Thursday, February 24, 2011

अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए

            किसी जंगल में एक भील रहता था| वह बहुत साहसी,वीर और श्रेष्ट धनुर्धर था| वह नित्य प्रति बन्य जीव जन्तुओं का शिकार करता था और उस से अपनी आजीविका चलता था तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था| एक दिन वह बन में शिकार करने गया हुआ था तो उसे काले रंग  का एक विशालकाय जंगली सूअर दिखाई दिया| उसे देख कर भील ने धनुष को कान तक खिंच कर एक तीक्ष्ण  बाण से उस पर प्रहार किया| बाण की चोट से घायल सूअर ने क्रुद्ध हो कर साक्षात् यमराज के सामान उस भील पर बड़े वेग से आक्रमण किया और उसे संभलने का अवसर दिए बिना ही अपने दांतों से उसका पेट फाड़ दिया| भील का वहीँ काम तमाम हो गया और वह मर कर भूमि पर गिर पड़ा| सूअर भी बाण के चोट से घायल हो गया था, बाण ने उसके मर्म स्थल को वेध दिया था अतः उस की भी वहीँ मृतु हो गयी| इस प्रकार शिकार और शिकारी दोनों भूमि पर धराशाइ  हो गए|
            उसी समय एक लोमड़ी वहां आगई जो भूख प्यास से ब्याकुल थी| सूअर और भील दोनों को मृत पड़ा देख कर वह प्रसन्न मन से सोचने लगी कि मेरा भाग्य अनुकूल है, परमात्मा की कृपा से मुझे यह भोजन मिला है| अतः मुझे इसका धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिए, जिस से यह बहुत समय तक मेरे काम आसके|
           ऐसा सोच कर वह पहले धनुष में लगी ताँत की बनी डोरी को ही खाने लगी| उस मुर्खने भील और सूअर के मांस के स्थान पर ताँत की डोरी को ही खाना शुरू कर दिया| थोड़ी ही देर में ताँत की रस्सी कट कर  टूट गई, जिस से धनुष का अग्र भाग वेग पूर्वक उसके मुख के आन्तरिक भाग में टकराया और उसके मस्तक को फोड़ कर बहार निकल गया| इस प्रकार लोभ के बशीभूत  हुयी लोमड़ी की भयानक एवं पीड़ा दायक मृत्यु  हुई| इसी लिए कहते हैं कि अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए|

Wednesday, February 16, 2011

दुष्ट का क्षणिक संग भी कष्टकरी होता है

            किसी जंगल के रस्ते  में एक पीपल का विशाल पेड़ था| इस पीपल के पेड़ में अनेक पक्षियों ने अपने घोंसले बना रक्खे थे| उसी पेड़ पर एक हंस भी रहता था| हंस अपने उदार स्वभाव के कारन सभी पक्षियों के आदर का पत्र था| उसी पेड़ में एक कौआ भी रहता था| हंस के इस उदार भाव के कारन कौआ हंस से इर्ष्या करता था| 
           एक दिन कोई यात्री उस मार्ग से जा रहा था, उस के शारीर पर मूल्यवान वस्त्र और कंधे पर धनुष-बाण सोभा  दे रहे  थे| वह गर्मी की तपिश से ब्याकुल हो रहा था| पीपल के पेड़ की घनी छाया देख कर उसने उस पेड़ के निचे आराम करने का निश्चय किया| पेड़ की सुखद छाया में लेटते ही उसे नींद आगई| थोड़ी देर बाद सूर्य की रोशनी उस पथिक के ऊपर आगई| नींद गहरी होने के कारन वह सोता ही रहा| हंस ने जब सूर्य किरणों को उसके मुंह पर पड़ते देखा तो दयावश उसने अपने पंखों को फैला कर छाया कर दी, जिस से पथिक को सुख मिल सके| यात्री सुख पूर्वक सोता रहा| नींद में उसका मुंह खुल गया| उसी समय कौआ भी उडाता हुवा आया और हंस के पास बैठ गया| साधु स्वभाव वाले हंसने कौवे को अपने समीप आया देख उसे सादर बैठाया और कुशल-प्रश्न पूछा| कौवा तो स्वभाव से ही दुष्ट था, हंस को छाया किये देख कर वह मन ही मन सोचने लगा कि यदि में इस यात्री के ऊपर बीट कर के उड़ जाऊ तो यह यात्री जाग जाएगा तथा पंख फैलाए हंस को ही बीट करने वाला समझ कर मार डालेगा, इस से में इस हंस से मुक्ति पा जाऊंगा| जब तक यह हंस यहाँ रहेगा, तब तक सब इसी की प्रशंसा करते रहेंगे|
            यह विचार कर उस ईर्ष्यालु  कौएने सोए हुए पथिक के मुंह में बीट कर दी और उड़ गया| मुख में बीट गिरते ही यात्री चौंककर उठ बैठा| जब उसने ऊपर कि और देखा तो हंस को पंख फैलाए बैठा पाया| यद्यपि हंस ने उसका उपकार किया था, परन्तु दुष्ट के क्षणिक संग ने उसे ही दोषी बना दिया| यात्री ने सोचा कि इस हंस ने ही मेरे मुंह में बीट की है, यात्री को गुस्सा तो थाही उसने धनुष-बाण उठाया और एक ही तीर से हंस का काम तमाम कर दिया| बेचारा हंस उस दुष्ट कौए  के क्षणिक संग के कारन मृत्यु को प्राप्त हुआ|
            इस लिए कहा गया है कि दुष्ट के साथ न तो कभी बैठना चाहिए और नाही कभी दुष्ट का साथ देना चाहिए|

Thursday, February 10, 2011

अनुभव

             हुत समय पहले  की बात है एक गांव मे देवदत्त नाम का आदमी रहता था| उसका एक बेटा था जिस  का नाम पान देव था| पान देव को देव दत्त ने बड़े लाड़ प्यार से पाला  पोषा और उसको ऊँची तालीम दिलाई ताकि पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने और बुढ़ापे  मे उस  का सहारा बने| पान देव पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन गया और उसको शहर मे एक अच्छी सी नौकरी मिल गई अब पान देव नौकरी करने शहर जाया करता था| कुछ समय बाद  पान देव की शादी हो गई| शादी के बाद कुछ ही दिनों मे पानदेव ने शहर मे एक कमरा किराए पर लेलिया और अपनी घर वाली को साथ  लेकर शहर मे ही रहने लगा| कुछ समय बाद उस के घर मे बेटे ने जन्म लिया| समय धीरे धीरे आगे बढता गया| पान देव ने बेटे का नाम शोम देव रख्खा| शोमदेव समय के साथ साथ बड़ा होता गया| स्कूल की पढाई चालू हो गई| उधर पान देव के माँ  बाप भी गांव मे रहते हुए बूढ़े हो गए थे| पान देव ने कभी भी उनके बारे मे नहीं सोचा कि उनको भी साथ रखले| उसने उन्हे बेकार समझ कर  ही गांव मे छोड़ा था|
            शोमदेव अब बड़ा हो गया था |उसके स्कूल मे कुछ यार दोस्त भी बन गए|शिव लाल उसका अच्छा दोस्त था और दोनों एक दूसरे के घर आया जाया करते थे| एक दिन उनका परिक्षा का परिणाम आने वाला था दोनों दोस्त स्कूल गए| परिक्षा परिणाम देखा तो शोमदेव के  अंग्रेजी मे नंबर कम थे उसके दोस्त शिवलाल अच्छे नंबरों मे पास हुआ था| दोनों दोस्त मिल कर शोम देव के घर आ गए| शोम देव के पिता पान देव ने परीक्षा परिणाम के बारे मे पूछा तो शोम देव ने बताया कि मेरी  अंग्रेजी मे कमपार्टमेंट  है  और शिवलाल अच्छे नम्बरों से पास हुआ है| पान देव ने शिव लाल की तरफ देखा तो शिव लाल बोल पड़ा कि ताया जी यह सब मेरे दादाजी, दादीजी के  आशीर्वाद का फल है| मेरे दादाजी मुझे रात दिन पढ़ाते हैं और अच्छी अच्छी बातें बताते हैं| दादाजी ने मुझे कई किसम के खेल भी सिखाए हैं| उन के अनुभव ही मेरे काम आ रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे | शिव लाल से अपने दादा,दादी की प्रशंसा सुन कर पान देव को भी अपने माँ बाप की याद आ गई| वह सोचने लगा कि मैंने  तो कभी अपने माँबाप के अनुभवों  का लाभ उठाने के बारे मे सोचा ही नहीं था| पुराने लोगों के अनुभव ही आदमी को सफलता की सीडियां पार  करने मे सहायक हो सकती हैं| यह सोचते ही पान देव के मन मे  आया कि वह कल ही जा कर अपने माँ  बाप को शहर अपने पास ले आये| उसने अपने बेटे से कहा  बेटा अब तुम भी अच्छी पोजीसन मे पास हुआ करोगे | मे कल ही जाकर तुम्हारे दादा, दादीजी को यहाँ शहर अपने साथ ले आऊंगा | वे हमारे साथ ही शहर मे रहेंगे| इतना सुनते ही शोम देव के चहरे पर मुस्कराहट आ गई| और सोचने लगा कि अब मे भी शिवलाल की तरह अपने दादाजी दादीजी के अनुभवों का फ़ायदा ले सकूँगा| जिन्दगी मे सफलता की सीड़ियों को आसानी से पार  कर सकूँगा|  अगले ही दिन पान देव गांव गया और अपने माता  पिताजी को साथ लेकर शहर आगया| बुजर्गों के पास अनुभवों का ऐसा अनमोल खजाना होता है,जिस का लाभ उठाकर उनके परिवार के लोग अपने जीवन को सुखी, सुसंस्कृत और संपन्न बना सकते हैं| इस लिए हमेसा बुजर्गों का आदर सत्कार करना चाहिए| और उनका  आशीर्वाद  लेना चाहिए| 

Friday, February 4, 2011

विचारकर काम करने में ही शोभा है

       किसी बन में एक शेर रहता था|  एक दिन उसे बड़ी भूख लगी| वह शिकार की खोज में दिन भर इधर उधर दौड़ता रहा, पर उस दिन उसे कुछ नहीं मिला| शाम को उसे एक बहुत बड़ी गुफा दिखाई दी| वह उस गुफा में घुस गया, पर उसे वहां कुछ नहीं मिला| उसने सोचा कि यह मांद  जरुर किसी जानवर ने बनाई है| वह रात को यहाँ जरुर आएगा| शेर यहाँ छिप कर बैठ गया| ताकि मांद वाले जानवर के आने पर शेर का खाने का  इंतजाम हो सके| कुछ समाय बाद एक लोमड  और लोमड़ी  वहां आए| लोमड़ी चालाक तो होती ही है उसने देखा कि कोई जानवर के  पैरों के निशान मांद की तरफ गए हैं पर वापसी के कोई निशान  नहीं हैं| वह सोचने लगी  कि इस मांद में जरुर कोई है, अब में क्या करूँ, और कैसे पाता लगाऊं  कि मांद में कौन है| कुछ सोचने के बाद उसे एक उपाय सूझा| उसने मांद को पुकारना आरम्भ किया| वह कहने लगी  " ओ मांद!, ओ मांद!" फिर थोड़ी देर रुक कर बोली  " ए मांद क्या तुम्हे याद नहीं है, हम लोगों में तय हुआ है कि जब भी मैं यहाँ आऊं तब तुम्हे मुझे आदरपूर्वक बुलाना चाहिए| पर यदि अब तुम मुझे नहीं बुलाते हो तो मैं दूसरी मांद में जा रही  हूँ|" यह आवाज सुनकर शेर सोचने लगा "ऐसा लगता है कि यह गुफा इस लोमड़ी को बुलाया करती थी, पर आज मेरे डर से यह नहीं बोलरही है| इसलिए मैं इसे प्रेमपूर्वक बुला लूँ और जब आजाए तब इसे पकड़ कर खा जाऊं  |" ऐसा सोचकर शेर ने जोर से पुकारा| शेर की जोर की आवाज से मांद गूंज उठी और बन के सभी जीव डर गए| लोमड़ी को भी पाता चल गया कि मांद में शेर बैठा है| लोमड़ी भी लोमड को साथ लेकर कहीं दूर भाग गई| और कहने लगी कि जो सावधान होकर विचारपूर्वक काम करता है वह सोभा पाता है| जो बिना विचारे कोई काम करता है उसे बादमें पछताना पड़ता है|