Thursday, June 14, 2012

सियार और बन्दर

             प्राचीन काल बात है, दो ब्यक्ति आपस में बहुत अच्छे मित्र थे, पर दूसरे जन्म में उनमें से एक को सियार की योनि मिली और दूसरा  बन्दर बना।
            सियार जो था, वह शमशान में रहा करता थाऔर मुर्दों का भोजन किया करता था। वहीँ एक वृक्ष था, उसपर एक बन्दर भी रहा करता था। विशेष बात यह थी कि दोनों को अपने पूर्वजन्म की साडी बातें याद थीं।
           एक दिन वृक्ष पर बैठे बन्दर ने सियार से जिज्ञासावश पूछा-सियार भाई! तुम पूर्वजन्म में कौन थे और तुम ने कौन सा ऐसा निंदनीय कार्य किया था, जिस से तुम्हें सियार की पशु-योनि प्राप्त हुई है और ऐसे घृणित एवं दुर्गन्धयुक्त मुर्दे से अपना पेट भरना पड़ रहा है। इसपर सियार ने दुखी होते हुए कहा-
            भाई वानर! क्या बताऊँ। पूर्वजन्म मैं मनुष्य-योनि में था और मैंने एक ब्रह्मण देवता को एक वस्तु देने की प्रतिज्ञा कर के फिर उन्हें वह वस्तु दी नहीं थी, इसी प्रतिज्ञा-भंग के दोष से मुझे यह दुखित पापयोनि प्राप्त हुई है। आब तो अपने कर्मका भोग भोगना ही है। मेरी तो बात हो गई, आब तुम बताओ कि तुमने कौन सा पाप किया था?
            इस पर वानर बोला-सियार भाई! में भी पहले मनुष्य ही था। किन्तु मेरा यह स्वभाव था कि में सदा ब्राहमणों के फल चुराकर ख्य करता था। इसी पापकर्म से मुझे यह वानर-योनि प्राप्त हुई है। इस लिए किसी की भी आशाको भंग नहीं करना चाहिए। संकल्प किया गया दान अवश्य ही देना चाहिए अन्यथा दुसरे जन्म में महां कष्ट उठाना पड़ता है।     

15 comments:

  1. कर्म के अनुसार भोगना ही पड़ेगा ! बिलकुल

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  2. जैसा कर्म करेगा पापी फल देगा भगवान,,,,,ये है गीता का ज्ञान,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

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  3. कथा में दो दोष प्रतीत हो रहे हैं :

    पहला, कथा में यदि 'ब्राहमण' की बजाय 'सदाचारी' साधु कहा जाता तो.... वर्ण-विशेष के प्रति पूर्वाग्रह की जड़ें और नहीं फैलतीं.

    दूसरे, किसी योनि को पापयोनि कहकर कमतर नहीं आँका जाना चाहिए.... अपितु बालमतियों को सीख देने के लिये 'भय' के भूत की जितनी कम मदद ली जाये उतना अच्छा.

    फिर भी... ऎसी कथाओं पर कल्पनाशीलता की कुछ और मेहनत की जानी चाहिए.... तभी नैतिक मूल्यों और आदर्श संदेशों के साथ न्याय होगा.

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  4. आपके ब्लॉग की चर्चा। यहाँ है, कृपया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं

    शुभकामनाएं


    मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में

    जहाँ रचा गया महाकाव्य मेघदूत।

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  5. वाह ... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति1

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  6. nice presentation....
    Aabhar!
    Mere blog pr padhare.

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  7. Sir main aapki kahani ko facebook whats app pr copy paste karu to .aapka kya kahna hai please reply

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  8. Sir main aapki kahani ko facebook whats app pr copy paste karu to .aapka kya kahna hai please reply

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  9. Bhagwan hame hamari galtiyo ki saza agle janam m kyu deta h jab hme pichla kuch yad nhi hota. Agar isi janam m de to hum apni galtiyo ko sudhare or duniya m itna atank na ho

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