमी रो-रोकर प्रधान  को बता रहा  था की कैसे कैसे यत्नों से उसने पैसे जोड़े थे पर कहीं रास्ते में  गिर गए थे| सारी कहानी सुन ने पर गरीब ब्रह्मण ने जेब से पैसे निकले और उस गरीब आदमी को देते हुए कहा कि मुझे ये पैसे रास्ते में  मिले हैं| आप की कहानी सुन ने के बाद अब यकीन हो गया है कि ये पैसे आप के ही है| पैसे देखते ही गरीब के चेहरे पर रौनक  आ गई | गरीब ब्राह्मण  ने कहा पैसे गिन लीजिये| गरीब आदमी ने ब्राह्मण  का धन्यवाद करते हुए कहाकि पैसे तो पूरे ही हैं इसमे से में  आप को कुछ इनाम देना चाहता हूँ | गरीब ब्रह्मण ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया| ब्राह्मण  अपने घर को वापस  आ गया उस को इस बात की ख़ुशी थी कि  उसकी आत्मा की आवाज की जीत हुई है |
                                                       के: आर:  जोशी. (पाटली) 




 

Monday, July 5, 2010

सात बहनें

            क  राजा था | उस की सात बेटियां थीं| एक बार राजा ने अपनी सातों बेटियों को बुलाकर पूछा कि तुम किस के किस्मत का खाते हो| छः बड़ी बहनों ने कहा कि पिताजी हम तो आप का दिया हुआ ही खाते हैं तो आप की ही किस्मत का खाते हैं| सब से छोटी बहन ने कहा कि सब अपनी अपनी किस्मत का खाते हैं में भी अपनी किस्मत का खाती हूँ| राजा ने कहा कि मुझे बदनसीबी ने घेर लिया है इस लिए आप को घर छोड़ कर कहीं और जाना होगा|  यह कह कर राजा ने उन के रास्ते के लिए कुछ खाने  को बांधा और छः बड़ी बेटियों को दे दिया| छोटी बेटी को कुछ  चावल के दाने दे दिए| सातों बेटियां घर से अनजान  डगर की और चल  दीं| चलते चलते उन्हें प्यास लग गई| उन्होंने काफी इधर उधर पानी ढूढने की कोशिश की पर कहीं पानी नहीं मिला| थक हार के एक पेड़ के नीचे बैठ गई और छोटी बहन से कहा कि अब तू जाकर दूसरी तरफ पानी ढूढ़ |छोटी बहन ने आज्ञा का पालन करते हुए कहा ठीक है आप आराम करो मे ढूढ़ कर आती हूँ| थोड़ी ही दूरी पर उसे पानी दिखाई दिया| उसने अपनी प्यास बुझाई और फिर बहनों को आवाज दी कि यहाँ पर पानी है छहों बहनें पानी के पास पहुँच गई और अपनी प्यास बुझाई, तब छोटी बहन ने कहा कि थोडा मेरे को भी पीने दो तो बड़ी बहनों ने उसे झिडक दिया वह चुप हो गई क्यों कि उसने तो पहले ही पानी पी  लिया था| अब उनको भूख भी लग आई तो उन्हों ने खाने की पोटली खोली, देखा तो सारा खाना खराब हो चुका था  अब बारी आई सब से छोटी की |उसने जब अपनी पोटली खोल कर देखा तो उसमे चावल की जगह खीर बनी पड़ी थी| उसने थोडा थोडा सभी बहनों को दिया जो बच गया खुद खालिया|
          आगे चल कर उन्हें रात होने को आई तो थोड़ी  दूरी पर कुछ घर दिखाई दीए| बड़ी बहनों ने छोटी बहन से कहा कि  हम बहुत थक गए है तुम जाकर देखो वहां कौन रहता है और हमे रात रहने के लिए जगह मिलेगी? बेचारी छोटी बहन वहां गई और देखा की उन घरों में  कोई भी नहीं है | घर भी सात ही हैं | उसने छः घरों की सफाई की और सातवें घर मे कूड़ा डाल आई क्योकि सातवे घर में सभी साधन थे| घर का सारा सामान और घोडा भी था | वह वापिस अपनी बहनों के पास गई और कहा कि घर तो खाली हैं और घर भी सात ही है | छः घर तो में साफ कर आई हूँ और सारा कूड़ा सातवे घर में  डाल आई हूँ| बड़ी बहनों ने कहा कि हम सातों एक-एक घर ले लेते हैं | गन्दा घर तुम खुद रख लो तुम ही ने गन्दा किया है | सातों बहनें  आराम से इन घरों मे रहने लगी|
              कुछ समय बाद वहां नजदीक मे एक मेले लगा| बड़ी बहनों ने छोटी से कहा कि  तुम घर की रखवाली करो हम मेला देख कर आते हैं | उसने कहा ठीक है जैसा आप ठीक समझें| जब छहों बहनें मेले को चली गई तो छोटी ने अपना भेष बदल लिया राज कुमारों जैसा भेष बना कर घोड़े पर बैठ कर मेले को चल दी| मेले मे सभी लोग उसे देखते ही रहगये| उसके बाद बड़ी बहनों के घर आने से पहले ही घर पहुँच कर अपने पुराने ही भेष में दरवाजे पर बैठ गई और बहनों का इंतजार करने लगी| जब बड़ी बहने आइ तो छोटी ने पूछा मेला कैसा रहा तो बड़ी बहनों ने बताया कि मेले  मे एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया था सभी लोग उसे देखते ही रह गए| छोटी बहन ने कहा कि में तो घर की रखवाली मे थी| पर यह सब कुछ अपनी अपनी किस्मत का है| अपनी किस्मत से ही सब कुछ मिलता है |
                                                          के: आर: जोशी. (पाटली)