Thursday, December 23, 2010

"सारमेय की कथा"

             एक बार महाराजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय अपने तीनों भाइयों के साथ  कुरुक्षेत्र में एक महां यज्ञ कर रहे थे संयोग से उसी समय देवताओं की कुतिया सरमा का पुत्र सारमेय (कुत्ता) उस यज्ञ स्थल में खेलता हुआ आ गया| जनमेजय के भाइयों ने  कुत्ते को वहां देख कर उसे मार कर वहां से भगा दिया| कुत्ता जोर जोर से चिल्लाता हुआ  वहां से भागा और अपनी माँ के पास  पहुंचा! उसे रोता देख कर माता ने उस से पूछा "बेटा! तुम क्यों रो रहे हो, तुम्हें किस ने मारा?"
           इस पर कुत्ते ने रोते रोते बताया "माँ मैं ने कोई अपराध नहीं किया, फिर भी जनमेजय के भाइयों ने मुझे मारा"|
           माता ने कहा "बेटा! तुमने जरुर कोई अपराध किया होगा, बिना अपराध के वह तुम्हें क्यूँ मारेंगे?"
           इस पर कुत्ते ने कहा "नहीं नहीं माँ! में सच कहता हूँ कि मैं ने ना तो उन के हवन की तरफ देखा और ना हीं कोई पदार्थ छुआ|"

         यह सुन कर पुत्र के दुःख से दुखी हुई उसकी माता सरमा वहां पहुंची जहाँ हवन यज्ञ  हो रहा था| सरमा ने क्रोध करते हुए परीक्षित के पुत्रों से पूछा-" मेरे पुत्र ने ना तो आप लोगों का होम द्रव्य छुआ है और ना ही उस ओर देखा है,फिर आप ने मेरे निरपराध पुत्र को क्यूँ मारा?"
         परीक्षित पुत्रों ने इस का कोई जवाब नहीं दिया| तब  सरमा ने समझा कि मेरा पुत्र निरपराध है| उसने जनमेजय भाइयों से कहा "मेरा पुत्र निरपराध है फिर भी आप लोगों ने उसे मारा है,इस लिए में आप लोगों को शाप देती हूँ, आप लोगों पर अकस्मात विपति आएगी और दुःख भी उठाना पड़ेगा|"
         इस शाप को सुन कर जनमेजय आदि सभी बहुत घबरा गए| और इस शाप के कारण उन्हें उनके पिता परीक्षित की मृत्यु का समाचार सुनना पड़ा और घोर कष्ट उठाना पड़ा| इसलिए जो अपने लिए प्रतिकूल हो-दुखदाई हो,ऐसा ब्यवहार किसी दूसरे के प्रति कभी भी ना करें क्यूँ की ऐसा करने से स्वयं को महां पापका भागी होना पड़ता है|                         के. आर. जोशी.

Thursday, December 9, 2010

"शेर और ब्राह्मन "

           एक गांव के नजदीक  एक घना जंगल था| उस घने जंगल में एक शेर रहता था| शेर रोज गांव में जाकर  गांव वालों की बकरियां, मुर्गी आदि को मार कर खा जाता था|  शेर के ऐसा करने पर गांव वाले बहुत परेसान थे| शेर से छुटकारा पाने के लिए गांव वालों ने एक पिंजरा बनवाया और उस पिंजरे को जहाँ से शेर आताथा उस रास्ते में रख दिया| जब शेर रात को अँधेरे में गांव की तरफ जारहा था तो गलती से पिंजरे के अन्दर चला गाया| शेर के भार से पिंजरे का दरवाजा अपने आप बंद हो गाया| शेर बहुत चिल्लाया पर वहां उसकी सुन ने वाला कोई नहीं था| काफी देर बाद एक ब्राह्मन वहां से किसी दूसरे गांव में पूजा करने जा रहा था| रास्ते में शेर को देख कर डर गाया| जैसे ही वह वापस होने लगा, शेर ने बहुत मासूमियत में गिडगिडाते हुए ब्राह्मन से कहा में काफी देर से इस पिंजरे में बंद हूँ, कृपा करके मुझे बाहर निकाल दीजिए, में आप का अहसान मंद रहूँगा| शेर के गिडगिडाने पर ब्राह्मन को शेर पर दया आ गई| ब्राह्मन ने दरवाजा खोल  दिया| शेर बाहर आते ही ब्राह्मन पर झपट पड़ा| शेर ने कहा में तुझे खा जाउगा | ब्राह्मन शेर के आगे गिडगिडाने लगा तो ऊपर पेड़ पर बैठा  एक बन्दर जो इनकी सारी बातें सुनरहा था बोला, ब्राह्मन देव क्या बात हो गाई है| इस पर ब्राह्मन ने बन्दर को सारी बात बतादी| बन्दर ने कहा ब्राह्मन देव क्या बात करते हो भला जंगल का राजा शेर इतना ताकतवर होते हुए  इस चूहे के पिंजरे में कैसे आ सकता है| शेर को  अपनी बेइज्जती होती दिखी तो शेर बोला, यह ठीक बोल रहा है में काफी देर से इस पिंजरे में था अगर यकीन नहीं होता है तो में फिर से पिंजरे में जाकर दिखा देता हूँ| बन्दर ने कहा पिंजरे में घुस कर तो दिखाओ में भी देखता हूँ आप कैसे इस पिंजरे में आते हैं| जैसे ही शेर दुबारा पिंजरे मे गाया पिंजरे का दरवाजा फिर से शेर के भार से बंद हो गाया| बन्दर ने ब्राह्मन से कहा ब्राह्मन देव अपनी जान बचाइए और  भाग लीजिए| ब्राह्मन ने बन्दर का धन्यवाद किया और वहां से भाग लिया| इस तरह एक बन्दर ने अपनी चतुराई से एक ब्राह्मन की जान बचा ली|



       

Thursday, November 25, 2010

बाघ और बगला

             एक  बार  एक बाघके गले में हड्डी अटक गयी| बाघ ने उसे निकलने की बड़ी चेष्टा की, पर उसे सफलता नहीं मिली| पीड़ा से परेशान हो कर वह इधर उधर दौड़ भाग करने लगा| किसी भी जानवर को सामने देखते ही वह कहता-भाई!यदि तुम मेरे गले से हड्डी को  बाहर निकाल  दो तो मै तुम्हें विशेष पुरस्कार  दूंगा और आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा| परन्तु कोई भी जीव भय  के कारण  उस की  सहायता करने को राजी नहीं हुआ | 
             पुरस्कार  के लोभ में आख़िरकार एक बगला तैयार हुआ| उसने बाघ के मुंह में अपनी लम्बी चौंच डाल कर अथक प्रयास के बाद उस हड्डी को बाहर निकाल दिया| बाघ को बड़ी राहत मिली| बगले ने जब अपना पुरस्कार  माँगा तो बाघ आग बबूला होकर दांत पीसते  हुए बोला- अरे मूर्ख! तूने  बाघ के मुंह में अपनी चौंच  डाल दी थी, उसे तू सुरक्षितरूप से बाहर निकाल सका, इसको अपना  भाग्य न मान  कर ऊपर से पुरस्कार  मांग रहा है? यदि तुझे अपनी जान प्यारी है तो मेरे सामने से दूर हो जा, नहीं तो अभी तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा| यह सुनकर बगला स्तब्ध रह गाया| और तत्काल वहां से चल दिया| इसी लिए कहते हैं कि- दुष्टों के साथ जादा मेलजोल अच्छा नहीं|

Friday, November 12, 2010

राजा ब्रूश और मकड़ी

            राजा ब्रूश एक शांति प्रिय राजा थे| उनके राज्य में चारों तरफ शांति और समृधि थी| लोग राजा से  बहुत प्रशन्न थे| राजा भी प्रजा का बहुत ख्याल रखते थे| एक बार पडोसी राज्य  के राजा ने उनके राज्य पर अचानक हमला कर दिया| राजा ब्रूश इस के लिए तैयार नहीं थे| लड़ाई में राजा ब्रूश की हार  हो गयी किसी तरह से अपनी जान बचाकर राजा ब्रूश जंगल में जाकर एक गुफा में छिप गए| जब राजा ब्रूश गुफा में बैठे थे तो एक मकड़ी ने उन का ध्यान अपनी ओर खीचा| मकड़ी ऊपर दीवाल पर चढ़ रही थी,पर बार बार नीचे गिर जाती थी| हर बार मकड़ी कुछ ऊपर जाकर नीचे गिर जाती थी| लेकिन मकड़ी ने हार नहीं मानी| ५-६ बार नीचे गिरी और ५-६ बार दुबारा ऊपर चड़ी| आंखिर में मकड़ी ऊपर चड़ने में कामयाब होगई| राजा ब्रूश ने सोचा कि अगर एक मकड़ी बार बार कोशिस करने से सफल हो सकती है तो में भी बार बार कोशिस करने पर सफल हो सकता हूँ| मुझे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए| राजा ब्रूश ने हिम्मत कर के अपनी सेना को दुबारा से एकत्र  किया| कुछ समय  बाद राजा ब्रूश ने अपने दुश्मन पर धावा बोल दिया और राजा ब्रूश की इस बार जीत हुई| राजा ब्रूश को अपना खोया हुआ राज्य फिर से मिल गाया| राजा ब्रूश फिर से पहले की तरह अपना राज काज चलाने लग गए|
शिक्षा:  बार बार कोशिस करने पर कोई भी काम मुश्किल  नहीं होता है|

Thursday, October 28, 2010

'गौरवा और हाथी'

            एक जंगल में एक तमाल का पेड़ था| तमाल के पेड़ पर गौरवा  पक्षियों का एक जोड़ा रहता था| गौरवा के घौसले में  छोटे छोटे चार अंडे थे| अण्डों में से अभी बच्चे निकल भी नहीं पाए थे कि एक दिन एक मतवाले हाथी ने पेड़ की शाखाओं को तोड़ डाला,जिस पर गौरवा पक्षियों का घौसला था| पक्षी खुद तो बच गए पर सारे अंडे फूट गए|
गौरवी व्यथित ह्रदय से रोने लगी, उसे किसी प्रकार से शांति नहीं मिली| गौरवा का एक मित्र था कठफोड़वा| गौरवा को रोते  देख कर कठफोड़वा उसके नजदीक जाकर उसको तसल्ली देने लगा| गौरवा ने कहा उस दुष्ट ने हमारे घौसले को तोड़ दिया और सारे अण्डों को फोड़ डाला| उसे दंड दिए बिना मेरे मन को शांति नहीं मिलेगी|
कठफोड़वा ने कहा हम उस हाथी के सामने बहुत छोटे हैं, परन्तु संगठन में बड़ी ताकत होती है| हम लोग मिल कर प्रयास कर के उस से बदला ले सकते हैं| मेरी एक सहेली  है मधु मक्खी, मैं उस से भी सहायता करने को कहूँगा |
      गौरवा को आश्वासन दे कर कठफोड़वा मधु मक्खी  के पास गया| उसने गौरवा की सारी कहानी उस को सुना दी| सुन कर मधु मक्खी  भी सहायता के लिए तैयार  हो गई| मधु मक्खी  ने कहा कि पहले मेरे मित्र मेढक के पास चलना होगा वह काफी बुद्धिमान है | उसकी योजना से हम हाथी को जरुर  कोई दंड दे सकते हैं| और वे दोनों मेढक के पास चले गए|
      कठफोड़वा ओर मधु मक्खी  ने  मेढक  को गौरवा की सारी कहानी बताई तो मेढक ने कहा संगठन के समक्ष वह हाथी क्या चीज है? इस के लिए आप सब मेरी योजना अनुसार काम करें| मेढक ने बताया कल दोपहर को मधु मक्खी  हाथी के कान के पास जाकर वीणा जैसी मधुर धुन में गाएगी, जिसे सुन कर हाथी मुग्ध हो जाएगा और अपनी आँखें बंद कर लेगा| ठीक उसी समय  कठफोड़वा हाथी की  दोनों आँखोंको अपनी तेज चौंच से फोड़ देगा| अँधा हाथी जब प्यास से ब्याकुल होगा तो मैं एक बड़े गढ्ढे के पास से अपने परिवार के साथ टर्र टर्र की आवाज करूँगा,जिस से उसको जल का भ्रम होगा और वह उधर को भागेगा और  वह गढ्ढे में गिर जाएगा|
        अगले दिन उन सबने इसी प्रकार योजनाबध्द ढंग से हाथी को अँधा कर के गढ्ढे में गिरा दिया और वह हाथी बाहर नहीं निकल सका| भूख प्यास से तड़प कर वहीँ मर गया| इसी लिए कहते हैं कि संगठन में बड़ी ताकत होती है| संगठन से काम करने पर बड़े से बड़ा काम भी संभव हो जाता है|

Wednesday, October 20, 2010

" भेड़िया और बकरी"

एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे| उनमें एक भेड़िया भी था| भेड़िया अपने आप को काफी चालाक समझता था| एक दिन जंगल में काफी दौड़ धूप करने के बाद भी भेड़िए को कुछ खाने को नहीं मिला | थक हार कर वह एक पत्थर पर बैठ गया| बैठे बैठे ही उसकी नजर एक बकरी पर पड़ गयी जो एक ऊँची और फिसलन वाली पहाड़ी पर घास चर रही थी| भेड़िये ने सोचा फिसलन वाली पहाड़ी पर चढ़ना  तो मुश्किल है,पर बकरी को कोई लालच दे कर नीचे बुलाया जा सकता है, और भोजन की ब्यवस्था हो सकती है| वह उठा और उस फिसलन वाली पहाड़ी के नजदीक पहुँच गया| वहां पहुच कर उसने बकरी को आवाज दी "बकरी बहिन  बकरी बहिन " तुम गलती से ऊँची और फिसलन भरी पहाड़ी पर चढ़ गई हो यहाँ से तुम फिसल कर नीचे गिर जाओगी वापिस आ जाओ | बकरी ने उसकी बात अनसुनी  कर दी और घास चरती रही| भेड़िए ने सोचा बकरी को मेरी आवाज सुनाई नहीं दी| भेड़िए ने फिर दुबारा बकरी को जोर से  आवाज दी "बकरी बहिन बकरी बहिन" नीचे उतर आओ तुम फिसलन भरी पहाड़ी पर चढ़ गई हो यहाँ से तुम फिसल कर नीचे गिर जाओगी| बकरी ने फिर कोई जवाब नहीं दिया| चरने में ही मस्त रही| भेड़िए ने सोचा की बकरी तो हरी हरी घास खाने में ही ब्यस्त है उसको मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है| उसने और ऊँची आवाज में कहा "बकरी बहिन बकरी बहिन"नीचे उतर आओ तुम फिसलन भरी पहाड़ी पर चढ़ गई हो, यहाँ से तुम फिसल कर नीचे गिर जाओगी| और ऊपर  ठण्ड भी बहुत है | ऊपर  की घास से तो नीचे की घास बहुत मीठी है| इस बार बकरी से रहा नहीं गया और उसने जवाब दिया कि तुम्हें मेरे खाने की चिंता हो रही है या अपने खाने की| में जहाँ भी चर रही हूँ ठीक चर रही हूँ| बकरी का जवाब सुन कर भेड़िया समझ गया कि यहाँ मेरी दाल गलने वाली नहीं है, चुप चाप जंगल की ओर चला गया| इसी लिए कहते हैं कि किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए| 

Saturday, October 9, 2010

"एक से भले दो "

            किसी गांव में एक ब्राहमण  रहता था| एक बार किसी कार्यवश ब्राहमण  को  किसी दूसरे गांव जाना था| उसकी माँ ने उस से कहा कि किसी को साथ लेले क्यूँ कि रास्ता जंगल का था| ब्राहमण ने कहा माँ! तुम डरो मत,मैं अकेला ही चला जाऊंगा क्यों  कि कोई साथी मिला नहीं है| माँ ने उसका यह निश्चय जानकर कि वह अकेले ही जा रहा है पास की एक नदी  से माँ एक केकड़ा पकड कर ले आई और बेटे को देते हुए बोली कि बेटा अगर तुम्हारा वहां जाना आवश्यक है तो इस केकड़े को ही साथ के लिए लेलो|  एक से भले दो| यह तुम्हारा सहायक सिध्द होगा| पहले तो ब्राहमण को केकड़ा साथ लेजाना अच्छा नहीं लगा, वह सोचने लगा कि केकड़ा मेरी क्या सहायता कर सकता है| फिर माँ की बात को आज्ञांरूप मान कर उसने पास पड़ी एक डिब्बी में केकड़े को रख लिया| यह डब्बी कपूर की थी| उसने इस को अपने झोले में डाल लिया और अपनी यात्रा के लिए चल पड़ा|
                   कुछ दूर जाने के बाद धूप काफी तेज हो गई| गर्मी और धूप से परेशान होकर वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा| पेड़ की ठंडी छाया में उसे जल्दी ही नींद  भी आगई| उस पेड़ के कोटर  में एक सांप भी रहता था| ब्राहमण  को सोता देख कर वह उसे डसने के लिए कोटर से बाहर निकला| जब वह ब्राहमण  के करीब आया तो उसे कपूर की सुगंध आने लगी| वह ब्राहमण  के बजाय झोले में रखे केकड़े वाली डिब्बी की तरफ हो लिया|उसने जब डब्बी को खाने के लिए झपटा मारा तो डब्बी टूट गई जिस से केकड़ा बाहर आ गया और डिब्बी सांप के दांतों में अटक गई केकड़े ने मौका पाकर सांप  को गर्दन से पकड़ कर अपने तेज नाखूनों से कस लिया|सांप वहीँ पर ढेर  हो गया| उधर नींद खुलने पर ब्राहमण  ने देखा की पास में ही एक सांप मारा पड़ा है| उसके दांतों में डिबिया देख कर वह समझ गया कि इसे केकड़े ने ही मारा है| वह सोचने  लगा कि माँ की आज्ञां मान लेने के कारण आज मेरे प्राणों की रक्षा हो गई, नहीं तो यह सांप मुझे जिन्दा नहीं छोड़ता| इस लिए हमें अपने बड़े, माता ,पिता और गुरु जनों की आज्ञां का पालन जरुर करना चाहिए|                                  के: आर: जोशी.   (पाटली)

Saturday, September 25, 2010

सेर को सवा सेर

           एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे| जानवरों की  आपस में दोस्ती भी थी|वहां एक कुत्ता और एक मुर्गा भी रहते थे| कुत्ते और मुर्गे की आपस में दोस्ती हो गयी| दोनों एक साथ घूमा फिरा करते थे| एक बार दोनों घूमते घूमते काफी दूर घने जंगल में चले गए|वहां उनको रात हो गयी| रात बिताने के लिए मुर्गा एक पेड़ की शाखा पर चढ़ गया और कुत्ता उसी पेड़ के नीचे सो गया| जब सुबह होने को आई, तो मुर्गे ने अपने स्वभाव के मुताबिक जोर जोर से बांग देनी शुरु कर दी| मुर्गे की आवाज सुन कर एक सियार मन ही मन सोचने लगा "आज कोई उपाय कर के इस मुर्गे को मार कर खा जाउंगा'| ऐसा निश्चय कर के धूर्त सियार पेड़ के पास जाकर  मुर्गे को संबोधित करते हुए बोला - भाई! तुम कितने भोले हो, सब का कितना उपकार करते हो| में तुम्हारी आवाज सुन कर अति प्रसन्न  हो कर आया हूँ| पेड़ की शाखा से नीचे उतर आओ, हम दोनों मिलकर थोडा आमोद प्रमोद करेंगे| मुर्गा उसकी चालाकी को समझ गया| मुर्गे ने उसकी धूर्तता का फल देने के लिए कहा-भाई सियार ! तुम पेड़ के नीचे आकर थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, में उतर कर नीचे आता हूँ| यह सुन कर सियार अति प्रसन्न हुआ और आनंद पूर्वक उस पेड़ के नीचे आया, तभी कुत्ते ने उसपर आक्रमण कर दिया, कुत्ते ने अपने नखों-दांतों से प्रहार कर के उसे मार डाला| इस तरह कुत्ते ने मुर्गे की जान बचा ली| इस लिए कहते हैं कि जो दूसरे के लिए गढ्ढा खोदता है स्वयं ही गढ्ढे में गिर जाता है|

Friday, September 10, 2010

"जान बची लाखों पाए- लौट के बुद्धू घर को आए"|

            एक जंगल मे एक शेर रहता था| उसी जंगल मे एक सूअर परिवार भी रहता था| सूअर  परिवार अपने खाली समय में  जंगल में बने एक तालाब के कीचड़ में लोट पोट होता रहता था| सूअर के बच्चे तालाब के कीचड़ मे उछल कूद करते रहते थे| एक दिन शेर ने एक जानवर को मार कर खा लिया| खाने के बाद उसे पानी की प्यास लग आई| शेर  उसी तालाब की ओर  चला गया जहाँ सूअर का परिवार कीचड़ मे नहाता था| उस समय वहां सूअर का एक बच्चा अकेले ही उछल कूद रहा था|शेर को वहां आता देख कर वह एक जगह डर के मरे दुबक कर बैठ गया| शेर जैसे ही पानी    पीने को झुका उसको इस में  से बदबू आने लगी | उसने सोचा की छि: इस में से तो बदबू आ रही है मैं इस पानी को नहीं पिउगा| वह किसी दूसरे तालाब में  जाने को मुड़ा तो सूअर के बच्चे ने सोचा कि शेर मेरे से डर गया है| इस लिए बिना पानी पिए ही जारहा है| सूअर के बच्चे ने सीना तान के शेर को लड़ाई के लिए ललकार दिया| शेर का पेट भरा हुआ था और शेर को प्प्यास भी लगी थी| शेर ने कहा आज नहीं कल को लड़ेंगे| यह कहकर आगे को चल दिया| सूअर का बच्चा अपने परिवार में जाकर बड़ी बड़ी डींगें हांकने लगा कि मैंने आज शेर को लड़ाई के लिए ललकारा था |वह डर के मारे कल लडूंगा कह कर चला गया| यह बात सुन कर सूअर परिवार बहुत चिंतित हुआ| बच्चे से कहा कि तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी है| अब शेर तुम्हें छोड़ेगा नहीं| एक बूढ़े  सूअर ने कहा कि कल को तुम शेर से लड़ने जरुर जाना नहीं तो वह यहाँ आकर सब को मार खाएगा| बूढ़े  सूअर ने कहा जैसा मैं  कहूँ वैसा ही करना| बूढ़े  सूअर ने बताया कि कल जब तुम शेर के पास जाओगे तो खूब कीचड़ और गोबर को अपने शरीर पर मल कर जाना ताकि तुम्हारे शरीर से खूब सारी बदबू आए| सूअर के बच्चे ने ऐसा ही किया जब शेर के पास जाने लगा तो रास्ते में जो भी गोबर कीचड़ मिला उसको अपने शरीर पर  मल लिया| जब वह डरता डरता तालाब के पास पहुंचा तो शेर उसका इंतजार कर रहा था| वह डरता डरता शेर के नजदीक गया तो शेर ने कहा में तेरा ही इंतजार कर रहा था| शेर जैसे ही उसको मारने के लिए आगे बड़ा तो उसको उस में से बदबू आने लगी| शेर ने कहा छि: छी: तुम में  से तो बहुत गन्दी बदबू आ रही है में  तुम से नहीं लडूंगा| यह कह कर शेर ने अपना मुंह मोड़ लिया| सूअर के बच्चे की जान मे जान आई और दुम दबा कर वहां से भाग खड़ा हुआ| अपने परिवार में  जाकर भगवान का शुक्रिया  अदा कर कहने लगा "जान बची लाखों पाए- लौट के बुद्धू घर को आए"|                                        के: आर:  जोशी.  (पाटली)

Thursday, August 26, 2010

भेड़ की खाल मे भेड़िया

           क  गांव मे एक गडरिया  रहता था| उसके पास बहुत सारी भेड़ें थीं| वह भेड़ों को चराने के लिए रोज जंगल में  लेजाया करता था| गडरिये ने भेड़ों की सुरक्षा के लिए दो कुत्ते भी रख्खे हुए थे| कुत्ते काफी खूखार थे| किसी भी जंगली जीव को भेड़ों के नजदीक फटकने भी नहीं देते थे| उसी जंगल में  एक भेड़िया भी रहता था|  भेड़िया  हमेसा ताक मे रहता था कि  कैसे कोई भेड़   हाथ लग जाये| कुत्तों के आगे उसकी एक भी नहीं चलती थी| एक दिन गडरिये ने एक भेड़  को मार कर उसकी खाल   को सूखने डाला हुआ था| भेड़िये की नजर  भेड़ की खाल पर पड़ी तो भेड़िये ने सोचा कि  अगर यह खाल   मुझे मिल जाती तो में  इसे पहन कर भेड़ों के बीच में  आराम से जा सकता हूँ| और भेड़ों को आसानी से हासिल कर सकता हूँ| वह भेड़ों के जंगल जाने का इंतजार  करने लगा | थोड़ी ही देर में  गडरिया आया और भेड़ों को लेकर जंगल की और चला गया| भेड़िये ने मौका पा कर भेड़ की खाल को उठा लिया| भेड़िये ने भेड़ की खाल को पहन लिया और वहीँ पर एक कोने में  छिप कर भेड़ों के वापस  आने का इंतजार करने लग गया ताकि भेड़ों के साथ मिल कर वह भेड़ों के बाड़े  तक  जासके| शाम को जब खेलते कूदते भेड़ें आई तो भेड़िया भी उछलता हुआ उन में  मिल गया| किसी को कुछ भी पता नहीं चला|गडरिया भेड़ों को बाड़े मे बंद करके चला गया| भेड़िये  ने सोचा थोडा अधेरा हो जाये तो एक भेड़ को ले कर जंगल की ओर चला जाऊं | पर कुछ ही देर बाद गडरिया वापस आ गया| गडरिये के घर में  कुछ मेहमान आये हुए थे| गडरिया भेड़ को मार कर उस  के मीट से मेहमानों का स्वागत करना चाहता था| उसने एक मोटी सी भेड़ देखी और उसे उठा लिया | यह भेड़  की खाल मे भेड़िया था| गडरिये ने बाहर लाकर उसका काम तमाम कर दिया और  उसके मीट से ही महमानों को दावत दे दी| इस तरह भेड़िये ने दूसरे की जान लेते लेते खुद की जान गवाली|
                                                   के: आर: जोशी.| (पाटली)

Wednesday, August 11, 2010

"अकलमन्द चूहा"

            किसी  गांव में  एक किसान  रहता था| किसान  के पास थोड़ी बहुत जमीन थी जो एक नदी के किनारे पर थी| वहीँ नदी किनारे उसने अपना एक छोटा सा आशियाना बना रख्खा था| किसान पूरी मेहनत लगाकर जीजान से अपने खेतों मे काम करता था| महंगाई के दौर में  उसका घर का गुजारा ठीक से नहीं चलता था| उसने नदी किनारे अपने खेत में  देशी दारू बनानी शुरू कर दी| ताकि उसके घर का खर्चा चल सके| दारू निकाल कर वह एक डिब्बे में  रखता था| एक दिन एक चूहा खाने की तलाश मे वहां आ गया| खाना ढूढ़ते हुए चूहा दारू के डब्बे के ऊपर चढ़ गया डब्बे का ढक्कन कुछ खुला हुआ था| चूहा उस में  से नीचे झाँकने लगा तो दारू के बीच में  गिर गया|काफी हाथ पांव मारे  पर बाहर  निकल नहीं  सका| आखिर मे वह  बचाओ बचाओ चिल्लाने लगा | उसकी आवाज सुन कर एक बिल्ली वहां आ गयी | उसने देखा कि  चूहा दारू में  गिरा हुआ है| बिल्ली ने चूहे को कहा कि  मै तुम्हें बचा तो लूंगी    पर बाहर निकाल कर तुम्हें खा जाउंगी | चूहे ने कहा शराब  मे डूब कर मरने से तो अच्छा  है किसी के काम आसकू | कम से कम आप की  पेट की भूख तो मिटेगी| बिल्ली ने चूहे को बाहर निकाल लिया और लगी  खाने| चूहे ने कहा मेरे में  से शराब की बदबू आ रही है कम से कम धो तो लो|बिल्ली ने सोचा यह ठीक ही कह रहा है| जैसे ही बिल्ली चूहे को धोने लगी पकड़ थोड़ी सी ढीली हुई चूहा भाग कर पास के बिल मे जा छुपा| बिल्ली ने कहा कि  तुमने तो वादा किया था कि  तुम मेरा भोजन बनोगे पर अब भाग गए | चूहे ने कहा तब तो में  जोकुछ भी कह गया शराबी होके कह गया| लेकिन अब तो  शराब उतर  चुकी है| वादा तो आदमी नहीं निभाता मै क्या निभा सकता हूँ | 
                                                                                                         के: आर: जोशी. (पाटली)

Saturday, July 17, 2010

"पुर पुतइ पुरै पुर"

            ह  एक कुमाऊ  की पुरानी लोक कथा है| किसी गांव मे  एक गरीब परिवार रहता था | परिवार क्या था एक माँ थी एक बेटी थी| बेटी का नाम पुतइ  था| दोनों माँ बेटी जंगल से फल फूल तोड़  कर उन्हें बेच कर अपना गुजारा चलाती थीं| एक दिन माँ जंगल मे फल फूल तोड़ने गई |बेटी को घर की रखवाली के लिए घर मे छोड़ गई| घर मे पहले दिन के कुछ फल पड़े हुए थे| माँ जंगल को जाते समय कह गई थी कि इन फलों का ध्यान रखना| इन फलों को कोई खा ना जाए| बेटी ने ऐसा ही किया| चिड़िया तोते आदि उड़ाती रही| शाम  को जब माँ घर आई तो देखा कि फल पहले से कम हैं क्यूंकि फल सूख चुके थे| सूखने के बाद वह कम हो गए| माँ ने गुस्से में आकर बेटी के सर में डंडा दे मारा और बेटी की मौत हो गई| रात को खूब बारिश होगइ उस से उसके फल भीग गए भीगने के बाद फल फिर से उतने ही हो गए |यह देख कर माँ को बहुत पछतावा हुआ कि फल तो पूरे ही हैं|मैंने बगैर सोचे समझे ही अपनी बेकसूर बेटी को मार डाला|और वह कहने लगी "पुर पुतइ पुरै पुर " अर्थात वह अपनी बेटी से कहती है कि बेटी फल तो पूरे के पूरे हैं| मैंने ही तुझे गलत समझ कर मार डाला है|वह इस गम को सहन नहीं कर सकी और पुर पुतइ पुरै पुर कहते हुए उसके भी प्राण निकल गए| कहते हैं अगले जन्म  मे उसने  घुघूती (फाख्ता)  के रूप मे जन्म  लिया और वह आज भी इधर उधर पेड़ों मे बैठ कर "पुर पुतइ पुरै पुर" पुकारती फिरती है| इसलिए बगैर सोचे समझे कोई काम  नहीं करना चाहिए|
                                                                      के: आर: जोशी  (पाटली)

Monday, July 12, 2010

"आत्मा की आवाज"

            किसी गांव में  एक गरीब ब्राह्मण  रहता था | ब्राह्मण  गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था|परमात्मा में  आस्था रखने वाला था | वह रोज सवेरे उठ कर गंगा में  नहाने जाया करता था| नहा धो कर पूजा पाठ किया करता था| रोज की  तरह वह एक दिन गंगा में  नहाने गया नहा कर जब वापस आ रहा था तो उसने देखा रास्ते में  एक लिफाफा पड़ा हुआ है| उसने लिफाफा उठा लिया| लिफाफे को खोल कर देखा तो वह ब्राह्मण  हक्का बक्का रह गया लिफाफे मे काफी सारे नोट थे| रास्ते में  नोटों को गिनना  ठीक न समझ कर उसने लिफाफा बंद कर दिया और घर की तरफ चल  दिया| घर जाकर उसने पूजा पाठ करके लिफाफे को खोला | नोट गिनने पर पता चला की  लिफाफे मे पूरे बीस हजार रूपये थे| पहले तो ब्रह्मण ने सोचा कि भगवान  ने उस की सुन ली है| उसे माला माल  कर दिया है |
             ब्राह्मण  की ख़ुशी  जादा देर रुक नहीं सकी| अगले ही पल उसके दिमाग  में  आया कि हो सकता है यह पैसे मेरे जैसे किसी गरीब के गिरे हों| सायद किसी ने अपनी बेटी की शादी  के लिए जोड़ कर रख्खे हों| उसकी आत्मा ने  आवाज दी कि वह इन पैसों को ग्राम प्रधान को दे आये| वह उठा और ग्राम प्रधान के घर की तरफ को चल  दिया| अभी वह ग्राम प्रधान के आँगन  मे ही गया था उसे लगा कोई गरीब आदमी पहले से ही ग्राम प्रधान के घर आया हुआ है | वह भी उन के पास पहुँच गया| गरीब आदमी रो-रोकर प्रधान  को बता रहा  था की कैसे कैसे यत्नों से उसने पैसे जोड़े थे पर कहीं रास्ते में  गिर गए थे| सारी कहानी सुन ने पर गरीब ब्रह्मण ने जेब से पैसे निकले और उस गरीब आदमी को देते हुए कहा कि मुझे ये पैसे रास्ते में  मिले हैं| आप की कहानी सुन ने के बाद अब यकीन हो गया है कि ये पैसे आप के ही है| पैसे देखते ही गरीब के चेहरे पर रौनक  आ गई | गरीब ब्राह्मण  ने कहा पैसे गिन लीजिये| गरीब आदमी ने ब्राह्मण  का धन्यवाद करते हुए कहाकि पैसे तो पूरे ही हैं इसमे से में  आप को कुछ इनाम देना चाहता हूँ | गरीब ब्रह्मण ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया| ब्राह्मण  अपने घर को वापस  आ गया उस को इस बात की ख़ुशी थी कि  उसकी आत्मा की आवाज की जीत हुई है |
                                                       के: आर:  जोशी. (पाटली) 




 

Monday, July 5, 2010

सात बहनें

            क  राजा था | उस की सात बेटियां थीं| एक बार राजा ने अपनी सातों बेटियों को बुलाकर पूछा कि तुम किस के किस्मत का खाते हो| छः बड़ी बहनों ने कहा कि पिताजी हम तो आप का दिया हुआ ही खाते हैं तो आप की ही किस्मत का खाते हैं| सब से छोटी बहन ने कहा कि सब अपनी अपनी किस्मत का खाते हैं में भी अपनी किस्मत का खाती हूँ| राजा ने कहा कि मुझे बदनसीबी ने घेर लिया है इस लिए आप को घर छोड़ कर कहीं और जाना होगा|  यह कह कर राजा ने उन के रास्ते के लिए कुछ खाने  को बांधा और छः बड़ी बेटियों को दे दिया| छोटी बेटी को कुछ  चावल के दाने दे दिए| सातों बेटियां घर से अनजान  डगर की और चल  दीं| चलते चलते उन्हें प्यास लग गई| उन्होंने काफी इधर उधर पानी ढूढने की कोशिश की पर कहीं पानी नहीं मिला| थक हार के एक पेड़ के नीचे बैठ गई और छोटी बहन से कहा कि अब तू जाकर दूसरी तरफ पानी ढूढ़ |छोटी बहन ने आज्ञा का पालन करते हुए कहा ठीक है आप आराम करो मे ढूढ़ कर आती हूँ| थोड़ी ही दूरी पर उसे पानी दिखाई दिया| उसने अपनी प्यास बुझाई और फिर बहनों को आवाज दी कि यहाँ पर पानी है छहों बहनें पानी के पास पहुँच गई और अपनी प्यास बुझाई, तब छोटी बहन ने कहा कि थोडा मेरे को भी पीने दो तो बड़ी बहनों ने उसे झिडक दिया वह चुप हो गई क्यों कि उसने तो पहले ही पानी पी  लिया था| अब उनको भूख भी लग आई तो उन्हों ने खाने की पोटली खोली, देखा तो सारा खाना खराब हो चुका था  अब बारी आई सब से छोटी की |उसने जब अपनी पोटली खोल कर देखा तो उसमे चावल की जगह खीर बनी पड़ी थी| उसने थोडा थोडा सभी बहनों को दिया जो बच गया खुद खालिया|
          आगे चल कर उन्हें रात होने को आई तो थोड़ी  दूरी पर कुछ घर दिखाई दीए| बड़ी बहनों ने छोटी बहन से कहा कि  हम बहुत थक गए है तुम जाकर देखो वहां कौन रहता है और हमे रात रहने के लिए जगह मिलेगी? बेचारी छोटी बहन वहां गई और देखा की उन घरों में  कोई भी नहीं है | घर भी सात ही हैं | उसने छः घरों की सफाई की और सातवें घर मे कूड़ा डाल आई क्योकि सातवे घर में सभी साधन थे| घर का सारा सामान और घोडा भी था | वह वापिस अपनी बहनों के पास गई और कहा कि घर तो खाली हैं और घर भी सात ही है | छः घर तो में साफ कर आई हूँ और सारा कूड़ा सातवे घर में  डाल आई हूँ| बड़ी बहनों ने कहा कि हम सातों एक-एक घर ले लेते हैं | गन्दा घर तुम खुद रख लो तुम ही ने गन्दा किया है | सातों बहनें  आराम से इन घरों मे रहने लगी|
              कुछ समय बाद वहां नजदीक मे एक मेले लगा| बड़ी बहनों ने छोटी से कहा कि  तुम घर की रखवाली करो हम मेला देख कर आते हैं | उसने कहा ठीक है जैसा आप ठीक समझें| जब छहों बहनें मेले को चली गई तो छोटी ने अपना भेष बदल लिया राज कुमारों जैसा भेष बना कर घोड़े पर बैठ कर मेले को चल दी| मेले मे सभी लोग उसे देखते ही रहगये| उसके बाद बड़ी बहनों के घर आने से पहले ही घर पहुँच कर अपने पुराने ही भेष में दरवाजे पर बैठ गई और बहनों का इंतजार करने लगी| जब बड़ी बहने आइ तो छोटी ने पूछा मेला कैसा रहा तो बड़ी बहनों ने बताया कि मेले  मे एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया था सभी लोग उसे देखते ही रह गए| छोटी बहन ने कहा कि में तो घर की रखवाली मे थी| पर यह सब कुछ अपनी अपनी किस्मत का है| अपनी किस्मत से ही सब कुछ मिलता है |
                                                          के: आर: जोशी. (पाटली)

Saturday, June 26, 2010

गाय और बाघ

           एक जंगल में एक बाघ रहता था| उसका एक बच्चा भी था| दोनों एक साथ रहते थे| बाघ दिन में शिकार करने जंगल में चला जाता था, पर बच्चा अपनी मांद  के आस पास ही रहता था| उस जंगल में एक गाय भी रहती थी| उस का भी एक बछड़ा था| गाय भी दिन में  चरने चली जाती थी| बछड़ा आस पास ही रहता था| एक दिन गाय के बछड़े को बाघ का बच्चा दिखाई दिया, वह डर गया और छुप गया| शाम  को जब उसकी माँ आई तो वह बाहर आया | अपनी माँ का दूध पी कर बछड़ा खेलने लगा| उसे माँ का आसरा  मिल गया| अगले दिन फिर से गाय और बाघ जंगल की ओर चले गए, दोनों के बच्चे अपनी अपनी जगह खेलने लगे| बाघ के बच्चे की नजर गाय के बछड़े पर पड़ गई| वह उसकी ओर दोस्ती के लिए बढा |गाय का बछड़ा पहले तो डर गया, पर बाघ के बच्चे के कहने पर वह रुक गया| बाघ के बच्चे ने गाय के बछड़े को कहा कि हम दोस्ती कर लेते हैं|  गाय के बछड़े ने जवाब दिया कि तुम लोग मांसाहारी   हो हम लोग शाकाहारी  है तो हम में दोस्ती कैसी? बाघ के बच्चेने कहा कि हम लोग मांसाहारी जरुर हैं, पर तेरी मेरी दोस्ती पक्की | जब हमारी माताएं  जंगल को चली जाती हैं, तब हम आपस मे खेल लिया करेंगे |यह सुन कर गाय के बच्चे को सुकून  मिला और उसने आगे आ कर बाघ के बच्चे को गले से लगा लिया| दोनों ने कसमें खाई, कि कुछ भी हो हम अपनी दोस्ती नहीं तोड़ेंगे, चाहे इसके लिए हमे अपनी माताओं से ही क्यों न लड़ना पड़े|  गाय और बाघ में  तो पहले से ही दुश्मनी थी, इस बात को बच्चे जानते थे| गाय रोज़ अपने बछड़े के लिए दूध निकाल कर रख जाती थी| एक दिन गाय ने अपने बछड़े से कहा कि  जिस दिन  कभी मेरे  इस दूध का रंग लाल हो गया, उस दिन समझना कि  तुम्हारी माँ को किसी बाघ ने खा लिया है| गाय के बच्चे ने अपनी माँ से कहा ऐसा कभी नहीं  होगा| अगले दिन वह कुछ उदास जैसा था, तो बाघ के बच्चे ने उससे  कारण   पूछा तो गाय के बछड़े ने  अपनी माँ द्वारा कहे शब्द उसको बता दिए| बाघ के बच्चे ने कहा, ऐसा कभी भी नहीं होगा| और दोनों खेलने लग गए|
             एक दिन बाघ की नज़र गाय पर पड़ गई और उसने गाय को मारने की सोच ली | गाय रोज़ उस से बच कर निकल जाती थी | एक दिन बाघ गाय के रास्ते को घेर कर बैठ गया और जब गाय नजदीक आई तो उसपर हमला बोल दिया, बाघ ने गाय को मार कर खा लिया| उधर जब गाय का बछड़ा दूध पीने को गया, तो उसने  देखा  कि दूध लाल हो गया है तो वह समझ गया कि  बाघ ने मेरी माँ को मार दिया है | वह बाघ के बच्चे के पास गया और उसे सारी बात बताई कि उस की माँ ने आज मेरी  माँ को मार दिया है| क्यों कि दूध का रंग लाल हो गया है| बाघ के बच्चे ने कहा अगर मेरी  माँ ने तेरी माँ को मारा होगा तो  मेरी माँ भी जिन्दा नहीं बचेगी| शाम  को जब गाय वापस  नहीं आई और बाघ वापस  आ गया तो पता चल गया कि गाय को बाघ ने मार खाया है| बाघ के बच्चे ने भी अपनी माँ को मारने की सोच ली|  बाघ के  बच्चे ने गाय के बछड़े को कहा कि मेरी माँ ने तेरी माँ को मार खाया है, अब तू छुप के देखना मैं कैसे अपनी माँ को मारता हूँ| यह कह कर बाघ का बच्चा अपनी माँ के पास गया और उसको कहा कि वह एक ऊँची जगह पर बैठ जाय,  मैं  दूर से आ कर उसे  छूउगा | ऐसा कहते हुए उसने अपनी माँ को एक टीले पर बैठा दिया और दूर से आ कर बाघ को धक्का दे दिया| बाघ काफी दूर जा गिरा और उसकी मौत हो गई| इस तरह बाघ के बच्चे ने अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ अदा किया और दोनों की दोस्ती हमेशा  के लिए अटल रही|
                                                                                                                                                            के:आर: जोशी (पाटली)  

Friday, June 25, 2010

लाल सुअरी

          बहुत पहले की बात है, किसी गांव मे एक गरीब किसान रहता था| उस के सात बेटे थे | वे लोग सब मिल जुल कर खेत मे काम करते थे फिर भी उन के खाने लायक अनाज मुस्किल से होता था|एक बार किसान के खेत मे बाजरा लहलहा रहा था |खेती काफी अच्छी हो रही थी| एक दिन  अचानक कहीं से एक लाल रंग की सुअरी आ कर उन के खेत को चट कर गई| किसान के बेटों ने देखा कि  सुअरी सारा बाजरा खा गई है और जगह जगह अपना  मल त्याग गई है, मल मे बहुत सारे बाजरे के दाने हैं तो उन्हों ने सुअरी का सारा मल इकठ्ठा कर लिया फिर उसको धोकर उस मे से बाजरे के दाने निकाल कर पिसा लिए और उस आटे  की रोटियां बना कर खाने लगे| रोटियां बहुत मीठी और स्वादिस्ट  थीं| उन्हों ने सोचा कि  जिस सुअरी के मल में  सनी हुई बाजरे की रोटियां इतनी मीठी और स्वाद हैं उस सुअरी का मांस कितना मीठा नहीं होगा?
            अगले दिन किसान के बेटों ने सुअरी को मारकर लाने की थान ली| किसान का सबसे छोटे  बेटे की एक टांग ख़राब थी वह लंगड़ा कर चलता था |छः बड़े भाइयों  ने छोटे से कहा कि  तेरे से दौड़ा नहीं जाएगा इस लिए तू घर में  रह हम लोग जाकर सुअरी को मार कर ले आते हैं| छोटे को छोड़ कर सभी भाई सुअरी को मारने  के लिए चल  पड़े | घर से कुछ दूरी पर उन्हें पानी भरते हुए कुछ पनिहारियाँ दिखाई दीं| उन्हों ने पनिहारियों से पूछा की यहाँ से कोई लाल सुअरी को जाते हुए तो नहीं देखा? पनिहारियों ने कहा पहले हमारी गगरियाँ उठ्वावो फिर बताएगे| सभी भाइयों ने ताकत लगाईं पर गगरियाँ नहीं उठावा सके| पनिहारियों ने कहा एक गागर तो उठवा नहीं सकते सुअरी को क्या मरोगे कहकर बताया की सुअरी आगे को गयी है|वे आगे को चले गए | आगे उनको कुछ ग्वाले पशु चराते नजर आये | उन्हों ने ग्वालें से पूछा की यहाँ से लाल सुअरी को जाते हुए देखा है क्या? ग्वालों के दो बैल चनुँ और बिनुँ आपस मे लड़ रहे थे |ग्वालों ने कहा इन बैलों को अलग  कर दो तो बता देंगे सभी भाइयों  ने जोर लगाया पर बैलों की लड़ाई नहीं  छुड़ा सके| ग्वालों ने कहा इतना भी नहीं कर सके तो सुअरी को क्या मारोगे  कहा कि थोड़ा ही आगे गई है| वे आगे बड़े और उनको रात पड़ गई |वे सारी रात सुअरी को ढूढ़ते रहे |सुबह को सुअरी धूप सकते हुए उन्हें मिल गयी उन्हों ने सुअरी से कहा कि  तुमने हमारी सारी फसल ख़तम कर दी अब हम तुम्हें ख़तम करने आये हैं|अगले ही पल सुअरी ने छेहों भाइयों को निगल  लिया|
              इधर छोटे भाई को चिंता हो रही थी कि  रात पड़ने पर भी उसके भाई वापिस नहीं आये उसकी रात बड़ी मुश्किल से गुजरी सुबह सवेरे ही वह भाइयों की खोज मे निकल  पड़ा| रस्ते में  उसे पानी भारती हुई पनिहारियाँ मिली तो उसने पनिहारियों से पूछा कि  उन्होंने उसके छः भाइयों को जाते हुए देखा  है? पनिहारियों ने कहा पहले हमारे घड़े  उठ्वावो फिर बताएंगी |उसने अपनी लंगड़ी लात  को घड़े पर टिकाया और हाथ से जोर से घड़े को ऊपर को उठाया तो घडा उठ गया| घड़े उठवाकर उन्हों ने उसे बताया कि  यहीं आगे को गए हैं| वह आगे बढ गया | कुछ दूरी पर उसे ग्वाले मिल गए उसने उन से भाइयों के बारे मे पूछा तो उन्हों ने कहा कि  पहले हमारे बैलों की लड़ाई छुड्वाओ फिर बताएँगे | उसने अपनी लंगड़ी लात से दोनों को ऐसी लात मारी  कि  वह अलग  अलग हो गए| ग्वालो ने कहा कि  अभी अभी आगे गए हैं| कुछ ही दूरी पर उसे लाल सुअरी बैठी हुई दिखाई दी| सुअरी के पास जाते ही उसने सवाल किया कि  मेरे भाई कहाँ हैं? सुअरी ने जवाब दिया कि  उनको तो में  निगल गई| सुनतेही छोटे भाई ने अपनी लंगड़ी लात से एक लात जोर से सुअरी के नाक पर दे मरी| इस से सुअरी डर गई उसने कहा में  तुम्हारे भाइयों को वापिस कर देती हूँ मुझे मत मरो| छोटे भाई ने कहा कि  तुम मेरे भाइयों को अपनी नौ इन्द्रियों में  से किसी भी इन्द्री से बहार नहीं निकालोगी  इन से मेरे भाई गंदे हो जाएँगे| और किसी रास्ते से उन्हें बाहर  निकालो| सुअरी ने अपनी नाभि के रास्ते से बाहर  निकाल दिया| यह देख कर सभी भाई बहुत खुश  हुए और गले मिलने लगे| सुअरी मौका देख कर वहां से भाग गई फिर उनके हाथ नहीं आई| सातों भाई खुश थे की उनकी जान  बच गई| पर उनको अफ़सोस भी था कि  सुअरी फिर बच के निकाल गई| सातों भाई हंसी  ख़ुशी  अपने घर आगये|
                                                     के: आर: जोशी (पाटली)
               

Saturday, June 19, 2010

इन्दर ( इनरु मुया )

            बहुत समय पहले की बात है एक गांव में  इन्दर नाम का लड़का  रहता था| इन्दर का इस दुनियां में कोई नहीं था|बेचारा अनाथ था| लोग उसे इनरु मुया  इनरु  मुया कहते थे|(मुया का मतलब अनाथ से है) जब इन्दर कुछ बड़ा हुआ तो गांव के लोगों ने उसे अपने गाय बछिओं को चराने के लिए ग्वाला रख लिया|इन्दर रोज सुबह गायों को लेकर बन में चला जाता सारा दिन गायों को चराता  और शाम  को वापस  ले आता| गांव वाले उसे बारी बारी से खाना और कपड़ा दे देते थे | इस तरह इन्दर का समय बीत  रहा था| एक दिन किसी ने इन्दर को दो बेर देदिए| बेर स्वाद थे इन्दर ने बेर खा कर गुठलियाँ जंगल में जा कर मिटटी मे दबा दी कुछ समय बाद वहां पर बेर के पेड़  उग आये | इन्दर ने पौधों  की साम संभाल की तो कुछ ही सालों में  पौधे काफी बड़े   हो गए और उन पर फल भी लगने लग गए| बेर काफी मीठे और स्वादिष्ट थे| इन्दर खुद भी खाता और लोगों को भी खाने को देता था| एक बार एक बुढ़िया वहां से जा रही थी|  उस की नज़र बेरों पर गई, उसने इन्दर से बेर मांगे तो इन्दर ने बुढ़िया को बेर दे दिए| वह बुढ़िया एक नरभक्षी थी| जब उसने बेर खाए तो सोचा, ये बेर अगर इतने मीठे हैं तो इन बेरो को खाने वाला कितना मीठा नहीं होगा? उसने इन्दर को पकड़ने   की चाल बनाई | बुढ़िया के कंधे पर एक बोरा टांका हुआ था | उसने सोचा कि  इन्दर को किसी तरह बोरे में  डाल लूँ  तो शाम  का खाना हो जाएगा| उसने इन्दर को अपने पास बुलाया और कहा इस बोरे में  जादू है इस बोरे में  बैठ कर जो मांगो मिल जाता है| इन्दर बेचारा सीधा साधा था उस ने सोचा देखूं क्या होता है| जैसे ही इन्दर बोरे में  बैठा बुढ़िया ने बोरे को  ऊपर से बांध दिया और पीठ पर बोरा लगा कर अपने घर की तरफ चल दी| रास्ते  में  बुढ़िया को प्यास लगी तो पानी पीने के लिए बुढ़िया ने बोरा जमीन पर रख्खा और पानी पीने चली गयी| वहां से कोई  राही  गुजर रहा था|  इन्दर ने उस से बोरे का मुंह खोलने के लिए कहा | उसने बोरे का मुंह खोल दिया| इन्दर बोरे से   बाहर आ गया | इन्दर ने फटा फट बोरे में  पत्थर कांटे भ्रिड ,तितैया आदि जो भी हाथ लगा बोरे में  भर दिया और ऊपर से वैसे ही बांध दिया | बुढ़िया आई बोरा उठाया घर को चल दी | रास्ते  में  उस की पीठ पर कांटे चुभने लगे तो उस ने सोचा कि इन्दर चिकोटी  काट रहा है, उस ने कहा जितना मर्जी चिकोटी   काट ले, घर जा कर तो मैं  तुझे ही काट दूंगी| घर जा कर उस ने अपनी बेटी से कहा कि तू जरा इस का मांस तैयार  कर मैं  अभी आती हूँ, कहकर बुढ़िया कुछ लेने बाहर  चली गयी| बुढ़िया की बेटी ने जब बोरे का मुंह खोला तो सारे भ्रिंद और तितैया बुढ़िया की बेटी पर चिपट   गए और उस का बुरा हाल  कर दिया | बुढ़िया ने आ कर देखा तो पछताने  लगी कि मैंने रास्ते  में  क्यों उतारा|
           कुछ दिनों बाद बुढ़िया अपना भेष  बदल कर फिर से इन्दर के पास जंगल में  गयी और इन्दर से बेर मांगे ,इन्दर ने कहा कि तू वही बुढ़िया है जिस ने कुछ दिन पहले मुझे बोरे में  बंद कर लिया था | बुढ़िया ने कहा कि में  तुझे वैसी बुढ़िया लग रही हूँ  में  तो किसी को यहाँ जानती भी नहीं हूँ| इन्दर ने देखा नजदीक में  अब बेर भी नहीं हैं, तो उसने बुढ़िया से कहा कि बेर तो अब पहुँच से दूर रह गए हैं पंहुचा नहीं जाता है तो बुढ़िया ने तरकीब बताई कि सूखी टहनी पर पैर रख कर आगे बढ़ो तो बेर हाथ आ जाएँगे | इन्दर ने वैसा ही किया |जैसे ही इन्दर ने सूखी टहनी पर पैर रखा टहनी टूट गई और इन्दर नीचे  गिर गया नीचे बुढ़िया पहले से ही तैयार थी उस ने बोरे का मुंह खोल दिया और इन्दर बोरे में  जा गिरा| बुढ़िया ने फटा फट बोरे का मुंह बंद कर दिया| बुढ़िया ने बोरा फिर पीठ से लगाया और घर की तरफ चल दी , आज उसने कहीं भी बोरे को रास्ते में  नहीं उतारा, सीधे घर जाकर ही उतारा| बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि आज तो मैं  इन्दर को पकड़  कर सीधे घर ही लाई हूँ , इस का मांस तैयार कर मैं  इस के तडके   का इन्तजाम  करती हूँ, कह कर बुढ़िया बाहर   चली गयी| बुढ़िया के जाने के बाद जब बुढ़िया की बेटी ने बोरे का मुंह खोला तो देखा कि इन्दर के बाल  बहुत पतले और लम्बे हैं तो उसने इन्दर से पूछा कि
उसके बाल  इतने लम्बे कैसे हो गए, तो इन्दर ने कहा कि मैं  अपने बालों को उखल में  कूटता हूँ ,इस से मेरे बाल  पतले और लम्बे बनते हैं| बुढ़िया की बेटी ने कहा एक बार मेरे बालों को भी कूट दो ताकि मेरे बाल लम्बे और पतले हो जाएँ, इन्दर ने कहा चलो उखल के पास चलो मैं  तुम्हारे बालों को कूट देता हूँ, ताकि तुम्हारे बाल  भी लम्बे हो जाएँ |बुढ़िया की बेटी मान गई और इन्दर को उखल में  ले गई,  इन्दर ने कहा अपने बालों को उखल में डालो मैं  कूट देता हूँ| बुढ़िया की बेटी ने अपने बाल  उखल में  डाल दिए  और इन्दर कूटने लग गया|उसने एक दो चोट बालों में  मारी  फिर उसके बाद बुढ़िया की बेटी के  गर्दन पर दे मारी  जिस से बुढ़िया की बेटी मर गई, इन्दर ने जल्दी से बुढ़िया की बेटी के कपडे  उतार कर खुद पहन लिए और बुढ़िया की बेटी का मांस तैयार करके चूल्हे के पास बैठ गया, जब बुढ़िया आई तो इन्दर चुपचाप बाहर  आ गया और छत के झरोखे से देखने लगा, बुढ़िया ने मांस को भून कर तैयार किया और बेटी को आवाज दी, बेटी होती तो आती वह तो इन्दर ने मारदी |इन्दर जो झरोखे से देख रहा था  बोल उठा "देखी  अपनी चालाकी अपनी बेटी खुद ही खाली" बुढ़िया ने कहा तुम्हारे पास क्या सबूत है तो इन्दर ने बुढ़िया की बेटी के कपडे  झरोखे से नीचे गिरा दिए और उस के हाथ की अंगूठी भी गिरा दी| बुढ़िया बेटी की जुदाई सहन नहीं कर सकी| उसने अपनी जीभ अपने दातों तले दबा ली और काटली| इस तरह एक नरभक्षी बुढ़िया का अंत हो गया| इन्दर फिर जंगल में  आ गया और अपनी रोज मर्रा की जिन्दगी जीने लग गया|                                                           के:आर:जोशी (पटली)