किसी गांव मे एक सेठ रहता था| सेठ के परिवार मे पत्नी और दो बच्चे थे| बेटा बड़ा था और उसका नाम गोमू था| बेटी छोटी थी उस का नाम गोबिंदी था| गोबिंदी घर मे सब से छोटी थी इस लिए सब की लाडली थी| हर कोई उसकी फरमाइश पूरी करता था| धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए| बेटा शादी लायक हो गया| सेठ ने एक सुन्दर सी लड़की देख कर बेटे की शादी कर दी| घर मे नईं बहु आ गयी| बहु के आने पर घर वालों का बहु के प्रति आकर्षण बढ गया| गोबिंदी की तरफ कुछ कम हो गया | गोबिंदी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकी| वह अपनी भाभी से इर्ष्या करने लगी| जब गोबिंदी की माँ को इस बात का पता चला तो उसने गोबिंदी को बुलाकर अपने पास बैठाया और नसीहत देनी शुरु करदी| देखो बेटी जिस तरह तुम इस घर की बेटी हो वैसे ही वह भी किसी के घर की बेटी है| नए घर मे आई है| उसे अपने घर के जैसा ही प्यार मिलना चाहिए| क्या तुम नहीं चाहती हो कि जैसा प्यार तुम्हे यहाँ मिल रहा है वैसा ही प्यार तुम्हारे ससुराल मे भी मिले? अगर तुम किसी से प्यार, इज्जत पाना चाहती हो तो पहले खुद उसकी पहल करो| दूसरों को प्यार दो, प्यार बाँटने से और बढता है| इस लिए तुम पहल कर के अपनी भाभी से प्यार करो| वह इतनी बुरी नहीं है जितनी तुम इर्ष्या करती हो| माँ की नसीहत को गोबिंदी ने पल्ले बांध लिया | अपनी भाभी को गले लगाकर प्यार दिया, और हंसी ख़ुशी साथ रहने लगे| जितना प्यार गोबिंदी ने अपनी भाभी को दिया उस से कहीं अधिक प्यार उसको भाभी से मिला| इस लिए कभी किसी से इर्ष्या नहीं करनी चाहिए|
अच्छी शिक्षा देती हुई कहानी है अगर आज की लडकियाँ मान ले तो घर स्वर्ग बन जाये, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है ससुराल से ज्यादा माँ-बाप की सोची जाती है।
ReplyDeleteमिलजुलकर सबको रहना है।
ReplyDeleteसाथ तो निभाने से निभता है....... अच्छी कथा
ReplyDeleteये तो बिल्कुल ही मेरी मित्र की की कहानी है किन्तु फर्क इतना है की उसके तीन भाई थे और लाख सभी के समझाने के बाद भी वो ये बात नहीं समझ सकी हमें इसका सादा अफसोस रहा क हम उसे ठीक से समझा नहीं सके |
ReplyDeleteप्यार बाँटने पर प्यार ही मिलता है...
ReplyDeleteसही है .....प्यार बांटने से ही बढ़ता है
ReplyDeleteईष्या से हानि ही होती है। सही सीख है।
ReplyDeleteBahut Sundar, Achchi kahani.
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विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
वाकई, लेने का देना । दशहरे की हार्दिक शुभकानाएँ...
ReplyDeleteवर्चस्व की लड़ाई में सब हारते ही हैं...सहअस्तित्व के साथ ही घर-परिवार चलते हैं...
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