Monday, December 31, 2012

नए साल 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ|

                  नया  साल 2013 आप लोगों के लिए खुशियों भरा हो मंगलमय हो भगवान आप सब की मनोकामना पूर्ण करे और आप सब नए साल 2013 में दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की  करें| यह मेरी आप सब के लिए हार्दिक शुभकामना है| नए साल के आगमन पर आइए हम संकल्प करें कि हम इस देश के सच्चे नागरिक बनें| अंत में आप सब को नए साल 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Thursday, June 14, 2012

सियार और बन्दर

             प्राचीन काल बात है, दो ब्यक्ति आपस में बहुत अच्छे मित्र थे, पर दूसरे जन्म में उनमें से एक को सियार की योनि मिली और दूसरा  बन्दर बना।
            सियार जो था, वह शमशान में रहा करता थाऔर मुर्दों का भोजन किया करता था। वहीँ एक वृक्ष था, उसपर एक बन्दर भी रहा करता था। विशेष बात यह थी कि दोनों को अपने पूर्वजन्म की साडी बातें याद थीं।
           एक दिन वृक्ष पर बैठे बन्दर ने सियार से जिज्ञासावश पूछा-सियार भाई! तुम पूर्वजन्म में कौन थे और तुम ने कौन सा ऐसा निंदनीय कार्य किया था, जिस से तुम्हें सियार की पशु-योनि प्राप्त हुई है और ऐसे घृणित एवं दुर्गन्धयुक्त मुर्दे से अपना पेट भरना पड़ रहा है। इसपर सियार ने दुखी होते हुए कहा-
            भाई वानर! क्या बताऊँ। पूर्वजन्म मैं मनुष्य-योनि में था और मैंने एक ब्रह्मण देवता को एक वस्तु देने की प्रतिज्ञा कर के फिर उन्हें वह वस्तु दी नहीं थी, इसी प्रतिज्ञा-भंग के दोष से मुझे यह दुखित पापयोनि प्राप्त हुई है। आब तो अपने कर्मका भोग भोगना ही है। मेरी तो बात हो गई, आब तुम बताओ कि तुमने कौन सा पाप किया था?
            इस पर वानर बोला-सियार भाई! में भी पहले मनुष्य ही था। किन्तु मेरा यह स्वभाव था कि में सदा ब्राहमणों के फल चुराकर ख्य करता था। इसी पापकर्म से मुझे यह वानर-योनि प्राप्त हुई है। इस लिए किसी की भी आशाको भंग नहीं करना चाहिए। संकल्प किया गया दान अवश्य ही देना चाहिए अन्यथा दुसरे जन्म में महां कष्ट उठाना पड़ता है।     

Thursday, May 31, 2012

अन्धकासुर

                   बहुत समय पहले की बात है| हिरण्याक्ष का एक बेटा था, जिसका नाम अन्धक था| अन्धक ने तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी की कृपा से न मारे जाने का वर प्राप्त कर के त्रिलोकी का उपभोग करते हुए इन्द्रलोक को जीत लिया और वह इन्द्र को पीड़ित करने लगा| देवतागण उस से डर कर मंदरपर्वत की गुफा में प्रविष्ट हो गए| महादैत्य अन्धक भी देवताओं को पीड़ित करता हुआ गुफा वाले मंदरपर्वत पर पहुँच गया| सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना  की| यह सब वृतांत सुन कर भगवान शिव अपने गणेश्वरों  के साथ अन्धक के समक्ष पहुँच गए तथा उन्हों ने उसके समस्त राक्षसों को भस्म कर के अन्धक को अपने त्रिशूल से बींध डाला| यह देख कर ब्रह्मा, विष्णु आदि सभी देवगण हर्षध्वनि करने लगे| त्रिशूल से बिंधे हुए उस अन्धक के मन में सात्विक भाव जागृत हो गए| वह सोचने लगा- शिव की कृपा से मुझे यह गति प्राप्त हुई है| अपने पुण्य-गौरव के कारण वह अन्धक उसी स्थिति में भगवान शिव की स्तुति करने लगा| उसकी स्तुति से प्रसन्न हो कर भगवान शंकर दयापूर्वक उसकी ओर देखते हुए बोले- हे अन्धक! वर मांगो, तुम क्या चाहते हो? अन्धक ने गदगद बाणी में महेश्वर से कहा- हे भगवन! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मुझे यही वर प्रदान करें की आप में मेरी सदा भक्ति हो|
                अन्धक का वचन सुन कर शिव ने उस दैत्येन्द्र को अपनी दुर्लभ भक्ति प्रदान की और त्रिशूल से उतार कर उसे गणाधिपद प्रदान किया|

Saturday, May 12, 2012

ऋषि शंख और लिखित

                          ऋषि शंख और लिखित दो भाई थे| दोनों धर्मशास्त्रके परम मर्मग्य थे| विद्या अध्ययन समाप्त कर के दोनों ने विवाह किया और अपने अपने आश्रम अलग अलग बना कर रहने लगे|
                            एक बार ऋषि लिखित अपने बड़े भाई शंख के आश्रम पर उनसे मिलने गए| आश्रम पर उस समय कोई भी नहीं था| लिखित को भूख लगी थी| उन्हों ने बड़े भाई के बगीचे से एक फल तोडा और खाने लगे| वे फल पूरा खा भी नहीं सके थे, इतने में शंख आगये| लिखित ने उनको प्रणाम किया|
                             ऋषि शंख ने छोटे भाई को सत्कार पूर्वक समीप बुलाया| उनका कुशल समाचार पूछा| इसके पश्चात् बोले-- भाई तुम यहाँ आये और मेरी अनुपस्थिति में इस बगीचे को अपना मानकर तुमने यहाँ से फल लेलिया, इस से मुझे प्रशन्नता हुई;किन्तु हम ब्राह्मणों का सर्वस्व धर्म ही है, तुम धर्म का तत्व जानते हो| यदि किसी की वस्तु  उसकी अनुपस्तिथि में उसकी अनुमति के बिना ले ली जाए तो इस कर्म की क्या संज्ञा होगी? "चोरी!" लिखित ने बिना हिचके जवाब दिया| मुझ से प्रमादवस यह अपकर्म होगया है| अब क्या करना उचित है?
                           शंख ने कहा! राजा से इसका दंड ले आओ| इस से इस दोष का निवारण हो जायेगा| ऋषि लिखित राजधानी गए| राजाने उनको प्रणाम कर के अर्घ्य देना चाहा तो ऋषि ने उनको रोकते हुए कहा-राजन! इस समय में आपका पूजनीय नहीं हूँ| मैंने अपराध किया है, आपके लिए मैं दंडनीय हूँ|
                           
                          अपराध का वर्णन सुन कर राजाने कहा- नरेश को जैसा दंड देने का अधिकार है, वैसे ही क्षमा करने का भी अधिकार है| लिखित ने रोका- आप का काम अपराध के दंड का निर्णय करना नहीं है,विधान निश्चित करना तो ब्रह्मण का काम है| आप विधान को केवल क्रियान्वित कर सकते हैं| आप को मुझे दंड देना है, आप दंड विधान का पालन करें|
                          उस समय दंड  विधान के अनुसार चोरी का दंड था- चोर के दोनों हाथ काट देना| राजा ने लिखत के दोनों हाथ कलाई तक कटवा दिए| कटे हाथ ले कर लिखित प्रशन्न हो बड़े भाई के पास लौटे और बोले- भैया! मैं दंड ले आया|


                         शंख ने कहा- मध्यान्ह-स्नान-संध्या का समय हो गया है| चलो स्नान संध्या कर आयें| लिखित ने भाई के साथ नदी में स्नान किया| अभ्यासवश तर्पण करने के लिए उनके हाथ जैसे ही उठे तो अकस्मात् वे पूर्ण हो गए| उन्हों ने बड़े भाई की तरफ देख कर कहा- भैया! जब यह ही करना था तो आप ने मुझे राजधानी तक क्यूँ दौड़ाया? शंख बोले - अपराध का दंड तो शासक ही दे सकता है; किन्तु ब्रह्मण को कृपा करने का अधिकार है|

Monday, April 2, 2012

उदासी कैसी?

                    बहुत समय पहले की बात है। एक जौहरी की दुकान में कई आदमी काम करते थे। जौहरी का कारोबार अच्छा चलता था। दुकान में जगह कम होने की वजह से जौहरी ने एक कारीगर को दुकान के बाहर बैठा दिया। वह दुकान के बाहर ही बैठ के सोना गला कर उसको हथौड़े से कूट पीट कर सुन्दर गहने बनता था। 
                    सुनार के बगल की दुकान में एक लोहार की दुकान थी। लोहार लोहे को गरम करके हथौड़े से जोर जोर से पीट कर लोहे के औजार बनाया करता था। एक दिन जब सुनार का कारीगर सोने को गला रहा था तो उसमें से सोने का एक कण उछल कर गरम लोहे के कण के साथ जा मिला। सोने के कण ने देखा कि लोहे के कण बहुत उदास हैं। उसने पूछा क्यूँ भाई इतने उदास क्यूँ हो। लोहे के कण ने जबाब दिया कि तुम्हे तो कोई और पीट ता है। हमें तो हमारे ही अपने सगे जोर जोर से पीटते रहते हैं। अपनों के पीटे जाने पर कुछ अधिक ही दर्द होता है। 
                     इस पर सोने के कण ने जबाब दिया कि हम  लोगो को खुश होना चाहिए कि वे हमें पीट कर एक सुन्दर आकर भी तो देते है। जिस से हम लोगों के काम आ सकते हैं। आप लोगों को तो और भी खुश होना चाहिए क्यों कि आप के अपने ही तो आप का भविष्य बना रहे हैं। भविष्य बनाने में थोड़ी बहुत परेशानी तो उठानी ही पड़ती है इस में उदासी कैसी। दूसरों के काम आने के लिए अगर हमें थोडा बहुत तकलीफ भी उठानी पड़े तो खुश हो कर उठानी चाहिए।

Saturday, March 10, 2012

गाय और बाघ

             एक जंगल में एक बाघ रहता था| उसका एक बच्चा भी था| दोनों एक साथ रहते थे| बाघ दिन में शिकार करने जंगल में चला जाता था, पर बच्चा अपनी मांद  के आस पास ही रहता था| उस जंगल में एक गाय भी रहती थी| उस का भी एक बछड़ा था| गाय भी दिन में  चरने चली जाती थी| बछड़ा आस पास ही रहता था| एक दिन गाय के बछड़े को बाघ का बच्चा दिखाई दिया, वह डर गया और छुप गया| शाम  को जब उसकी माँ आई तो वह बाहर आया | अपनी माँ का दूध पी कर बछड़ा खेलने लगा| उसे माँ का आसरा  मिल गया| अगले दिन फिर से गाय और बाघ जंगल की ओर चले गए, दोनों के बच्चे अपनी अपनी जगह खेलने लगे| बाघ के बच्चे की नजर गाय के बछड़े पर पड़ गई| वह उसकी ओर दोस्ती के लिए बढा |गाय का बछड़ा पहले तो डर गया, पर बाघ के बच्चे के कहने पर वह रुक गया| बाघ के बच्चे ने गाय के बछड़े को कहा कि हम दोस्ती कर लेते हैं|  गाय के बछड़े ने जवाब दिया कि तुम लोग मांसाहारी   हो हम लोग शाकाहारी  है तो हम में दोस्ती कैसी? बाघ के बच्चेने कहा कि हम लोग मांसाहारी जरुर हैं, पर तेरी मेरी दोस्ती पक्की | जब हमारी माताएं  जंगल को चली जाती हैं, तब हम आपस मे खेल लिया करेंगे |यह सुन कर गाय के बच्चे को सुकून  मिला और उसने आगे आ कर बाघ के बच्चे को गले से लगा लिया| दोनों ने कसमें खाई, कि कुछ भी हो हम अपनी दोस्ती नहीं तोड़ेंगे, चाहे इसके लिए हमे अपनी माताओं से ही क्यों न लड़ना पड़े|  गाय और बाघ में  तो पहले से ही दुश्मनी थी, इस बात को बच्चे जानते थे| गाय रोज़ अपने बछड़े के लिए दूध निकाल कर रख जाती थी| एक दिन गाय ने अपने बछड़े से कहा कि  जिस दिन  कभी मेरे  इस दूध का रंग लाल हो गया, उस दिन समझना कि  तुम्हारी माँ को किसी बाघ ने खा लिया है| गाय के बच्चे ने अपनी माँ से कहा ऐसा कभी नहीं  होगा| अगले दिन वह कुछ उदास जैसा था, तो बाघ के बच्चे ने उससे  कारण   पूछा तो गाय के बछड़े ने  अपनी माँ द्वारा कहे शब्द उसको बता दिए| बाघ के बच्चे ने कहा, ऐसा कभी भी नहीं होगा| और दोनों खेलने लग गए|             
            एक दिन बाघ की नज़र गाय पर पड़ गई और उसने गाय को मारने की सोच ली | गाय रोज़ उस से बच कर निकल जाती थी | एक दिन बाघ गाय के रास्ते को घेर कर बैठ गया और जब गाय नजदीक आई तो उसपर हमला बोल दिया, बाघ ने गाय को मार कर खा लिया| उधर जब गाय का बछड़ा दूध पीने को गया, तो उसने  देखा  कि दूध लाल हो गया है तो वह समझ गया कि  बाघ ने मेरी माँ को मार दिया है | वह बाघ के बच्चे के पास गया और उसे सारी बात बताई कि उस की माँ ने आज मेरी  माँ को मार दिया है| क्यों कि दूध का रंग लाल हो गया है| बाघ के बच्चे ने कहा अगर मेरी  माँ ने तेरी माँ को मारा होगा तो  मेरी माँ भी जिन्दा नहीं बचेगी| शाम  को जब गाय वापस  नहीं आई और बाघ वापस  आ गया तो पता चल गया कि गाय को बाघ ने मार खाया है| बाघ के बच्चे ने भी अपनी माँ को मारने की सोच ली|  बाघ के  बच्चे ने गाय के बछड़े को कहा कि मेरी माँ ने तेरी माँ को मार खाया है, अब तू छुप के देखना मैं कैसे अपनी माँ को मारता हूँ| यह कह कर बाघ का बच्चा अपनी माँ के पास गया और उसको कहा कि वह एक ऊँची जगह पर बैठ जाय,  मैं  दूर से आ कर उसे  छूउगा | ऐसा कहते हुए उसने अपनी माँ को एक टीले पर बैठा दिया और दूर से आ कर बाघ को धक्का दे दिया| बाघ काफी दूर जा गिरा और उसकी मौत हो गई| इस तरह बाघ के बच्चे ने अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ अदा किया और दोनों की दोस्ती हमेशा  के लिए अटल रही|

Wednesday, February 29, 2012

संगत का असर

                       किसी शहर में एक सेठ रहता था। सेठ  का एक बेटा था। सेठ  के बेटे की दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से थी जिनकी आदत ख़राब थी। बुरी संगत में रहते थे। सेठ को ये सब अच्छा नहीं लगता था। सेठ ने अपने बेटे को समझाने की बहुत कोशिस की पर कामयाब नहीं हुआ। जब भी सेठ उसको समझाने की कोशिस करता बेटा कह देता कि में उनकी गलत आदतों को नहीं अपनाता। इस बात से दुखी हो कर सेठ ने अपने बेटे को सबक सिखाना चाहा। एक दिन सेठ बाज़ार से कुछ सेव खरीद कर लाया और उनके साथ एक सेव गला हुआ भी ले आया। घर आकर सेठ ने अपने लड़के को सेव देते हुए कहा इनको अलमारी में रख दो कल को खाएंगे। जब बेटा सेव रखने लगा तो एक सेव सडा हुआ देख कर सेठ से बोला यह  सेव तो सडा हुआ है। सेठ ने कहा कोई बात नहीं कल देख लेंगे। दुसरे दिन सेठ ने अपने बेटे से सेव निकले को कहा। सेठ के बेटे ने जब सेव निकले तो आधे से जादा सेव सड़े हुए थे। सेठ के लड़के ने कहा इस एक सेव ने तो बाकि सेवों को भी सडा दिया है। तब सेठ ने कहा यह सब संगत का असर है। बेटा इसी तरह गलत संगत में पड़ के सही आदमी भी गलत काम करने लगता है। गलत संगत को छोड़ दे। बेटे की समझ में बात आ गई और उसने वादा किया कि अब वह गलत संगत में नहीं जाएगा। हमेसा आच्छी संगत में ही रहेगा। इस लिए आदमी को कभी भी बुरी संगत में नहीं पड़ना चाहिए।

Wednesday, February 22, 2012

पराधीनता मे सुख कहाँ ?

              एक कुत्ते और बाघ की आपस मे दोस्ती हो गयी| कुत्ता काफी मोटा ताजा था और बाघ दुबला पतला सा था| एक दिन बाघ ने कुत्ते से कहा- भाई एक बात बताओ तुम  कैसे इतने मोटे-तगड़े तथा सबल हुए; तुम प्रति दिन क्या खाते हो और कैसे उसकी प्राप्ति करते हो? मैं तो दिन रात भोजन की खोज मे घूम कर भी भरपेट  खा नहीं पाता किसी किसी दिन तो मुझे उपवास भी करना पड़ता है| भोजन के कष्ट के कारन ही मैं इतना कमजोर हूँ| कुत्ते ने कहा मैं जो करता हूँ तुम भी अगर वैसा ही कर सको तो तुम्हे भी मेरे जैसा ही भोजन मिल जाएगा| बाघ ने पूछा तुम्हें करना क्या पड़ता है जरा बताओ तो सही| कुत्ते ने कहा कुछ नहीं रात को मालिक के मकान की रखवाली करनी पड़ती है| बाघ बोला बस इतना ही| इतना तो मैं भी कर सकता हूँ| मैं भोजन की तलाश  मे बन बन भटकता हुआ धूप तथा वर्षा से बड़ा कष्ट पाता हूँ| अब और यह क्लेश  सहा नहीं जाता| यदि धूप और वर्षा के समय घर मे रहने को मिले और भूख के समय भर पेट खाने को मिले तब तो मेरे प्राण बच जायंगे | बाघ की दुःख की बातें सुन  कर कुत्तेने कहा ; तो फिर मेरे साथ आओ| मे मालिक से कहकर तुम्हारे लिए सारी ब्यवस्था  करा देता हूँ| बाघ कुत्ते के साथ चल पड़ा| थोड़ी  देर चलने के बाद बाघ को कुत्ते की गर्दन पर एक दाग दिखाई पड़ा| यह देख कर बाघ ने कुत्ते से पूछा भाई तुम्हारी गर्दन पर यह कैसा दाग है? कुत्ता बोला अरे वह कुछ भी नहीं है| बाघ ने कहा नहीं भाई मुझे बताओ मुझे जानने की बड़ी इच्छा हो रही है| कुत्ता बोला गर्दन मे कुछ भी नहीं है लगता है कोई पट्टे का दाग लगा होगा| बाघ ने कहा पत्ता क्यों ? कुत्ते ने कहा  पट्टे मे जंजीर फसा कर पूरा दिन मुझे बांध कर रखा जाता है| यह सुन कर बाघ विस्मित हो कर कह उठा-जंजीर से बांध कर रखा  जाता है? तब तो तुम जब जहाँ जाने की इच्छा हो जा नहीं सकते? कुत्ता बोला ऐसी बात नहीं है , दिन के समय भले ही बंधा रहता हूँ, परन्तु रात के समय जब मुझे छोड़ दिया जाता है तब मैं जहाँ चाहे ख़ुशी से जा सकता हूँ| इस के अतिरिक्त मालिक के नौकर मेरी  कितनी देख भाल करते हैं, अच्छा खाना देते हैं| स्नान कराते  हैं  कभी कभी मालिक भी स्नेह पूर्वक मेरे शरीर पर हाथ फेर दिया करते हैं| जरा सोचो तो मैं कितने सुख मे रहता हूँ| बाघ ने कहा भाई तुम्हारा सुख तुम्हीं को मुबारक हो, मुझे ऐसी सुख की जरुरत नहीं है| अत्यंत पराधीन हो कर राज सुख भोगने की अपेक्षा स्वाधीन रह कर भूख का कष्ट उठाना हजार गुना अच्छा है| मैं अब तुम्हारे साथ नहीं जाउगा यह कह कर बाघ फिर जंगल की तरफ लौट गया|  

Monday, February 13, 2012

लालच

                  किसी गांव में दो भाई रहते थे। एक भाई गरीब था और दूसरा अमीर।  दिवाली के दिन सब घरों में खुशियाँ मनाई जा रही थी पर गरीब भाई के घर में खाने को भी कुछ नहीं था। वह अपने अमीर भाई से कुछ मदद मांगने को गया तो उसने उसे मदद के लिए मना कर दिया। गरीब भाई लाचार होके वापस अपने घर को आ रहा था तो रास्ते में उसे एक बूढ़ा आदमी मिला जिसके पास एक लकड़ी का गठ्ठा था। बूढ़े ने उस से पूछा कि भाई बहुत उदास लग रहे हो क्या बात है? आज दिवाली है सब को खुश होना चाहिए। उसने कहा ताया जी क्या करूँ घर में खाने को भी कुछ नहीं है। भाई से भी कोई मदद नहीं मिली कैसे दिवाली मनाउं! बूढ़े ने कहा तुम मेरे लकड़ी के गठ्ठे को मेरे घर पहुंचा दो में तुम्हीं ऐसी चीज दूंगा जिस से तुम अमीर हो जाओगे। वह गठ्ठा लेकर बूढ़े के साथ उसके घर गया बूढ़े ने उसे एक मालपुवा दिया और बताया कि जंगलमें जाना वहां तुम्हे एक जगह तीन पेड़ मिलेगे जिसके पास एक चट्टान है ध्यान से देखोगे तो एक कोने में गुफा का मुंह दिखेगा। गुफा के अन्दर चले जाना वहां तीन बौने रहते है उनको मलपुवे बहुत पसंद हैं। इसके बदले वह तुम्हें कुछ भी देने को तयार होजाएँगे। तुम उनसे धन मत मांगना चक्की मांगना। मालपुवा लेकर वह गुफा में जा पहुंचा। उसके हाथ में पूवा देखकर एक बौना बोला यह पूवा मुझे देदो में तुम्हें जो मागोगे दूंगा।उसने कहा मुझे अपनी पत्थर की चक्की देदो। चक्की को लेकर जब वह चलने लगा तो बौने ने कहा इस चक्की को मामूली चक्की मत समझाना इस से जो मांगोगे मिल जाएगा। इच्छा पूरी होने पर इसके ऊपर लाल कपड़ा डाल देना चीज निकानी बंद हो जाएगी। घर आकर उसने अपनी घरवाली से कहा एक कपड़ा बिछाओ! कपड़ा बिछा कर उसके ऊपर चक्की रखदी। फिर चक्की को घुमाकर कहा "चक्की चक्की  आटा निकाल" वहां पर आटे का ढेर लग गया। लाल कपड़ा डाल कर फिर उसने चक्की को घुमाया और कहा "चक्की चक्की दाल निकाल फिर वहां दाल का ढेर लग गया। उन्हों ने दाल चावल बनाए खाके आराम से सो गए। अगले दिन बचे हुए दाल चावल को उसने बाज़ार में बेच दिया। उसको बहुत सारा धन मिल गया। अब वह रोज कुछ न कुछ  मांगता और बाज़ार में बेच देता। कुछ ही समय में वह अपने भाई से भी अमीर हो गया। उसकी अमीरी को देख कर उसका भाई जलने लग गया। उसने सोचा इसके हाथ ऐसा क्या लग गया है जिस से यह थोड़े ही दिनों में इतना अमीर बन गया है। एक दिन वह चोरी छिपे उसके घर गया और सब कुछ जान गया। उसने रात में चक्की को चुरा लिया और अपने घर वालों को लेकर समुन्दर के किनारे से एक नाव खरीद कर टापू की ओर चल दिया। रास्ते में अपनी घरवाली की जिग्यासा पूरी करने के लिए उसने चक्की घुमाकर कहा चक्की चक्की नमक निकाल नमक का ढेर  लगाना शुरू हो गया। अब उसको इसे बंद करना नहीं आता था। चक्की में से नमक निकलता रहा और नाव भारी होके डूब गई। उसका सारा परिवार उसी में समां गया। इस लिए लालच नहीं करना चाहिए।

Sunday, January 29, 2012

एक टांग वाला बगुला

                             क अंग्रेज भारत मे घूमने को आया| उसने भारत के कई राज्यों की सैर की| उसको भारत  पसंद आया और उसने कुछ दिन यहाँ ठहरने  का मन बनाया| अंग्रेज ने शहर मे एक घर किराए पर ले लिया| घर के काम काज निपटाने के लिए एक नौकर भी रख लिया| नौकर घर के सारे काम रोटी बनाने से लेकर कपड़े धोने तक का काम करता था| एक  दिन अंग्रेज कहीं से एक बगुला मार कर लाया और नौकर से कहा की इसको अच्छी तरह से तड़का लगाकर बनाना| नौकर ने पूरे दिल  से बगुले को बनाया पर बगुले  को भूनते समय उसने बगुले की एक टांग खा ली| उसने बगुले  को पलेट मे सजा कर अंग्रेज के आगे रख दिया| अंग्रेज ने देखा की बगुले की एक टांग गायब है|उसने नौकर को बुलाकर पूछा की इस बगुले की एक ही टांग है दूसरी कहाँ गई| नौकर ने जवाब दिया की बगुले की एक ही टांग होती है| अंग्रेज ने कहा की बगुले की दो टाँगें होती हैं| मे तुम्हें कल सुबह ही दिखा दूंगा | नौकर ने कहा ठीक है| अगले दिन दोनों बगुला देखने चले गए| झील के किनारे एक बगुला बैठा हुआ दिखाई दिया|बगुले ने एक पैर ऊपर उठा रख्खा था| नौकर ने कहा वह देखो बगुले का एक ही पैर है| अंग्रेज ने अपने दोनों हाथों से ताली बजायी| बगुले ने अपना दूसरा पैर नीचे किया और उड़ गया| अंग्रेज ने कहा वह देखो उसके दो पैर हैं| नौकर ने कहा आप  रात को प्लेट  मे रख्खे बगुले के सामने अपने हाथों से ताली बजाना ही भूल गए| अगर आप ने रात को भी ताली बजाई होती तो वह बगुला भी अपनी दूसरी टांग नीचे कर देता| अंग्रेज को कोई जवाब नहीं सूझा दोनों घर को वापिस आगये|     

Tuesday, January 17, 2012

हाथी और चूहा

                       बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में एक पेड़ के नीचे कुछ चूहे रहते थे| चूहों ने पेड़ की जड़ के पास अपने घर बनाए हुए थे| पास में ही एक नदी बहती थी| सारे चूहे आपस में मिलजुल कर रहते थे और खुश रहते थे| एक दिन एक हाथियों का झुण्ड वहां आ गया| हाथियों ने नीचे कुछ भी नहीं देखा जो भी सामने आया सब को कुचल दिया| इस में चूहों के कई घर तबाह हो गए और कुछ चूहे बुरी तरह से घायल भी हो गए| अब चूहों ने एक सभा बुलाई जिस में उन्हों ने अपने सरदार से कहा कि वह जाकर हाथियों के सरदार से बात करे कि किस तरह उनके साथियों ने हमारे घर तबाह कर दिए हैं| चूहों का सरदार हाथियों के सरदार के पास गया और नम्रता से कहा कि आज आपके हाथियों ने हमारे बहुत सारे घर तोड़ दिए और कई चूहों को जख्मी भी कर दिया है| अब आगे से ऐसा न करें| हाथियों का सरदार दयालु था उसने कहा कि आज के बाद कोई भी हाथी तुम्हें तकलीफ नहीं देगा| यह में वादा करता हूँ| चूहों के सरदार ने कहा जब भी जरूरत हो हमें याद करना हम आपकी मदद को आ जाएँगे| चूहों का सरदार खुश होकर वापस आ गया और बताया कि सब ठीक हो गया है| सब कुछ पहले की तरह चलने लग गया|
                    काफी दिनों बाद एक शिकारी ने आकर आपना जाल नदी के किनारे पर बिछा दिया| हाथियों का सरदार इस जाल में फंस गया| उसको अपने दोस्त चूहों के सरदार की याद आई| उसने अपने साथियों को बुलाकर कहा कि वे चूहों के सरदार को बुलाकर लाएं वह ही हमारी मदद कर सकता है| हाथी दौड़ कर चूहे के पास गए और सारी बात बताई| सभी चूहे मदद के लिए दौड़ पड़े| कुछ ही मिनटों में उन्हों ने अपने तेज दांतों से जाल को काट दिया और हाथी को आजाद करा दिया| हाथी ने चूहों का धन्यवाद किया और कहा "कर भला हो भला अंत भले का भला"|


Tuesday, January 10, 2012

माँ की नसीहत

                  किसी गांव मे एक सेठ रहता था| सेठ के परिवार मे पत्नी और दो बच्चे थे| बेटा बड़ा था और उसका नाम गोमू था| बेटी छोटी थी उस का नाम गोबिंदी था| गोबिंदी घर मे सब से छोटी थी इस लिए सब की  लाडली थी| हर कोई उसकी फरमाइश  पूरी करता था| धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए| बेटा शादी लायक हो गया| सेठ ने एक सुन्दर सी लड़की देख कर बेटे की शादी कर दी| घर मे नईं बहु आ गयी| बहु के आने पर घर वालों का बहु के प्रति आकर्षण बढ गया| गोबिंदी कि तरफ कुछ कम हो गया | गोबिंदी इस को बर्दाश्त नहीं कर सकी| वह अपनी भाभी से इर्ष्या करने लगी| जब गोबिंदी की माँ को इस बात का पता चला तो उसने गोबिंदी को बुलाकर अपने पास बैठाया और नसीहत देनी शुरु करदी| देखो बेटी  जिस तरह तुम इस घर की  बेटी हो वैसे ही वह भी किसी के घर की  बेटी है| नए घर मे आई है| उसे अपने घर के जैसा ही प्यार मिलना चाहिए| क्या तुम नहीं चाहती हो कि जैसा प्यार तुम्हे यहाँ मिल रहा है वैसा ही प्यार तुम्हारे ससुराल मे भी मिले?                             
                       अगर तुम किसी से प्यार, इज्जत पाना चाहती हो तो पहले खुद उसकी पहल करो| प्यार बाँटने से और बढता है| इस लिए तुम पहल  कर के अपनी भाभी से प्यार करो| वह इतनी बुरी नहीं है जितनी तुम इर्ष्या  करती हो| माँ की नसीहत को गोबिंदी ने पल्ले बांध लिया | अपनी भाभी को गले लगाकर प्यार दिया,और हंसी ख़ुशी साथ रहने लगे| जितना प्यार गोबिंदी ने अपनी भाभी को दिया उस से कहीं अधिक प्यार उसको मिला| इस लिए कभी किसी से इर्ष्या  नहीं करनी चाहिए|

Monday, January 2, 2012

घमंडी का सर नीच

                          बहुत समय पहले की बात है| कहीं से एक संत एक गांव में आये| गांवकी चारदीवारी के अन्दर एक पीपल के पेड़ के नीचे धूनी रमाकर रहने लगे और भगवान का भजन करने लगे| धीरे-धीरे गांव वाले भी उनकी शरण में आने लगे| गांव वालों ने उनके लिए एक झोपड़ी भी बनवा दी| कुछ ही समय में साधू बाबा मशहूर हो गए| उसी गांव में एक सेठ भी रहता था जो काफी घमंडी था| वह बाबा से चिढ़ता था और कहता था कि बाबा तो ढोंगी है| ढोंग करता रहता है| उसने कहा कि अगर बाबा सच्चा है तो देवी के शेर को बुलाकर दिखाए| जब लोगों ने बाबा को यह बात बताई तो बाबा ने कहा अगर उसकी यही इच्छा है तो उसे में अपने ठाकुर जी से कह कर शेर के दर्शन करा दूंगा| अगले दिन बाबा जंगल में जाकर बड़े दीन भाव से अपने ठाकुर जी को पुकारने लगे "भक्त की लाज रखने को प्रभु शेर के रूप में दर्शन दो| दर्शन दो प्रभु"| इतने में एक दहाड़ता हुआ शेर प्रकट हुआ और बाबा जी के पास आगया| बाबा जी ने उसे अपने कपडे से बांध लिया और कहा "चलो प्रभु मेरे साथ"| शेर बाबा के साथ ऐसे चल रहा था जैसे पाली हुई बकरी| शेर को आता हुआ देख कर द्वारपाल ने डर से गांव के दरवाजे बंद कर दिए| शेर दरवाजा खोल कर बाबा के साथ अन्दर आगया| जैसे ही बाबा शेर को लेकर सेठ के घर के आगे आए सेठ दरवाजे बंद करके छिप गया| बाबा ने कहा दरवाजा तो बंद कर दिया है, इसने तो आपके दर्शन भी नहीं किये| शेर ने पंजा मारा और दरवाजा खोल  दिया| बाबा जी शेर के साथ अन्दर चले गए और बोले "सेठ जी आप ने शेर से मिलना था तो में ले आया हूँ लो देख लो| यह देख कर सेठ जोर जोर से रोने लगा और बाबा जी के चरणों में गिर पड़ा और मांफी मांगने लगा| सेठ दोनों हाथों को जोड़ कर आखें मूंद, सर झुका कर शेर के आगे खड़ा हो गया| इतने में बाबा और शेर दोनों ही गायब हो गए| शेठ का सर नीचा ही रह गया| इसी लिए कहते हैं की घमंडी का सर नीचा|