Thursday, November 25, 2010

बाघ और बगला

             एक  बार  एक बाघके गले में हड्डी अटक गयी| बाघ ने उसे निकलने की बड़ी चेष्टा की, पर उसे सफलता नहीं मिली| पीड़ा से परेशान हो कर वह इधर उधर दौड़ भाग करने लगा| किसी भी जानवर को सामने देखते ही वह कहता-भाई!यदि तुम मेरे गले से हड्डी को  बाहर निकाल  दो तो मै तुम्हें विशेष पुरस्कार  दूंगा और आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा| परन्तु कोई भी जीव भय  के कारण  उस की  सहायता करने को राजी नहीं हुआ | 
             पुरस्कार  के लोभ में आख़िरकार एक बगला तैयार हुआ| उसने बाघ के मुंह में अपनी लम्बी चौंच डाल कर अथक प्रयास के बाद उस हड्डी को बाहर निकाल दिया| बाघ को बड़ी राहत मिली| बगले ने जब अपना पुरस्कार  माँगा तो बाघ आग बबूला होकर दांत पीसते  हुए बोला- अरे मूर्ख! तूने  बाघ के मुंह में अपनी चौंच  डाल दी थी, उसे तू सुरक्षितरूप से बाहर निकाल सका, इसको अपना  भाग्य न मान  कर ऊपर से पुरस्कार  मांग रहा है? यदि तुझे अपनी जान प्यारी है तो मेरे सामने से दूर हो जा, नहीं तो अभी तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा| यह सुनकर बगला स्तब्ध रह गाया| और तत्काल वहां से चल दिया| इसी लिए कहते हैं कि- दुष्टों के साथ जादा मेलजोल अच्छा नहीं|

3 comments:

  1. bahut hi achhi lagi kahani.ek sikxha.-prad prastuti
    vastav me kabhi kabhi bhalai ke badle jaan ganvane ki bhi noubat aa jati hai.
    poonam

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  2. अच्छी शिक्षा.
    ब्लागजगत में आपका स्वागत है. शुभकामना है कि आपका ये प्रयास सफलता के नित नये कीर्तिमान स्थापित करे । धन्यवाद...

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  3. आजकल यह बिलकुल सटीक है कि,उपयुक्त व्यक्ति न हो तो उसकी मदद नहीं करनी चाहिए.

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