Friday, July 29, 2011

किसी का भी अपमान मत करो

बहुत समय पहले की बात है| समुद्र के किनारे एक टिटहरी परिवार रहता था| एक बार टिटहरी ने अंडे देने थे| टिटहरी ने टिटहरे से कहा- हमें कोई ऐसा स्थान ढूँढना चाहिए जहाँ अण्डों को सुखपूर्वक रखा जा सके| टिटहरे ने कहा यह समुद्र तट बहुत रमणीय है, यहीं अंडे देदो| इस पर टिटहरी ने कहा-समुद्र की ये लहरें तो बड़े बड़े मदोन्मत्त गजराजों तक को अपने में खीच लेती हैं, फिर हम छोटे पक्षियों की क्या बिसात है| टिटहरे ने कहा संसार में सब की मर्यादा है, समुद्र की भी एक मर्यादा है; यदि वह इसका अतिक्रमण कर के हमें छोटा समझ हमारे अण्डों को बहा ले जाएगा तो उसे उसका दंड भुगतना पड़ेगा, तुम किसी बात की चिंता मत करो| समुद्र ने ये सब बातें सुन लीं|
टिटहरे के आश्वासन देने पर टिटहरी ने समुद्र के किनारे सुरक्षित स्थान पर अंडे दे दिए| एक दिन जब टिटहरी परिवार भोजन की खोज में कहीं बाहर चले गए तो समुद्र ने उनके अंडे चुरा लिए| टिटहरी परिवार के वापस लौटने पर अण्डों को न देख टिटहरी रोने लगी| टिटहरे ने कहा| तुम चिंता न करो, समुद्र को इसका फल भुगतना पड़ेगा| यह कह कर टिटहरे ने पक्षिराज गरुड़ के पास जाकर प्रार्थना की- महाराज! समुद्र हमें छोटा प्राणी समझ कर अपमानित करता है| उसने मेरी टिटहरी के अण्डों को चुरा लिया है| आप हम सभी पक्षियों के स्वामी हैं और समर्थ हैं, अत: आपको समुद्र की इस नीचता के लिए दंड देना चाहिए| गरुड़ ने कहा- टिटहरे! समुद्र को भगवान श्रीहरि का आश्रय प्राप्त है, अत: में उन्हीं श्रीहरि से उसे दंड दिलाऊंगा| यह कह कर गरुड़ टिटहरे को श्रीहरि के पास ले गया और समुद्र द्वारा की गई नीचता की बात उन से कही| श्रीहरि के कहने पर भय भीत समुद्र ने टिटहरी के अंडे वापस कर दिए, और आगे से कभी ऐसा न करने की शपथ लेकर मांफी मागी|
इसी लिए कहते हैं कि किसी भी छोटे या कमजोर जीव-जंतु का भी अपमान नहीं करना चाहिए| प्रतेक जीव में श्रीहरि का वास है| उस जीव का अपमान श्रीहरि का अपमान है| अपमान करने वाले ब्यक्ति को दंड का भागी बनना पड़ता है|

Sunday, July 24, 2011

चतुर गीदड़

             किसी जंगल में एक चतुर और बुद्धिमान गीदड़ रहता था| उसके चार मित्र बाघ, चूहा, भेड़िया और नेवला भी उसी जंगल में रहते थे| एक दिन चरों शिकार करने जंगल में जा रहे थे| जंगल में उन्हों ने एक मोटा ताजा हिरन देखा उन्हों ने उसे पकड़ने की कोशिश की परन्तु असफल रहे| उन्हों ने आपस में मिलकर विचार किया| गीदड़ ने कहा यह हिरन दौड़ने में काफी तेज है| और काफी चतुर भी है| बाघ भाई! आपने इसे कई बार मारने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सके| अब ऐसा उपाय किया जाए कि जब वह हिरन सो रहा हो तो चूहा भाई जाकर धीरे धीरे उसका पैर कुतर दे, जिस से उसके पैर में जखम हो जाये|  फिर आप पकड़ लीजिए तथा हम सब मिलकर इसे मौज से खाएं| सब ने मिलजुल कर वैसे ही किया| जखम के कारन हिरन तेज नहीं दौड़ पाया और मारा गया| खाने के समय गीदड़ ने कहा अब तुम लोग स्नान कर आओ मैं इसकी देख भाल करता हूँ| सब के चले जाने पर गीदड़ मन-ही-मन विचार करने लगा| तब तक बाघ स्नान कर के लौट आया|
               गीदड़ को चिंतित देख कर बाघ ने पूछा- मेरे चतुर मित्र तुम किस उधेड़ बुन में पड़े हो? आओ आज इस हिरन को खाकर मौज मनाएँ| गीदड़ ने कहा बाघ भाई! चूहे ने मुझ से कहा है कि बाघ के बल को धिक्कार है! हिरन तो मैंने मारा है| आज वह बलवान बाघ मेरी कमाई खाएगा| सो उसकी यह धमंड भरी बात सुन कर मैतो अब हिरन को खाना अच्छा नहीं समझाता| बाघ ने कहा- अच्छा ऐसी बात है? उसने तो मेरी आखें खोल दीं| अब में अपने ही बल बूते पर शिकार कर के खाऊंगा| यह कह कर बाघ चला गया| उसी समय चूहा आ गया| गीदड़ ने चूहे से कहा-चूहे भाई! नेवला मुझ से कह रहा था कि बाघ के काटने से हिरन के मांस में जहर मिल गया है| मैं तो इसे खाऊंगा नहीं, यदि तुम कहो तो मैं चूहे को खाजाऊँ| अब तुम जैसा ठीक समझो करो| चूहा डर कर अपने बिल में घुस गया| अब भेदिये की बारी आई| गीदड़ ने कहा- भेड़िया भाई! आज बाघ तुमपर बहुत नाराज है मुझे तो तुम्हारा भला नहीं दिखाई देता| वह अभी आने वाला है| इसलिए जो ठीक समझो करो| यह सुनकर भेड़िया दुम दबाकर  भाग खड़ा हुआ| तब तक नेवला भी आ गया| गीदड़ ने कहा- देख रे नेवले! मैंने लड़कर बाघ भेड़िये और चूहे को भगा दिया है| यदि तुझे कुछ घमंड है तो आ, मुझ से लड़ ले और फिर हिरन का मांस खा| नेवले ने कहा- जब सभी तुमसे हार गए तो में तुमसे लडनेकी हिम्मत कैसे करूँ? वह भी चला गया| अब गीदड़ अकेले ही मांस खाने लग गया| इस तरह गीदड़ ने अपनी चतुराई से बाघ जैसे ताकतवर को भी मात दे दी|    


Saturday, July 16, 2011

किसान और सारस

                     किसी गांव में एक किसान रहता था| किसान बहुत मेहनती था| उसके खेतों में बहुत अच्छी फसल हुआ करती थी| किसान के खेत के पास ही एक जलाशय भी था| जिसके किनारे बहुत सारे बगुले भी रहा करते थे| बगुले किसान की फसल को काफी नुकसान पहुँचाया करते थे| एक दिन किसान ने बगुलों को पकड़ने के लिए अपने खेत में जाल बिछा दिया| कुछ समाय बाद आकर देखा तो, बहुत सारे बगुले जाल में फंसे हुए थे| इस जाल में एक सारस भी फंसा हुआ था| सारस ने किसान से कहा- किसान भाई में बगुला नहीं हूँ मैं ने तुम्हारी फसल बर्बाद नहीं की है| मुझे छोड़ दो| तुम विचार करके देखो कि मेरी कोई गलती नहीं है| जितने भी पक्षी है, मैं उन सब कि अपेक्षा अधिक धर्म-पारायण हूँ| मैं कभी किसी का नुकसान नहीं करता| मैं अपने बृद्ध माता-पिता का अतीव सम्मान करता हूँ और विभिन्न स्थानों में जाकर प्राण-पण से उनका पालन-पोषण करता हूँ|
                    इस पर किसान बोला- सुनो सारस, तुमने जो बातें कहीं, वे सब ठीक हैं,उनपर मुझे जरा भी संदेह नहीं है| परन्तु तुम फसल बर्बाद करने वालों के साथ पकडे गए हो, इसलिए तुम्हें भी उन्हीं लोगों के साथ सजा भोगनी होगी| इसी लिए कहते हैं कि कुसंगत का फल बुरा होता है|

Saturday, July 9, 2011

एकता में बल है

                   एक गांव में एक किसान रहता था| किसान के चार बेटे थे| किसान अपने बेटों से बहुत दुखी था| उसके चारों बेटे निक्कमे और निखट्टू थे| हमेशा आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे| किसान को इस बात का बहुत दुःख था कि मेरे मरने के बाद मेरे बेटों का क्या बनेगा कैसे खाएंगे| 
                  एक दिन किसान बीमार पड़ गया| उसने अपने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और कभी भी आपस में न लड़ने की नसीहत देनी चाही| उसने अपने बेटों से एक लकड़ी का गट्ठा मगवाया| फिर बारी बारी से गट्ठे को  तोड़ने के लिए कहा परन्तु चारों में से कोई भी उस गट्ठे को नहीं तोड़ पाया| फिर किसान ने सभी लकड़ियों को अलग अलग करने को कहा| अलग अलग करने के बाद चारों को एक एक लकड़ी तोड़ने को कहा|  चारों ने लकड़ी आराम से तोड़ दी| इस पर किसान ने कहा जिस तरह तुम लकड़ी के गट्ठे को पूरा जोर लगाने के बाद भी नहीं तोड़ सके, पर जब वह अलग अलग कर दी तो तुमने आसानी से तोड़ दी, उसी तरह अगर तुम साथ रहो तो कोई भी तुम्हारा बाल तक बांका नहीं कर सकता है| और अगर तुम अलग अलग रहे,  लड़ते झगड़ते रहे तो कोई भी तुम्हें आसानी से हरा सकता है| 
                   किसान के बेटों की समझ में यह बात आगई और उन्हों ने आपस में कभी न लड़ने की कसम खाली| इसी लिए कहते हैं कि एकता में बल है|

Friday, July 1, 2011

हाथी और लोमड़ी

                        किसी जंगल में एक हाथी रहता था| हाथी बहुत बड़ा और ताकतवर था| कोई भी जंगली जानवर उस हाथी के नजदीक नहीं फटकता था| सब जानवर उस से डरते थे| वैसे हाथी किसी जानवर को कुछ भी नहीं कहता था| अकेला ही जंगल में घूमता रहता था| अपनी लम्बी सूंड से ऊँचे ऊँचे पेड़ों की टहनियों को तोड़ कर खाया करता था और जंगल के बीच वाले तालाब से पानी पीकर वहीँ पड़ा रहता था| इसी जंगल में एक लोमड़ियों का झुण्ड भी रहता था| लोमड़ियों का झुण्ड भी हाथी को देख कर परेशान रहता था| खुलकर शिकार नहीं कर सकता था| एक बार लोमड़ियों ने एक सभा बुलाई जिसमें उन्हों ने हाथी को ठिकाने लगाने की सोची| उन्हों ने सोचा की अगर हाथी को मारगिराया  तो काफी दिनों के लिए खाना भी हो जाएगा  और हाथी से छुटकारा भी मिल जाएगा| पर किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि हाथी का मुकाबला कर सके| आखिर में एक लोमड़ी ने कहा हाथी को तो में मार सकती हूँ| अगर सभी मेरा साथ दें तो| सभी ने हामी भरदी| लोमड़ी ने कहा तुम देखते जाओ  में हाथी से कैसे निबटती हूँ|                                                                                                                                

                       अगले दिन लोमड़ी सुबह सुबह हाथी के घर चली गयी और हाथी को प्रणाम किया| हाथी ने लोमड़ी से पूछा तुम कौन हो कहाँ से आई हो, तुम्हें पहले कभी देखा नहीं है| लोमड़ी ने कहा हमारे जंगल में कोई भी राजा नहीं है| आप बहुत बड़े भी हैं और ताकतवर भी हैं, इसलिए सभी जंगल के जानवरों ने फैसला किया है कि आपको ही जंगल का राजा बनाया जाय| राजा बनाने की  बात सुनकर हाथी बहुत खुश हो गया| हाथी को खुश हुआ देखकर लोमड़ी ने कहा राजा बनाने का महूर्त कल सुबह का ही निकला है इस लिए हमें आज ही वहां जाना होगा ताकि सुबह समय पर राज्याभिषेक किया जा सके| इतना सुनते ही हाथी चलने को तयार हो गया| आगे आगे लोमड़ी चलने लगी और पीछे पीछे हाथी चलने लगा| लोमड़ी हाथी को एक ऐसे रास्ते से ले गयी जहाँ दलदल से हो कर जाना पड़ता था| लोमड़ी हलकी होने से दलदल के ऊपर से आराम से निकल गयी लेकिन हाथी ज्यों ही दलदल के ऊपर से जाने लगा उसके पैर दलदल में धंस गए| हाथी ने लोमड़ी को आवाज देकर रुकने को कहा लोमड़ी ने मुड़ कर देखा तो हाथी दलदल में फसा हुआ था और जितनी कोशिश बाहर निकलने की  करता था उतना ही दलदल में फसता जा रहा था| लोमड़ी ने देखा कि उसकी चाल काम कर गयी है| लोमड़ी ख़ुशी ख़ुशी  अपने साथियों को बुलाने को चली गई| वापस आने पर देखा कि हाथी दलदल में दब चुका है यह देख कर लोमड़ी का दल बहुत खुश हुआ और हाथी को खाने के लिए टूट पड़ा| इस तरह हाथी ने बहकावे में आकर अपनी जान  गवा दी| इस लिए कहते हैं कि बिना सोचे समझे किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए|