Saturday, June 26, 2010

गाय और बाघ

           एक जंगल में एक बाघ रहता था| उसका एक बच्चा भी था| दोनों एक साथ रहते थे| बाघ दिन में शिकार करने जंगल में चला जाता था, पर बच्चा अपनी मांद  के आस पास ही रहता था| उस जंगल में एक गाय भी रहती थी| उस का भी एक बछड़ा था| गाय भी दिन में  चरने चली जाती थी| बछड़ा आस पास ही रहता था| एक दिन गाय के बछड़े को बाघ का बच्चा दिखाई दिया, वह डर गया और छुप गया| शाम  को जब उसकी माँ आई तो वह बाहर आया | अपनी माँ का दूध पी कर बछड़ा खेलने लगा| उसे माँ का आसरा  मिल गया| अगले दिन फिर से गाय और बाघ जंगल की ओर चले गए, दोनों के बच्चे अपनी अपनी जगह खेलने लगे| बाघ के बच्चे की नजर गाय के बछड़े पर पड़ गई| वह उसकी ओर दोस्ती के लिए बढा |गाय का बछड़ा पहले तो डर गया, पर बाघ के बच्चे के कहने पर वह रुक गया| बाघ के बच्चे ने गाय के बछड़े को कहा कि हम दोस्ती कर लेते हैं|  गाय के बछड़े ने जवाब दिया कि तुम लोग मांसाहारी   हो हम लोग शाकाहारी  है तो हम में दोस्ती कैसी? बाघ के बच्चेने कहा कि हम लोग मांसाहारी जरुर हैं, पर तेरी मेरी दोस्ती पक्की | जब हमारी माताएं  जंगल को चली जाती हैं, तब हम आपस मे खेल लिया करेंगे |यह सुन कर गाय के बच्चे को सुकून  मिला और उसने आगे आ कर बाघ के बच्चे को गले से लगा लिया| दोनों ने कसमें खाई, कि कुछ भी हो हम अपनी दोस्ती नहीं तोड़ेंगे, चाहे इसके लिए हमे अपनी माताओं से ही क्यों न लड़ना पड़े|  गाय और बाघ में  तो पहले से ही दुश्मनी थी, इस बात को बच्चे जानते थे| गाय रोज़ अपने बछड़े के लिए दूध निकाल कर रख जाती थी| एक दिन गाय ने अपने बछड़े से कहा कि  जिस दिन  कभी मेरे  इस दूध का रंग लाल हो गया, उस दिन समझना कि  तुम्हारी माँ को किसी बाघ ने खा लिया है| गाय के बच्चे ने अपनी माँ से कहा ऐसा कभी नहीं  होगा| अगले दिन वह कुछ उदास जैसा था, तो बाघ के बच्चे ने उससे  कारण   पूछा तो गाय के बछड़े ने  अपनी माँ द्वारा कहे शब्द उसको बता दिए| बाघ के बच्चे ने कहा, ऐसा कभी भी नहीं होगा| और दोनों खेलने लग गए|
             एक दिन बाघ की नज़र गाय पर पड़ गई और उसने गाय को मारने की सोच ली | गाय रोज़ उस से बच कर निकल जाती थी | एक दिन बाघ गाय के रास्ते को घेर कर बैठ गया और जब गाय नजदीक आई तो उसपर हमला बोल दिया, बाघ ने गाय को मार कर खा लिया| उधर जब गाय का बछड़ा दूध पीने को गया, तो उसने  देखा  कि दूध लाल हो गया है तो वह समझ गया कि  बाघ ने मेरी माँ को मार दिया है | वह बाघ के बच्चे के पास गया और उसे सारी बात बताई कि उस की माँ ने आज मेरी  माँ को मार दिया है| क्यों कि दूध का रंग लाल हो गया है| बाघ के बच्चे ने कहा अगर मेरी  माँ ने तेरी माँ को मारा होगा तो  मेरी माँ भी जिन्दा नहीं बचेगी| शाम  को जब गाय वापस  नहीं आई और बाघ वापस  आ गया तो पता चल गया कि गाय को बाघ ने मार खाया है| बाघ के बच्चे ने भी अपनी माँ को मारने की सोच ली|  बाघ के  बच्चे ने गाय के बछड़े को कहा कि मेरी माँ ने तेरी माँ को मार खाया है, अब तू छुप के देखना मैं कैसे अपनी माँ को मारता हूँ| यह कह कर बाघ का बच्चा अपनी माँ के पास गया और उसको कहा कि वह एक ऊँची जगह पर बैठ जाय,  मैं  दूर से आ कर उसे  छूउगा | ऐसा कहते हुए उसने अपनी माँ को एक टीले पर बैठा दिया और दूर से आ कर बाघ को धक्का दे दिया| बाघ काफी दूर जा गिरा और उसकी मौत हो गई| इस तरह बाघ के बच्चे ने अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ अदा किया और दोनों की दोस्ती हमेशा  के लिए अटल रही|
                                                                                                                                                            के:आर: जोशी (पाटली)  

Friday, June 25, 2010

लाल सुअरी

          बहुत पहले की बात है, किसी गांव मे एक गरीब किसान रहता था| उस के सात बेटे थे | वे लोग सब मिल जुल कर खेत मे काम करते थे फिर भी उन के खाने लायक अनाज मुस्किल से होता था|एक बार किसान के खेत मे बाजरा लहलहा रहा था |खेती काफी अच्छी हो रही थी| एक दिन  अचानक कहीं से एक लाल रंग की सुअरी आ कर उन के खेत को चट कर गई| किसान के बेटों ने देखा कि  सुअरी सारा बाजरा खा गई है और जगह जगह अपना  मल त्याग गई है, मल मे बहुत सारे बाजरे के दाने हैं तो उन्हों ने सुअरी का सारा मल इकठ्ठा कर लिया फिर उसको धोकर उस मे से बाजरे के दाने निकाल कर पिसा लिए और उस आटे  की रोटियां बना कर खाने लगे| रोटियां बहुत मीठी और स्वादिस्ट  थीं| उन्हों ने सोचा कि  जिस सुअरी के मल में  सनी हुई बाजरे की रोटियां इतनी मीठी और स्वाद हैं उस सुअरी का मांस कितना मीठा नहीं होगा?
            अगले दिन किसान के बेटों ने सुअरी को मारकर लाने की थान ली| किसान का सबसे छोटे  बेटे की एक टांग ख़राब थी वह लंगड़ा कर चलता था |छः बड़े भाइयों  ने छोटे से कहा कि  तेरे से दौड़ा नहीं जाएगा इस लिए तू घर में  रह हम लोग जाकर सुअरी को मार कर ले आते हैं| छोटे को छोड़ कर सभी भाई सुअरी को मारने  के लिए चल  पड़े | घर से कुछ दूरी पर उन्हें पानी भरते हुए कुछ पनिहारियाँ दिखाई दीं| उन्हों ने पनिहारियों से पूछा की यहाँ से कोई लाल सुअरी को जाते हुए तो नहीं देखा? पनिहारियों ने कहा पहले हमारी गगरियाँ उठ्वावो फिर बताएगे| सभी भाइयों ने ताकत लगाईं पर गगरियाँ नहीं उठावा सके| पनिहारियों ने कहा एक गागर तो उठवा नहीं सकते सुअरी को क्या मरोगे कहकर बताया की सुअरी आगे को गयी है|वे आगे को चले गए | आगे उनको कुछ ग्वाले पशु चराते नजर आये | उन्हों ने ग्वालें से पूछा की यहाँ से लाल सुअरी को जाते हुए देखा है क्या? ग्वालों के दो बैल चनुँ और बिनुँ आपस मे लड़ रहे थे |ग्वालों ने कहा इन बैलों को अलग  कर दो तो बता देंगे सभी भाइयों  ने जोर लगाया पर बैलों की लड़ाई नहीं  छुड़ा सके| ग्वालों ने कहा इतना भी नहीं कर सके तो सुअरी को क्या मारोगे  कहा कि थोड़ा ही आगे गई है| वे आगे बड़े और उनको रात पड़ गई |वे सारी रात सुअरी को ढूढ़ते रहे |सुबह को सुअरी धूप सकते हुए उन्हें मिल गयी उन्हों ने सुअरी से कहा कि  तुमने हमारी सारी फसल ख़तम कर दी अब हम तुम्हें ख़तम करने आये हैं|अगले ही पल सुअरी ने छेहों भाइयों को निगल  लिया|
              इधर छोटे भाई को चिंता हो रही थी कि  रात पड़ने पर भी उसके भाई वापिस नहीं आये उसकी रात बड़ी मुश्किल से गुजरी सुबह सवेरे ही वह भाइयों की खोज मे निकल  पड़ा| रस्ते में  उसे पानी भारती हुई पनिहारियाँ मिली तो उसने पनिहारियों से पूछा कि  उन्होंने उसके छः भाइयों को जाते हुए देखा  है? पनिहारियों ने कहा पहले हमारे घड़े  उठ्वावो फिर बताएंगी |उसने अपनी लंगड़ी लात  को घड़े पर टिकाया और हाथ से जोर से घड़े को ऊपर को उठाया तो घडा उठ गया| घड़े उठवाकर उन्हों ने उसे बताया कि  यहीं आगे को गए हैं| वह आगे बढ गया | कुछ दूरी पर उसे ग्वाले मिल गए उसने उन से भाइयों के बारे मे पूछा तो उन्हों ने कहा कि  पहले हमारे बैलों की लड़ाई छुड्वाओ फिर बताएँगे | उसने अपनी लंगड़ी लात से दोनों को ऐसी लात मारी  कि  वह अलग  अलग हो गए| ग्वालो ने कहा कि  अभी अभी आगे गए हैं| कुछ ही दूरी पर उसे लाल सुअरी बैठी हुई दिखाई दी| सुअरी के पास जाते ही उसने सवाल किया कि  मेरे भाई कहाँ हैं? सुअरी ने जवाब दिया कि  उनको तो में  निगल गई| सुनतेही छोटे भाई ने अपनी लंगड़ी लात से एक लात जोर से सुअरी के नाक पर दे मरी| इस से सुअरी डर गई उसने कहा में  तुम्हारे भाइयों को वापिस कर देती हूँ मुझे मत मरो| छोटे भाई ने कहा कि  तुम मेरे भाइयों को अपनी नौ इन्द्रियों में  से किसी भी इन्द्री से बहार नहीं निकालोगी  इन से मेरे भाई गंदे हो जाएँगे| और किसी रास्ते से उन्हें बाहर  निकालो| सुअरी ने अपनी नाभि के रास्ते से बाहर  निकाल दिया| यह देख कर सभी भाई बहुत खुश  हुए और गले मिलने लगे| सुअरी मौका देख कर वहां से भाग गई फिर उनके हाथ नहीं आई| सातों भाई खुश थे की उनकी जान  बच गई| पर उनको अफ़सोस भी था कि  सुअरी फिर बच के निकाल गई| सातों भाई हंसी  ख़ुशी  अपने घर आगये|
                                                     के: आर: जोशी (पाटली)
               

Saturday, June 19, 2010

इन्दर ( इनरु मुया )

            बहुत समय पहले की बात है एक गांव में  इन्दर नाम का लड़का  रहता था| इन्दर का इस दुनियां में कोई नहीं था|बेचारा अनाथ था| लोग उसे इनरु मुया  इनरु  मुया कहते थे|(मुया का मतलब अनाथ से है) जब इन्दर कुछ बड़ा हुआ तो गांव के लोगों ने उसे अपने गाय बछिओं को चराने के लिए ग्वाला रख लिया|इन्दर रोज सुबह गायों को लेकर बन में चला जाता सारा दिन गायों को चराता  और शाम  को वापस  ले आता| गांव वाले उसे बारी बारी से खाना और कपड़ा दे देते थे | इस तरह इन्दर का समय बीत  रहा था| एक दिन किसी ने इन्दर को दो बेर देदिए| बेर स्वाद थे इन्दर ने बेर खा कर गुठलियाँ जंगल में जा कर मिटटी मे दबा दी कुछ समय बाद वहां पर बेर के पेड़  उग आये | इन्दर ने पौधों  की साम संभाल की तो कुछ ही सालों में  पौधे काफी बड़े   हो गए और उन पर फल भी लगने लग गए| बेर काफी मीठे और स्वादिष्ट थे| इन्दर खुद भी खाता और लोगों को भी खाने को देता था| एक बार एक बुढ़िया वहां से जा रही थी|  उस की नज़र बेरों पर गई, उसने इन्दर से बेर मांगे तो इन्दर ने बुढ़िया को बेर दे दिए| वह बुढ़िया एक नरभक्षी थी| जब उसने बेर खाए तो सोचा, ये बेर अगर इतने मीठे हैं तो इन बेरो को खाने वाला कितना मीठा नहीं होगा? उसने इन्दर को पकड़ने   की चाल बनाई | बुढ़िया के कंधे पर एक बोरा टांका हुआ था | उसने सोचा कि  इन्दर को किसी तरह बोरे में  डाल लूँ  तो शाम  का खाना हो जाएगा| उसने इन्दर को अपने पास बुलाया और कहा इस बोरे में  जादू है इस बोरे में  बैठ कर जो मांगो मिल जाता है| इन्दर बेचारा सीधा साधा था उस ने सोचा देखूं क्या होता है| जैसे ही इन्दर बोरे में  बैठा बुढ़िया ने बोरे को  ऊपर से बांध दिया और पीठ पर बोरा लगा कर अपने घर की तरफ चल दी| रास्ते  में  बुढ़िया को प्यास लगी तो पानी पीने के लिए बुढ़िया ने बोरा जमीन पर रख्खा और पानी पीने चली गयी| वहां से कोई  राही  गुजर रहा था|  इन्दर ने उस से बोरे का मुंह खोलने के लिए कहा | उसने बोरे का मुंह खोल दिया| इन्दर बोरे से   बाहर आ गया | इन्दर ने फटा फट बोरे में  पत्थर कांटे भ्रिड ,तितैया आदि जो भी हाथ लगा बोरे में  भर दिया और ऊपर से वैसे ही बांध दिया | बुढ़िया आई बोरा उठाया घर को चल दी | रास्ते  में  उस की पीठ पर कांटे चुभने लगे तो उस ने सोचा कि इन्दर चिकोटी  काट रहा है, उस ने कहा जितना मर्जी चिकोटी   काट ले, घर जा कर तो मैं  तुझे ही काट दूंगी| घर जा कर उस ने अपनी बेटी से कहा कि तू जरा इस का मांस तैयार  कर मैं  अभी आती हूँ, कहकर बुढ़िया कुछ लेने बाहर  चली गयी| बुढ़िया की बेटी ने जब बोरे का मुंह खोला तो सारे भ्रिंद और तितैया बुढ़िया की बेटी पर चिपट   गए और उस का बुरा हाल  कर दिया | बुढ़िया ने आ कर देखा तो पछताने  लगी कि मैंने रास्ते  में  क्यों उतारा|
           कुछ दिनों बाद बुढ़िया अपना भेष  बदल कर फिर से इन्दर के पास जंगल में  गयी और इन्दर से बेर मांगे ,इन्दर ने कहा कि तू वही बुढ़िया है जिस ने कुछ दिन पहले मुझे बोरे में  बंद कर लिया था | बुढ़िया ने कहा कि में  तुझे वैसी बुढ़िया लग रही हूँ  में  तो किसी को यहाँ जानती भी नहीं हूँ| इन्दर ने देखा नजदीक में  अब बेर भी नहीं हैं, तो उसने बुढ़िया से कहा कि बेर तो अब पहुँच से दूर रह गए हैं पंहुचा नहीं जाता है तो बुढ़िया ने तरकीब बताई कि सूखी टहनी पर पैर रख कर आगे बढ़ो तो बेर हाथ आ जाएँगे | इन्दर ने वैसा ही किया |जैसे ही इन्दर ने सूखी टहनी पर पैर रखा टहनी टूट गई और इन्दर नीचे  गिर गया नीचे बुढ़िया पहले से ही तैयार थी उस ने बोरे का मुंह खोल दिया और इन्दर बोरे में  जा गिरा| बुढ़िया ने फटा फट बोरे का मुंह बंद कर दिया| बुढ़िया ने बोरा फिर पीठ से लगाया और घर की तरफ चल दी , आज उसने कहीं भी बोरे को रास्ते में  नहीं उतारा, सीधे घर जाकर ही उतारा| बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि आज तो मैं  इन्दर को पकड़  कर सीधे घर ही लाई हूँ , इस का मांस तैयार कर मैं  इस के तडके   का इन्तजाम  करती हूँ, कह कर बुढ़िया बाहर   चली गयी| बुढ़िया के जाने के बाद जब बुढ़िया की बेटी ने बोरे का मुंह खोला तो देखा कि इन्दर के बाल  बहुत पतले और लम्बे हैं तो उसने इन्दर से पूछा कि
उसके बाल  इतने लम्बे कैसे हो गए, तो इन्दर ने कहा कि मैं  अपने बालों को उखल में  कूटता हूँ ,इस से मेरे बाल  पतले और लम्बे बनते हैं| बुढ़िया की बेटी ने कहा एक बार मेरे बालों को भी कूट दो ताकि मेरे बाल लम्बे और पतले हो जाएँ, इन्दर ने कहा चलो उखल के पास चलो मैं  तुम्हारे बालों को कूट देता हूँ, ताकि तुम्हारे बाल  भी लम्बे हो जाएँ |बुढ़िया की बेटी मान गई और इन्दर को उखल में  ले गई,  इन्दर ने कहा अपने बालों को उखल में डालो मैं  कूट देता हूँ| बुढ़िया की बेटी ने अपने बाल  उखल में  डाल दिए  और इन्दर कूटने लग गया|उसने एक दो चोट बालों में  मारी  फिर उसके बाद बुढ़िया की बेटी के  गर्दन पर दे मारी  जिस से बुढ़िया की बेटी मर गई, इन्दर ने जल्दी से बुढ़िया की बेटी के कपडे  उतार कर खुद पहन लिए और बुढ़िया की बेटी का मांस तैयार करके चूल्हे के पास बैठ गया, जब बुढ़िया आई तो इन्दर चुपचाप बाहर  आ गया और छत के झरोखे से देखने लगा, बुढ़िया ने मांस को भून कर तैयार किया और बेटी को आवाज दी, बेटी होती तो आती वह तो इन्दर ने मारदी |इन्दर जो झरोखे से देख रहा था  बोल उठा "देखी  अपनी चालाकी अपनी बेटी खुद ही खाली" बुढ़िया ने कहा तुम्हारे पास क्या सबूत है तो इन्दर ने बुढ़िया की बेटी के कपडे  झरोखे से नीचे गिरा दिए और उस के हाथ की अंगूठी भी गिरा दी| बुढ़िया बेटी की जुदाई सहन नहीं कर सकी| उसने अपनी जीभ अपने दातों तले दबा ली और काटली| इस तरह एक नरभक्षी बुढ़िया का अंत हो गया| इन्दर फिर जंगल में  आ गया और अपनी रोज मर्रा की जिन्दगी जीने लग गया|                                                           के:आर:जोशी (पटली)