बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल के किनारे कुछ ग्वाले रहते थे| वे अपने गाय भैसों का दूध बेचने के लिए शहर में जाया करते थे| उन ग्वालों में एक ग्वाला बहुत लालची था| वह रोज दूध बेचने जाते समय रास्ते में पड़ती नदी में से दूध में पानी मिला दिया करता था|
एक दिन जब ग्वाले बाज़ार से अपनी बिक्री का हिसाब करके पैसे ले कर घर को आ रहे थे तो दोपहर की गर्मी से तंग आकर उन्हों ने नदी में नहाने का मन बनाया| सभी ग्वालो ने अपने अपने कपडे उतार कर एक पेड़ के नीचे रख दिए और नहाने के लिए नदी के बीच में चले गए| कुछ ही देर में पेड़ से एक बन्दर उतरा और उस लालची ग्वाले के कपड़े उठाकर पेड़ पर ले गया | उसने उसकी जेब से रुपये के सिक्कों वाली थैली निकाली और एक एक करके नदी में फैंकने लग गया| ग्वाला चिल्लाया और अपने कपडे और पैसे छुड़ाने के लिए बन्दर के पीछे भागा| इतनी देर में वह बन्दर बहुत सारे सिक्के नदी में गिरा चुका था|
लालची ग्वाला अपने भाग्य को कोसने लगा और कहने लगा कि देखो मेरी महीने की कमाई के आधे पैसे बन्दर ने पानी में मिला दिए| इसपर उसके साथी ग्वालों ने कहा तुमने जितने पैसे पानी मिलाकर कमाए थे उतने पैसे पानी में ही चले गए हैं| पानी की कमाई पानी में| उस दिन से उस ग्वाले ने दूध में पानी मिलाना छोड़ दिया और ईमानदारी से दूध बेचने लगा| इसी लिए कहते हैं कि पाप की कमाई कभी फलती नहीं है|