किसी जंगल में एक भील रहता था| वह बहुत साहसी,वीर और श्रेष्ट धनुर्धर था| वह नित्य प्रति बन्य जीव जन्तुओं का शिकार करता था और उस से अपनी आजीविका चलता था तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था| एक दिन वह बन में शिकार करने गया हुआ था तो उसे काले रंग का एक विशालकाय जंगली सूअर दिखाई दिया| उसे देख कर भील ने धनुष को कान तक खिंच कर एक तीक्ष्ण बाण से उस पर प्रहार किया| बाण की चोट से घायल सूअर ने क्रुद्ध हो कर साक्षात् यमराज के सामान उस भील पर बड़े वेग से आक्रमण किया और उसे संभलने का अवसर दिए बिना ही अपने दांतों से उसका पेट फाड़ दिया| भील का वहीँ काम तमाम हो गया और वह मर कर भूमि पर गिर पड़ा| सूअर भी बाण के चोट से घायल हो गया था, बाण ने उसके मर्म स्थल को वेध दिया था अतः उस की भी वहीँ मृतु हो गयी| इस प्रकार शिकार और शिकारी दोनों भूमि पर धराशाइ हो गए|
उसी समय एक लोमड़ी वहां आगई जो भूख प्यास से ब्याकुल थी| सूअर और भील दोनों को मृत पड़ा देख कर वह प्रसन्न मन से सोचने लगी कि मेरा भाग्य अनुकूल है, परमात्मा की कृपा से मुझे यह भोजन मिला है| अतः मुझे इसका धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिए, जिस से यह बहुत समय तक मेरे काम आसके|
ऐसा सोच कर वह पहले धनुष में लगी ताँत की बनी डोरी को ही खाने लगी| उस मुर्खने भील और सूअर के मांस के स्थान पर ताँत की डोरी को ही खाना शुरू कर दिया| थोड़ी ही देर में ताँत की रस्सी कट कर टूट गई, जिस से धनुष का अग्र भाग वेग पूर्वक उसके मुख के आन्तरिक भाग में टकराया और उसके मस्तक को फोड़ कर बहार निकल गया| इस प्रकार लोभ के बशीभूत हुयी लोमड़ी की भयानक एवं पीड़ा दायक मृत्यु हुई| इसी लिए कहते हैं कि अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए|