एक बार महाराजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय अपने तीनों भाइयों के साथ कुरुक्षेत्र में एक महां यज्ञ कर रहे थे संयोग से उसी समय देवताओं की कुतिया सरमा का पुत्र सारमेय (कुत्ता) उस यज्ञ स्थल में खेलता हुआ आ गया| जनमेजय के भाइयों ने कुत्ते को वहां देख कर उसे मार कर वहां से भगा दिया| कुत्ता जोर जोर से चिल्लाता हुआ वहां से भागा और अपनी माँ के पास पहुंचा! उसे रोता देख कर माता ने उस से पूछा "बेटा! तुम क्यों रो रहे हो, तुम्हें किस ने मारा?"
इस पर कुत्ते ने रोते रोते बताया "माँ मैं ने कोई अपराध नहीं किया, फिर भी जनमेजय के भाइयों ने मुझे मारा"|
माता ने कहा "बेटा! तुमने जरुर कोई अपराध किया होगा, बिना अपराध के वह तुम्हें क्यूँ मारेंगे?"
इस पर कुत्ते ने कहा "नहीं नहीं माँ! में सच कहता हूँ कि मैं ने ना तो उन के हवन की तरफ देखा और ना हीं कोई पदार्थ छुआ|"
यह सुन कर पुत्र के दुःख से दुखी हुई उसकी माता सरमा वहां पहुंची जहाँ हवन यज्ञ हो रहा था| सरमा ने क्रोध करते हुए परीक्षित के पुत्रों से पूछा-" मेरे पुत्र ने ना तो आप लोगों का होम द्रव्य छुआ है और ना ही उस ओर देखा है,फिर आप ने मेरे निरपराध पुत्र को क्यूँ मारा?"
परीक्षित पुत्रों ने इस का कोई जवाब नहीं दिया| तब सरमा ने समझा कि मेरा पुत्र निरपराध है| उसने जनमेजय भाइयों से कहा "मेरा पुत्र निरपराध है फिर भी आप लोगों ने उसे मारा है,इस लिए में आप लोगों को शाप देती हूँ, आप लोगों पर अकस्मात विपति आएगी और दुःख भी उठाना पड़ेगा|"
इस शाप को सुन कर जनमेजय आदि सभी बहुत घबरा गए| और इस शाप के कारण उन्हें उनके पिता परीक्षित की मृत्यु का समाचार सुनना पड़ा और घोर कष्ट उठाना पड़ा| इसलिए जो अपने लिए प्रतिकूल हो-दुखदाई हो,ऐसा ब्यवहार किसी दूसरे के प्रति कभी भी ना करें क्यूँ की ऐसा करने से स्वयं को महां पापका भागी होना पड़ता है| के. आर. जोशी.