बहुत समय पहले की बात है| एक गांव में एक बहेलिया रहा करता था| वह जंगल से चिड़ियों को पकड़ कर लता था और कसबे में जाकर उन्हें बेच दिया करता था| उस से जो कुछ भी मिलता उस से अपना और अपने परिवार का पेट पालता था| एक दिन वह जंगल में घूम रहा था| उसे एक पेड़ के कोटर में तोते के दो बच्चे खेलते हुए दिखाई दिए| उसने तोते के उन बच्चों को पकड़ लिया और अगले दिन नगर में बेच दिया| एक बच्चा एक चोर ने खरीद लिया और एक बच्चा किसी सज्जन आदमी ने खरीद लिया| तोते के बच्चे धीरे धीरे बड़े हो गए| उन्होंने बोलना भी सीख लिया| एक दिन नगर में बादशाह घूमने आया, जैसे ही बादशाह चोर के घर के पास आया तो तोता जोर जोर से बोलने लगा:- "शिकार आया है लूट लो बच के ना जाने पाए"| बादशाह आगे बढ़ गया उसे आगे उस सज्जन का घर मिल गया, जैसे ही तोते ने बादशाह को देखा तो बोल पड़ा:- नमस्ते जी, आप का स्वागत है, आप थक गए होंगे बैठिए चाय पानी पी कर जाना| बादशाह दोनों की बात सुन कर हैरान थे कुछ समझ में नहीं आ रहा था| आगे जाने पर राजा को वही बहेलिया मिल गया| बादशाह ने बहेलिया को बुलाकर पूछा कि दोनों तोते एक समान हैं पर दोनों की भाषा में इतना फरक क्यों है| बहेलिये ने बताया कि यह सब संगत का असर है| एक तोते का मालिक चोर है जो उसके घर में होता है वह तोते ने सीख लिया है, और दूसरे तोते का मालिक एक सज्जन आदमी है, जो उसके घर में होता है वह उसके तोते ने सीख लिया है| संगत का असर सब पर पड़ता है चाहे वह आदमी हो या पंछी| इसलिए हमें हमेशा अच्छी संगत में ही रहना चाहिए|
Tuesday, September 27, 2011
Sunday, September 18, 2011
"जो हुआ अच्छा हुआ"
बहुत समय पहले की बात है| एक राजा थे और उनके साथ एक मंत्री थे| उनके मंत्री की आदत थी कि वह कुछ भी होता कहते थे "जो हुआ ठीक हुआ"|एकबार मंत्री का बेटा खेल रहा था, खेलते खेलते वह नीचे गिर पड़ा उसके पैर में चोट लग गई तो मंत्री ने कहा "जो हुआ अच्छा हुआ"|राजा को यह सुन कर हैरानी हुई पर राजा ने कुछ नहीं कहा|
कुछ समय बाद राजा तलवार बाजी का अभ्यास कर रहे थे|अचानक तलवार से राजा की एक अंगुल कट गई, बहुत जोर से खून बहने लग गया| आदत वस मंत्री ने फिर कह दिया "जो हुआ अच्छा हुआ"|राजा को यह सुन कर बहुत गस्सा आया, उन्होंने अपने सैनिकों को हुक्म दिया कि मंत्री को कैद कर के जेल भेज दिया जाए| सैनिकों ने मंत्री को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया|
कुछ समय बाद एक दिन राजा शिकार खेलने अकेले जंगल में चले गए वहां वे रास्ता भटक गए| भटकते हुए वे एक आदिवासी इलाके में पहुँच गए| आदि वासियों ने राजा को बंदी बना लिया|वे अपने देवता को खुश करने के लिए नरबली देना चाहते थे| राजा की बलि देने के लिए जैसे ही तलवार उठाई एक ने देखा कि राजा की एक अंगुली कटी हुई है|अंगभंग व्यक्ति की बलि नहीं दीजाती है|उन्हों ने राजा को छोड़ दिया राजा भटकते हुए अपने महल में आगये| महल में पहुंचते ही उन्हों ने मंत्री को हाजिर करने का हुक्म दिया| मंत्री के हाजिर होने पर राजा ने सारी आप बीती सुनाई और कहा "जो हुआ अच्छा हुआ"| मेरे लिए तो यह ठीक ही हुआ, पर आप को जो बेकसूर जेल जाना पड़ा उसके बारे में क्या विचार है| मंत्री ने जवाब दिया "जो हुआ अच्छा हुआ"| अगर मुझे जेल में बंद नकिया होता तो आप मुझे भी शिकार पर साथ लेके जाते और आदिवासी आप को छोड़ कर मेरी बलि देदेते|इस लिए जो हुआ अच्छा हुआ|
कुछ समय बाद राजा तलवार बाजी का अभ्यास कर रहे थे|अचानक तलवार से राजा की एक अंगुल कट गई, बहुत जोर से खून बहने लग गया| आदत वस मंत्री ने फिर कह दिया "जो हुआ अच्छा हुआ"|राजा को यह सुन कर बहुत गस्सा आया, उन्होंने अपने सैनिकों को हुक्म दिया कि मंत्री को कैद कर के जेल भेज दिया जाए| सैनिकों ने मंत्री को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया|
कुछ समय बाद एक दिन राजा शिकार खेलने अकेले जंगल में चले गए वहां वे रास्ता भटक गए| भटकते हुए वे एक आदिवासी इलाके में पहुँच गए| आदि वासियों ने राजा को बंदी बना लिया|वे अपने देवता को खुश करने के लिए नरबली देना चाहते थे| राजा की बलि देने के लिए जैसे ही तलवार उठाई एक ने देखा कि राजा की एक अंगुली कटी हुई है|अंगभंग व्यक्ति की बलि नहीं दीजाती है|उन्हों ने राजा को छोड़ दिया राजा भटकते हुए अपने महल में आगये| महल में पहुंचते ही उन्हों ने मंत्री को हाजिर करने का हुक्म दिया| मंत्री के हाजिर होने पर राजा ने सारी आप बीती सुनाई और कहा "जो हुआ अच्छा हुआ"| मेरे लिए तो यह ठीक ही हुआ, पर आप को जो बेकसूर जेल जाना पड़ा उसके बारे में क्या विचार है| मंत्री ने जवाब दिया "जो हुआ अच्छा हुआ"| अगर मुझे जेल में बंद नकिया होता तो आप मुझे भी शिकार पर साथ लेके जाते और आदिवासी आप को छोड़ कर मेरी बलि देदेते|इस लिए जो हुआ अच्छा हुआ|
Sunday, September 11, 2011
भोली गाय
बहुत समय पहले की बात है| किसी जंगल में एक गाय रहती थी| जो जंगल में घास चर कर अपना पेट भरती थी| इसी जंगल में एक शेर भी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार किया करता था| समय आने पर गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया| बछड़े को जंगली जानवरों से बचाने के लिए गाय ने एक सुरक्षित जगह ढूढ़ ली| गाय सुबह अपने बछड़े को दूध पिला कर इस सुरक्षित जगह पर बैठा जाती, आप जंगल में घास चरने चली जाया करती थी| बछड़ा सारा दिन वहीँ बैठा रहता और खेलता रहता था| शाम को गाय आकर उसे दूध पिलाती और बहुत सारा प्यार देती थी| बड़े मजे से गाय और बछड़े के दिन बीत रहे थे|एक दिनजब गाय शाम को जंगल से घास चर के वापस आरही थी तो उसे एक पेड़ के नीचे शेर बैठा हुआ दिखाई दिया| गाय कुछ सोचती इस से पहले शेर ने गाय को देख लिया और अपने पास बुला लिया| गाय डरती हुई शेर के पास गई तो शेर ने कहा "मैं भूखा हूँ तुम्हें खाना चाहता हूँ"| गाय ने गिडगिडाते हुए कहा "मुझे कोई इतराज नहीं है आप मुझे खा सकते हैं लिकिन मेरी एक बिनती है कि मेरा बछड़ा सुबह से भूखा है पहले में उसे दूध पिला आऊं फिर आप मुझे मार कर खा लेना"|शेर ने कहा "तुम भाग जाओगी दुबारा यहाँ नहीं आओगी इस लिए अभी खता हूँ"| गाय ने कहा "मैं वादा करती हूँ कि बछड़े को दूध पिला कर मैं जरुर वापस आ जाउंगी"| शेर ने कहा " ठीक है जाओ और जल्दी ही वापस आ जाओ"| गाय अपने बछड़े के पास गई उसको दूध पिलाया और बहुत सारा प्यार किया|गाय की आँखें भर आई| गाय आंसू पोछते हुए शेर के पास लौट आई| शेर से कहा "अब आप मुझे खा सकते हैं"| गाय के इस भोले पन को देख कर शेर को दया आगई| शेर ने गाय से कहा मैंने तुम्हें जीवन दान दिया जाओ जाकर अपने बछड़े को दूध पिलाओ और बहुत सारा प्यार दो|गाय ख़ुशी ख़ुशी अपने बछड़े के पास आगई और दोनों आराम से रहने लगे|
Monday, September 5, 2011
खाने पीने को बंदरी डंडा खाने को रीछ
किसी शहर में एक मदारी रहता था| मदारी के पास एक बंदरी और एक रीछ थे| मदारी सारा दिन बंदरी और रीछ को नचाकर लोगों का मनोरंजन करता था, उस से जो कुछ भी मिलता उस से अपना और बंदरी और रीछ का पेट पलता था| एकबार मदारी को किसी काम से बाहर जाना पड़ा| मदारी बंदरी और रीछ को घर में छोड़ गया| बाहर जाते समय मदारी अपने लिए एक बर्तन में दही ज़माने को रख गया| मदारी के जाने के बाद कुछ देर में बंदरी को भूख लग गई| रीछ तो बेचारा चुपचाप सो गया| बंदरी ने चुपचाप मदारी का जमाया हुआ दही खालिया और थोडा सा दही सोए पड़े रीछ के मुंह पर लगा दिया| जब मदारी वापस आया तो उसने रोटी खाने के लिए दही देखा तो दही वाला बर्तन खाली था| उसने देखा कि रीछ के मुंह पर दही लगा हुआ था| मदारी ने आव देखा ना ताव देखा डंडा लेकर रीछ को पीटडाला | बंदरी चुपचाप बैठ कर तमासा देख रही थी| रीछ बेचारे को मुफ्त में मार पड़ गई| खा पी बंदरी गयी| तभी से यह कहावत बनी है कि खाने पीने को बंदरी डंडे खाने को रीछ|
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