किसी जंगल में एक शेर रहता था| शेर कई दिनों से भूखा था| जब वह अपनी मांद से शिकार करने निकल रहा था तो उसने देखा कि एक खरगोश उसकी मांद के करीब ही खेल रहा है| शेर जैसे ही उस पर झपटने वाला था, सामने एक हिरन दिखाई दिया| शेर ने सोचा खरगोश तो बहुत छोटा है,नाश्ता भी पूरा नहीं होगा हिरन काफी बड़ा है उसी को मारना चाहिए|
अत: वह शेर खरगोश को छोड़ कर उस हिरन के पीछे दौड़ पड़ा| लेकिन वह हिरन शेर को देख कर, बहुत तेज दौड़ने लगा और जल्दी ही वह शेर की आँखों से ओझल हो गया|
शेर ने हिरन को तेज दौड़ते हुए देखा तो वह सोचने लगा कि वह अब हिरन को नहीं पकड़ सकेगा| हिरन के आँखों से ओझल होते ही शेर पूरा भोजन पाने की आशा छोड़ बैठा| उसने मन ही मन निश्चय किया कि हिरन का पीछा करना अब बेकार है| मुझे खरगोश के पास ही लौट जाना चाहिए| उसको खाने से मेरा कुछ तो पेट भरेगा|
किन्तु वह जब लौट कर वापस अपनी मांद के पास पहुंचा तो वहां खरगोश को न पाकर वह आश्चर्य में पड़ गया| वह सोचने लगा मैं तो खरगोश को यहीं छोड़ गया था? फिर यह खरगोश कहाँ चला गया? जरुर यही कहीं छिपा होगा| मैं अभी उसको तलाश करता हूँ| वह मुझसे बच कर कहाँ जा सकता है? यह सोच कर वह शेर उस खगोश को तलाश करने लगा| उसने मांद के अन्दर देखा, मांद के बाहर देखा मगर उसे कहीं भी वह खरगोश नज़र नहीं आया| खरगोश तो शेर के वहां से जाते ही रफूचक्कर हो गया था| खरगोश को वहां न पाकर शेर बड़ा हताश हुआ| हिरन और खरगोश दोनों ही उसका भोजन बनने से बच गए थे|
शेर हिरन का ध्यान कर सोचने लगा जब मैंने उसे देखा था तो सोचा था, हिरन खरगोश से बड़ा है इसलिए उसको खाकर मेरा पेट भर जाएगा| खरगोश तो बहुत छोटा है-उसको खाकर मेरा पेट भी नहीं भर सकता| अत: मैं खरगोश को छोड़ कर हिरन का शिकार करने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ा| लेकिन दुर्भाग्य कि वह हिरन मेरे हाथ नहीं आया और तेजी से भाग गया|
अपने दोनों शिकार हाथ से निकल जाने के कारन शेर बड़ा पछताया और बोला,"मैंने थोडा छोड़ कर ज्यादा पाने के लालच में अपना सबकुछ खो दिया"| मैं न थोडा पा सका न ज्यादा|
इस लिए कहते हैं कि ज्यादा पाने के लालच में थोड़े से भी हाथ धोना पड़ जाता है|
इस कहानी से हम कह सकते है कि लालच बुरी बला, या फ़िर शेर का ध्यान दोनों में बंट गया था। लक्ष्य एक ही होना चाहिये।
ReplyDeleteजो मिल जाये उसे अपनाकर ही बड़े के बारे में सोचना चाहिये।
ReplyDeleteइस लिए कहते हैं कि ज्यादा पाने के लालच में थोड़े से भी हाथ धोना पड़ जाता है.......
ReplyDeleteअच्छी सीख देती कहानी...
लालच बुरी बला है..बहुत शिक्षाप्रद कहानी..
ReplyDeletesahi hai aadhi ko chhod poori ko dhyave aadhi mile n poori pave.bahut prerak kahani aabhar.
ReplyDeleteआधी छोड़ सारी को धाये...
ReplyDeleteआधी रही, ना पूरी पाए...
Viaited your blog for the first time but liked yr fine stories very much.My best wishes.
ReplyDeleteregards,
dr.bhoopendra singh
jeevansandarbh.blogspot.com
इसीलिए तो कहा जाता है :धोभी का कुत्ता घर का न घाट का .आधी को छोड़ पूरी को धावे ,हाथ न उसके कुछ भी आवे ।
ReplyDeleteसार्थक बोध कथाओं को ला रहें हैं आप बधाई भी आपका आभार भी .
Bahut hi sundar kahani...sundar sandesh....aabhar....
ReplyDeletesome thing better than nothing.nice story.
ReplyDeleteज्ञान वर्धक कहानियाँ पढ़वा रहे हैं आप| जय हो|
ReplyDeleteसुंदर कहानी...सही बात
ReplyDeleteआधी छोड पूरी को जावे, आधी रहे न पूरी पावे.
ReplyDeleteसभी के लिये शिक्षाप्रद कहानी......
ReplyDeleteसुन्दर और बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteबस यहीं पर जीव मार खा जाता है। जो पास है उस पर संतोश करने की बजाये और पाने का लालच। प्रेरक कहानी।
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा है इस प्रस्तुति में ।
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