Saturday, December 31, 2011

आप सब को नए साल 2012 की हार्दिक शुभकामनाएँ|

              

                  साल 2011 कुछ ही घंटों का मेहमान है, कुछ ही घंटों बाद साल 2012 आ  जायेगा| नया  साल 2012 आप लोगों के लिए खुशियों भरा हो मंगलमय हो भगवान आप सब की मनोकामना पूर्ण करे और आप सब नए साल 2012 में दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की  करें| यह मेरी आप सब के लिए हार्दिक शुभकामना है| कल नए साल की  सुबह  होगी आइए इस मौके पर हम संकल्प करें कि हम इस देश के सच्चे नागरिक बनें| अंत में आप सब को नए साल 2012 की हार्दिक शुभकामनाएँ|


                                        ख्याली राम जोशी (पाटली)

Thursday, December 22, 2011

तजुर्बे का फल

                        बहुत समय पहले की बात है| एक बार एक राजा शिकार खेलने के लिए जंगल में गए| शिकार के पीछे भागते भागते राजा रास्ता भटक गए| भटकते भटकते उन्हें रात हो गई| दूर एक जगह उन्हें रोशनी दिखाई दी वे रोशनी की तरफ बढे| वहां झोपड़ी में एक बुजुर्ग बैठा हुआ मिला| राजाने उस से रास्ता पूछा और कहा कि तुम यहाँ क्या करते हो| बुजुर्ग ने जवाब दिया कि मैं जमीदार की खेती की रखवाली करता हूँ; बदले में मुझे एक पाव आटा रोज का मिलता है| राजा को लगा बुजुर्ग आदमी तजरबे कार है इसको साथ ले चलना चाहिए| राजा ने कहा तुम मेरे साथ चलो में तुम्हें रोज का आधा किलो आटा दे दिया करूँगा| बुजुर्ग तैयार हो गया| दोनों राजमहल में चले गए| बुजुर्ग को एक कमरा देदिया गया| बुजुर्ग वहीँ आराम से रहने लग गया|
एक दिन एक घोड़े का व्यापारी घोड़े बेचने आया| राजा को एक घोडा बहुत पसंद आगया उसने सोचा कि इसमें बुजुर्ग कि भी राय ले ली जाय| उसने बुजुर्ग को बुलाया और कहा ये घोडा कैसा है| बुजुर्ग ने घोड़े के शरीर पर हाथ फेरा और बताया कि घोडा तो बहुत सुन्दर है पर गहरे पानी में घोडा बैठ जाएगा| राजा ने बुजुर्ग की सलाह को न मानते हुए घोडा खरीद लिया| कुछ दिन बाद जब राजा उसी घोड़े पर शिकार के लिए जा रहा था तो रास्ते में एक नदी पर करते हुए जब घोडा गहरे पानी में गया तो बैठ गया| राजा को बुजुर्ग की बात याद आगई वह वापस आगया और बुजुर्ग को बुला कर पूछा कि तुन्हें कैसी पता लगा कि घोडा गहरे पानी में बैठ जाएगा| बुजुर्ग ने बताया कि जब में ने घोड़े के शरीर पर हाथ फेरा तो मुझे उसके जिगर में गर्मी महसूस हुई जिस से लगा कि घोडा गहरे पानी में बैठ जाएगा| राजाने घोड़े के व्यापारी को बुलाकर कारण जानना चाहा व्यापारी ने कहा कि बचपन में इस घोड़े कि माँ मर गई थी तो इसे भैंस का दूध पिलाकर पाला है जिस से इसके जिगर में गर्मी हो गई है| राजा ने बुजुर्ग के तजुर्बे से खुश होकर इनाम में उसे एक पाव आटा और दे दिया| अब बुजुर्ग को तीन पाव आटा रोज का मिलने लगा|
एक बार बैठे बैठे राजा के दिमाग में आया कि बुजुर्ग से में अपनी रानी के बारे में क्यों न पूछूं|राजा ने बुजुर्ग को बुलाकर कहा कि आप बहुत तजुर्बे कार हैं, आप मेरी रानी के बारे में भी बताएँ बुजुर्ग ने कहा ठीक है आप रानी को बिलकुल नंगा कर के एक कमरे में बैठा दें तो में रानी के बारे में बता सकता हूँ| राजा ने वैसा ही किया रानी को नंगा करके एक कमरे में बैठा दिया गया| बुजुर्ग ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला रानी अंदर को भाग गई|बुजुर्ग वापस आया और राजा को बताया कि आपकी रानी किसी वैश्या की बेटी लगती है|राजाने अपनी सास को बुलाकर कुछ सख्ती से पूछा तो उसने बताया कि उनकी कोई औलाद नहीं थी इस लिए उन्होंने इस बेटी को एक वैश्या से गोद लिया था|राजा ने बुजुर्ग से पूछा कि तुम्हें कैसे पता चला कि रानी वैश्या की बेटी है तो बुजुर्ग ने जवाब दिया किसी भी नंगी औरत के सामने जाने पर औरत अपने अंगों को छिपा कर सिकुड़ कर बैठ जाती है पर रानी मुझे देखते ही भाग गई थी| राजा ने बुजुर्ग के तजुर्बे से खुश होकर उसको इनाम में एक पाव आटा और देदिया| अब बुजुर्ग को एक किलो आटा रोज का मिलने लग गया|
एक दिन राजा ने बुजुर्ग को बुला कर पूछा कि अब आप मुझे मेरे बारे में कुछ बताइए|बुजुर्ग ने बेझिझक कहा आप तो किसी बनिए के बेटे हो|राजा को सुन कर गस्सा भी आया और हैरानी भी हुई| राजा उसी समय उठा और अपनी माँ के पास गया| तलवार अपनी गर्दन पर रख कर बोला कि माँ सच सच बता में किसका बेटा हूँ नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगा| माँ डर गई और बताया कि तुम्हारे पिताजी राज्य के काम से बाहर ही रहा करते थे|यहाँ एक मुनीम रहता था तुम उसी की औलाद हो|राजाने बुजुर्ग से आकर पूछा कि तुम्हें कैसे पता चला कि में बनिए का बेटा हूँ तो बुजुर्ग ने जवाब दिया कि मैंने आप को लाख लाख टके की एक एक बात बताई और आप ने उसकी कीमत क्या रखी एक पाव आटा? जिस से इस बात का पता चलता है कि आप बनिए के बेटे हो|राजाने बुजुर्ग के तजुर्बे से खुश होकर बुजुर्ग को अपने मंत्री मंडल में शामिल कर लिया| 

Thursday, December 8, 2011

पानी की कमाई पानी में

                            बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल के किनारे कुछ ग्वाले रहते थे| वे अपने गाय  भैसों का दूध बेचने के लिए शहर में जाया करते थे| उन ग्वालों में एक ग्वाला बहुत लालची था| वह रोज दूध बेचने जाते समय रास्ते में पड़ती नदी में से दूध में पानी मिला दिया करता था|
                             एक दिन जब ग्वाले बाज़ार से अपनी बिक्री का हिसाब  करके पैसे ले कर घर को आ रहे थे तो दोपहर की गर्मी से तंग आकर उन्हों ने नदी में नहाने का मन बनाया| सभी ग्वालो ने अपने अपने कपडे उतार कर एक पेड़ के नीचे रख दिए और नहाने के लिए नदी के बीच में चले गए| कुछ ही देर में पेड़ से एक बन्दर उतरा और उस लालची ग्वाले के कपड़े उठाकर पेड़ पर ले गया | उसने उसकी जेब से रुपये के सिक्कों वाली थैली निकाली और एक एक करके नदी में फैंकने  लग गया| ग्वाला चिल्लाया और अपने कपडे और पैसे छुड़ाने के लिए बन्दर के पीछे भागा| इतनी देर में वह बन्दर  बहुत सारे सिक्के नदी में गिरा चुका था|
                              लालची ग्वाला अपने भाग्य को कोसने लगा और  कहने लगा कि देखो मेरी महीने की कमाई के आधे पैसे बन्दर ने पानी में मिला दिए| इसपर उसके साथी ग्वालों ने कहा तुमने जितने पैसे पानी मिलाकर कमाए थे उतने पैसे पानी में ही चले गए हैं| पानी की कमाई  पानी में| उस दिन से उस ग्वाले ने दूध में पानी मिलाना छोड़ दिया और ईमानदारी से दूध बेचने लगा| इसी लिए कहते हैं कि पाप की कमाई कभी फलती नहीं है| 

Friday, November 4, 2011

हाथी की दोस्ती

                            बहुत समय पहले की बत है| किसी जंगल में एक हाथी रहता था| उस हाथी का कोई दोस्त नहीं था| एक दिन  उसे जंगल के बीच में पेड़ पर एक बन्दर दिखा| हाथी ने बन्दर से कहा "बन्दर बाई मेरा कोई दोस्त नहीं है क आप मेरे साथ दोस्ती करोगे|" बन्दर ने कहा "आप बहुत बड़े हैं में बहुत छोटा  हूँ और आप मेरी तरह दल पर उछल कूद भी नहीं सकते, इस्ले आप की और मेरी दोस्ती नहीं हो सकती है| अगले दिन हाथी को नेक खरगोश मिला हटी ने खरगोश को भी दोस्त बन ने के लिए का पर खगोश ने कहा आप बहुत बड़े हो में बहुत छोटा हूँ आप मी बड़े में भी नहीं आसकते इसलिए हमारी दोस्ती नहीं हो सकती है| फिर हाथी तालाब के किनारे गया वहां उसे एक मेढक मिला| हाथी ने मेढक से कहा की मेढक भाई क्या मुझ से दोस्ती करोगे| मेढक ने कहा जरा अपना शारीर तो देखो कितना बड़ा है और में कितना छोटा हूँ इस लिए हमारी दोस्ती संभव नहीं है|
                          अगले दिन हाथी को एक गीदड़ मिल गया हाथी ने उस से भी दोस्ती करने के लिए कहा पर गीदड़ ने भी दोस्ती करने से मना कर दिया| शाम को हाथी ने देखा की जंगल के सबी जानवर भाग कर जा रहे हैं| हाथी ने उनको रोक कर कारन जानना चाहा| गीदड़ ने बताया की जंगल का राजा  शेर सब को मार कर खा जाना चाहता है| इसलिए  सभी जानवर  अपनी जान बचने के लिएभाग रहे है| हाथी ने शेर से कहा तुम इस तरह सभी जानवरों के पीछे क्यों पड़े हो\सभी जानवरों को एक साथ ही मारके खा लोगे    क्या|
                        शेर ने हाथी से कहा यह मेरी मर्जी तुम रोकनेवाले कौन होते हो| हथिको सुनकर बहुत गुस्सा आया और जोर से एक लत शेर को मार दी| शेर छटक कर दूर जा गिरा | उसे बहुत साडी चोट भी लग गई| दर के मरे शेर वहां से भाग गया| जब हाथी न यह बा सभी जानवरों को बताई तो सभी जानवर बहुत खुश हो गए और सभी ने हाथी को अपना दोस्त बनालिया|इसी लिए कहते हैं की दोस्त वही जो मुसीबत में काम आये|    

Sunday, October 30, 2011

अतिथि की योग्यता नहीं देखनी चाहिए

                            किसी शहर में एक सेठ रहता था| सेठ बहुत दयालु और इश्वर भक्त था| उसका नियम था की  वह किसी अतिथि को भोजन कराए बिना खुद भोजन नहीं करता था| एक दिन उसके यहाँ कोई भी अतिथि नहीं आया|  इस लिए वह खुद किसी निर्धन मनुष्य को ढूढ़ने निकल पड़ा| मार्ग में उसे एक बहुत बृद्ध तथा दुर्बल मनुष्य  मिला| उसे भोजन का निमंत्रण दे कर बड़े आदर पूर्वक वह उसे घर ले आया| हाथ पैर धुलवा कर भोजन कराने के लिए बैठाया|
                           अतिथि ने भोजन सम्मुख आते ही खाने के लिए ग्रास उठाया| उसने न तो भोजन मिलने के लिए इश्वर को धन्यवाद किया, और नहीं इश्वर की बंदगी की| सेठ को यह देख कर हैरानी हुई| उसने अतिथि से इसका कारण पूछा| अतिथि ने कहा-मैं तुम्हारे धर्म को मानने वाला नहीं हूँ, मैं अग्निपूजक हूँ| अग्नि को मैंने अभिवादन कर लिया है|
                           सेठ को यह  सुनकर बहुत गुस्सा आया और अतिथि को कहा "काफ़िर कहीं का!चल निकल मेरे यहाँ से"| सेठ ने बृद्ध को उसी समय धक्के दे कर घर से बहार निकल दिया|
                          उस समय आकाशबाणी होई कि "सेठ! जिसे इतनी उम्रतक मैं प्रति दिन खुराक देता रहा हूँ, उसे तुम एक समय भी नहीं खिला सके! उल्टा तुमने निमंत्रण दे कर, घर बुलाकर उसका तिरस्कार किया! इस आकाशबाणी को सुन कर सेठ को अपने गर्व तथा ब्यवहार पर अत्यंत दुःख हुआ|

Wednesday, October 19, 2011

खरगोश और मेढक

                    बहुत समय पहले की बात है| किसी जंगल में बहुत सारे खरगोश रहा करते थे| खरगोश बहुत दुर्बल और डरपोक थे| ताकतवर जानवर उन्हें देखते ही मारकर खा जाते थे| इस कारण उन्हें हमेशा अपने प्राणों के लिए शंकित रहना पड़ता था| एक दिन सभी खरगोशों ने मिलकर एक सभा बुलाई| इस सभा में उन्हों ने निश्चय किया कि सदा भयभीत रहने की अपेक्षा प्राण त्याग कर देना ही अच्छा है| इस लिए जैसे भी हो, हम लोग आज ही प्राण त्याग कर देंगे|
                     

                   ऐसी प्रतिज्ञा करने के बाद निकट के तालाब में कूद कर प्राण देने की इच्छा से सभी खरगोश वहां जा पहुंचे| उस तालाब के किनारे कुछ मेढक भी बैठे  हुए थे| खरगोशों के नजदीक पहुंचते ही मेढक भय से व्याकुल हो कर पानी में कूद पड़े| इसे देख कर खरगोशों का नेता अपने साथियों से बोला- मित्रो! हमारा  इतना भय भीत होना और खुद को इतना कमजोर समझना अच्छा नहीं है| आप ने यहाँ आकर देखा कि कुछ प्राणी ऐसे भी हैं जो हम से भी अधिक दुर्बल और डरपोक हैं| हमें इस से सबक सीखना चाहिए, हमें जान देने की बजाय हालातों से लड़ना चाहिए| सभी जंगल में वापस आ गए| 
                   

                    इस लिए मनुष्य को अपनी दुरवस्था के समय निराश नहीं होना चाहिए| हम चाहे कितनी भी कठिनाई में क्यों न हों, हमें ऐसे कई लोग मिल जाएँगे जिनकी अवस्था हम से भी खराब होगी|
 

Tuesday, October 11, 2011

साधु पुत्री

                            बहुत समय पहले की बात है, एक महात्मा अपनी पत्नी के साथ जंगल में नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहते थे| उनकी कोई औलाद नहीं थी | एक दिन महात्माजी नदी में नहाने के बाद हाथ से पानी का अर्घ दे रहे थे, तो उनके हाथों में ऊपर उड़ रहे एक चिल के मुंह से एक चुहिया गिर गयी| चुहिया को देख कर महात्माजी बहुत प्रशन्न हुए| महात्माजी ने अपने तपोबल से चुहिया को लडकी में बदल दिया| अब वो  उस लड़की को लेकर अपनी पत्नी के पास गए| महात्मा पत्नी लड़की को पा कर बहुत खुश हुई और उसे अपनी लड़की की तरह पालने का निश्चय किया| धीरे धीरे लड़की बड़ी होती गयी| कुछ सालों में लड़की शादी के योग्य हो गई| महात्मा जी चाहते थे कि उनकी लड़की की शादी किसी ताकतवर के साथ हो| उन्हों ने सब से पहले सूर्य भगवान का आवाहन किया| सूर्य भगवान प्रकट हो गए| सूर्य को देखते ही लड़की ने कहा इस में तो गर्मी ही बहुत है मैं इस से शादी नहीं करुँगी| सूर्य ने कहा मुझसे जादा ताकतवर बादल है वह मेरी रोशनी को भी रोक लेता है आप उसी से इसका विवाह कर दें| महात्मा जी ने बादल का आवाहन किया| बादल को देखते ही लड़की ने कहा यह तो बहुत काला है इसके साथ मैं शादी नहीं करुँगी| बादल ने कहा मुझसे ज्यादा  ताकतवर हवा है जो मुझे उड़ा कर कहीं भी लेजा सकती है| महात्माजी ने हवा का आवाहन किया| बड़े जोरसे हवा आई तो लड़की ने कहा नहीं नहीं मैं इस से शादी नहीं कर सकती यह तो मुझा उड़ा कर ले जाएगा| हवा ने कहा मुझ से ताकतवर पहाड़ है जो मेरी गति को भी रोक लेता है आप इसकी शादी पहाड़ से  कर दो| महात्माजी ने आवाहन कर के पहाड़ को बुलाया| पहाड़ को देखते ही लड़की ने कहा नहीं नहीं इस से मैं शादी नहीं कर सकती| पहाड़ ने कहा  मुझसे ताकतवर तो चूहा है जो मेरे में छेद करके मुझे गिरा सकता है| चूहे का नाम सुनते ही लड़की खुश हो गई और शादी को राजी हो गई| महात्माजी ने लड़की को चुहिया में बदल दिया और दोनों की शादी कर दी| दोनों ख़ुशी से अपनी जिन्दगी बिताने लगे| इसी लिए कहते हैं कि कोई किसी का भाग्य नहीं बदल सकता है|

Tuesday, October 4, 2011

माँ की नसीहत

                         किसी गांव मे एक सेठ रहता था| सेठ के परिवार मे पत्नी और दो बच्चे थे| बेटा बड़ा था और उसका नाम गोमू था| बेटी छोटी थी उस का नाम गोबिंदी था| गोबिंदी घर मे सब से छोटी थी इस लिए सब की  लाडली थी| हर कोई उसकी फरमाइश  पूरी करता था| धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए| बेटा शादी लायक हो गया| सेठ ने एक सुन्दर सी लड़की देख कर बेटे की शादी कर दी| घर मे नईं बहु आ गयी| बहु के आने पर घर वालों का बहु के प्रति आकर्षण बढ गया| गोबिंदी की तरफ कुछ कम हो गया | गोबिंदी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकी| वह अपनी भाभी से इर्ष्या करने लगी| जब गोबिंदी की माँ को इस बात का पता चला तो उसने गोबिंदी को बुलाकर अपने पास बैठाया और नसीहत देनी शुरु करदी| देखो बेटी  जिस तरह तुम इस घर की  बेटी हो वैसे ही वह भी किसी के घर की  बेटी है| नए घर मे आई है| उसे अपने घर के जैसा ही प्यार मिलना चाहिए| क्या तुम नहीं चाहती हो कि जैसा प्यार तुम्हे यहाँ मिल रहा है वैसा ही प्यार तुम्हारे ससुराल मे भी मिले? अगर तुम किसी से प्यार, इज्जत पाना चाहती हो तो पहले खुद उसकी पहल करो| दूसरों को प्यार दो, प्यार बाँटने से और बढता है| इस लिए तुम पहल  कर के अपनी भाभी से प्यार करो| वह इतनी बुरी नहीं है जितनी तुम इर्ष्या  करती हो| माँ की नसीहत को गोबिंदी ने पल्ले बांध लिया | अपनी भाभी को गले लगाकर प्यार दिया, और हंसी ख़ुशी साथ रहने लगे| जितना प्यार गोबिंदी ने अपनी भाभी को दिया उस से कहीं अधिक प्यार उसको भाभी से मिला| इस लिए कभी किसी से इर्ष्या  नहीं करनी चाहिए|   

Tuesday, September 27, 2011

संगत का असर

                           बहुत समय पहले की बात है| एक गांव में एक बहेलिया रहा करता था| वह जंगल से चिड़ियों को पकड़ कर लता था और कसबे में जाकर उन्हें बेच  दिया करता था| उस से जो कुछ भी मिलता उस से अपना और अपने परिवार का पेट पालता था| एक दिन वह जंगल में घूम रहा  था| उसे एक पेड़ के कोटर में तोते के दो बच्चे खेलते हुए दिखाई दिए| उसने तोते के उन बच्चों को पकड़ लिया और अगले दिन नगर में बेच दिया| एक बच्चा एक चोर ने खरीद लिया और एक बच्चा किसी सज्जन आदमी ने खरीद लिया| तोते के बच्चे धीरे धीरे बड़े हो गए| उन्होंने बोलना भी सीख लिया| एक दिन नगर में बादशाह घूमने आया, जैसे ही बादशाह चोर के घर के पास आया तो तोता जोर जोर से बोलने लगा:- "शिकार आया है लूट लो बच के ना जाने पाए"| बादशाह आगे बढ़ गया उसे आगे उस सज्जन का घर मिल गया, जैसे ही तोते ने बादशाह को देखा तो बोल पड़ा:- नमस्ते जी, आप का स्वागत है, आप थक गए होंगे बैठिए चाय पानी पी कर जाना| बादशाह दोनों की बात सुन कर हैरान थे कुछ समझ में नहीं आ रहा था| आगे जाने पर राजा को वही बहेलिया मिल गया| बादशाह ने बहेलिया को बुलाकर पूछा कि दोनों तोते एक समान हैं पर दोनों की भाषा में इतना फरक क्यों है| बहेलिये ने बताया कि यह सब संगत का असर है| एक तोते का मालिक चोर है जो उसके घर में होता है वह तोते ने सीख लिया है, और दूसरे तोते का मालिक एक सज्जन आदमी है, जो उसके  घर में होता है वह उसके तोते ने सीख लिया है| संगत का असर सब पर पड़ता है चाहे वह आदमी हो या पंछी| इसलिए हमें हमेशा अच्छी संगत में ही रहना चाहिए|

Sunday, September 18, 2011

"जो हुआ अच्छा हुआ"

बहुत समय पहले की बात है| एक राजा थे और उनके साथ एक मंत्री थे| उनके मंत्री की आदत थी कि वह कुछ भी होता कहते थे "जो हुआ ठीक हुआ"|एकबार मंत्री का बेटा खेल रहा था, खेलते खेलते वह नीचे गिर पड़ा उसके पैर में चोट लग गई तो मंत्री ने कहा "जो हुआ अच्छा हुआ"|राजा को यह सुन कर हैरानी हुई पर राजा ने कुछ नहीं कहा|
कुछ समय बाद राजा तलवार बाजी का अभ्यास कर रहे थे|अचानक तलवार से राजा की एक अंगुल कट गई, बहुत जोर से खून बहने लग गया| आदत वस मंत्री ने फिर कह दिया "जो हुआ अच्छा हुआ"|राजा को यह सुन कर बहुत गस्सा आया, उन्होंने अपने सैनिकों को हुक्म दिया कि मंत्री को कैद कर के जेल भेज दिया जाए| सैनिकों ने मंत्री को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया|
कुछ समय बाद एक दिन राजा शिकार खेलने अकेले जंगल में चले गए वहां वे रास्ता भटक गए| भटकते हुए वे एक आदिवासी इलाके में पहुँच गए| आदि वासियों ने राजा को बंदी बना लिया|वे अपने देवता को खुश करने के लिए नरबली देना चाहते थे| राजा की बलि देने के लिए जैसे ही तलवार उठाई एक ने देखा कि राजा की एक अंगुली कटी हुई है|अंगभंग व्यक्ति की बलि नहीं दीजाती है|उन्हों ने राजा को छोड़ दिया राजा भटकते हुए अपने महल में आगये| महल में पहुंचते ही उन्हों ने मंत्री को हाजिर करने का हुक्म दिया| मंत्री के हाजिर होने पर राजा ने सारी आप बीती सुनाई और कहा "जो हुआ अच्छा हुआ"| मेरे लिए तो यह ठीक ही हुआ, पर आप को जो बेकसूर जेल जाना पड़ा उसके बारे में क्या विचार है| मंत्री ने जवाब दिया "जो हुआ अच्छा हुआ"| अगर मुझे जेल में बंद नकिया होता तो आप मुझे भी शिकार पर साथ लेके जाते और आदिवासी आप को छोड़ कर मेरी बलि देदेते|इस लिए जो हुआ अच्छा हुआ|

Sunday, September 11, 2011

भोली गाय






बहुत समय पहले की बात है| किसी जंगल में एक गाय रहती थी| जो जंगल में घास चर कर अपना पेट भरती थी| इसी जंगल में एक शेर भी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार किया करता था| समय आने पर गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया| बछड़े को जंगली जानवरों से बचाने के लिए गाय ने एक सुरक्षित जगह ढूढ़ ली| गाय सुबह अपने बछड़े को दूध पिला कर इस सुरक्षित जगह पर बैठा जाती, आप जंगल में घास चरने चली जाया करती थी| बछड़ा सारा दिन वहीँ बैठा रहता और खेलता रहता था| शाम को गाय आकर उसे दूध पिलाती और बहुत सारा प्यार देती थी| बड़े मजे से गाय और बछड़े के दिन बीत रहे थे|एक दिनजब गाय शाम को जंगल से घास चर के वापस आरही थी तो उसे एक पेड़ के नीचे शेर बैठा हुआ दिखाई दिया| गाय कुछ सोचती इस से पहले शेर ने गाय को देख लिया और अपने पास बुला लिया| गाय डरती हुई शेर के पास गई तो शेर ने कहा "मैं भूखा हूँ तुम्हें खाना चाहता हूँ"| गाय ने गिडगिडाते हुए कहा "मुझे कोई इतराज नहीं है आप मुझे खा सकते हैं लिकिन मेरी एक बिनती है कि मेरा बछड़ा सुबह से भूखा है पहले में उसे दूध पिला आऊं फिर आप मुझे मार कर खा लेना"|शेर ने कहा "तुम भाग जाओगी दुबारा यहाँ नहीं आओगी इस लिए अभी खता हूँ"| गाय ने कहा "मैं वादा करती हूँ कि बछड़े को दूध पिला कर मैं जरुर वापस आ जाउंगी"| शेर ने कहा " ठीक है जाओ और जल्दी ही वापस आ जाओ"| गाय अपने बछड़े के पास गई उसको दूध पिलाया और बहुत सारा प्यार किया|गाय की आँखें भर आई| गाय आंसू पोछते हुए शेर के पास लौट आई| शेर से कहा "अब आप मुझे खा सकते हैं"| गाय के इस भोले पन को देख कर शेर को दया आगई| शेर ने गाय से कहा मैंने तुम्हें जीवन दान दिया जाओ जाकर अपने बछड़े को दूध पिलाओ और बहुत सारा प्यार दो|गाय ख़ुशी ख़ुशी अपने बछड़े के पास आगई और दोनों आराम से रहने लगे|

Monday, September 5, 2011

खाने पीने को बंदरी डंडा खाने को रीछ

किसी शहर में एक मदारी रहता था| मदारी के पास एक बंदरी और एक रीछ थे| मदारी सारा दिन बंदरी और रीछ को नचाकर लोगों का मनोरंजन करता था, उस से जो कुछ भी मिलता उस से अपना और बंदरी और रीछ का पेट पलता था| एकबार मदारी को किसी काम से बाहर जाना पड़ा| मदारी बंदरी और रीछ को घर में छोड़ गया| बाहर जाते समय मदारी अपने लिए एक बर्तन में दही ज़माने को रख गया| मदारी के जाने के बाद कुछ देर में बंदरी को भूख लग गई| रीछ तो बेचारा चुपचाप सो गया| बंदरी ने चुपचाप मदारी का जमाया हुआ दही खालिया और थोडा सा दही सोए पड़े रीछ के मुंह पर लगा दिया| जब मदारी वापस आया तो उसने रोटी खाने के लिए दही देखा तो दही वाला बर्तन खाली था| उसने देखा कि रीछ के मुंह पर दही लगा हुआ था| मदारी ने आव देखा ना ताव देखा डंडा लेकर रीछ को पीटडाला | बंदरी चुपचाप बैठ कर तमासा देख रही थी| रीछ बेचारे को मुफ्त में मार पड़ गई| खा पी बंदरी गयी| तभी से यह कहावत बनी है कि खाने पीने को बंदरी डंडे खाने को रीछ|

Monday, August 15, 2011

कामना का बंधन

बहुत समय पहले की बात है| किसी शहर में एक ब्यापारी रहता था| उस ब्यापारी ने कहीं से सुन लिया कि राजा परीक्षित को भगवद्कथा सुनने से ही ज्ञान प्राप्त हो गया था| ब्यापारी ने सोचा कि सिर्फ कथा सुन ने से ही मनुष्य ज्ञानवान हो जाता है तो में भी कथा सुनूंगा और ज्ञानवान बन जाऊंगा| कथा सुनाने के लिए एक पंडित जी बुलाए गए| पंडित जी से आग्रह किया कि वे ब्यापारी को कथा सुनाएं| पंडित जी ने भी सोचा कि मोटी आसामी फंस रही है| इसे कथा सुनाकर एक बड़ी रकम दक्षिणा के रूप में मिल सकती है| पंडित जी कथा सुनाने को तयार हो गए| अगले दिन से पंडित जी ने कथा सुनानी आरम्भ की और ब्यापारी कथा सुनता रहा| यह क्रम एक महीने तक चलता रहा| फिर एक दिन ब्यापारी ने पंडित जी से कहा "पंडित जी आप की ये कथाएँ सुन कर मुझ में कोई बदलाव नहीं आया, और ना ही मुझे राजा परीक्षित की तरह ज्ञान प्राप्त हुआ|"
पंडित जी ने झल्लाते हुए ब्यापारी से कहा "आप ने अभी तक दक्षिणा तो दी ही नहीं है, जिस से आप को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई|" इस पर ब्यापारी ने कहा जबतक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती तबतक वह दक्षिणा नहीं देगा| बात पर दोनों में बहस होने लगी| दोनों ही अपनी अपनी बात पर अड़े थे| पंडित जी कहते थे कि दक्षिणा मिलेगी तो ज्ञान मिलेगा और ब्यापारी कहता था ज्ञान मिलेगा तो दक्षिणा मिलेगी| तभी वहां से एक संत महात्मा का गुजरना हुआ| दोनों ने एक दूसरे को दोष देते हुए उन संत महात्मा से न्याय की गुहार लगाई| महात्मा ज्ञानी पुरुष थे| उन्हों ने दोनों के हाथ पांव बंधवा दिए और दोनों से कहा कि अब एक दोसरे का बंधन खोलने का प्रयास करो| बहुत प्रयास करने के बाद भी दोनों एक दूसरे को मुक्त कराने में असफल रहे| तब महात्मा जी बोले "पंडित जी ने खुद को लोभ के बंधन में और ब्यापारी ने खुद को ज्ञान कि कामना के बंधन से बांध लिया था| जो खुद बंधा हो वह दूसरे के बंधन को कैसे खोल सकता है| आपस में एकात्म हुए बिना आध्यात्मिक उद्देश्य कि पूर्ति नहीं हो सकती है|





Friday, July 29, 2011

किसी का भी अपमान मत करो

बहुत समय पहले की बात है| समुद्र के किनारे एक टिटहरी परिवार रहता था| एक बार टिटहरी ने अंडे देने थे| टिटहरी ने टिटहरे से कहा- हमें कोई ऐसा स्थान ढूँढना चाहिए जहाँ अण्डों को सुखपूर्वक रखा जा सके| टिटहरे ने कहा यह समुद्र तट बहुत रमणीय है, यहीं अंडे देदो| इस पर टिटहरी ने कहा-समुद्र की ये लहरें तो बड़े बड़े मदोन्मत्त गजराजों तक को अपने में खीच लेती हैं, फिर हम छोटे पक्षियों की क्या बिसात है| टिटहरे ने कहा संसार में सब की मर्यादा है, समुद्र की भी एक मर्यादा है; यदि वह इसका अतिक्रमण कर के हमें छोटा समझ हमारे अण्डों को बहा ले जाएगा तो उसे उसका दंड भुगतना पड़ेगा, तुम किसी बात की चिंता मत करो| समुद्र ने ये सब बातें सुन लीं|
टिटहरे के आश्वासन देने पर टिटहरी ने समुद्र के किनारे सुरक्षित स्थान पर अंडे दे दिए| एक दिन जब टिटहरी परिवार भोजन की खोज में कहीं बाहर चले गए तो समुद्र ने उनके अंडे चुरा लिए| टिटहरी परिवार के वापस लौटने पर अण्डों को न देख टिटहरी रोने लगी| टिटहरे ने कहा| तुम चिंता न करो, समुद्र को इसका फल भुगतना पड़ेगा| यह कह कर टिटहरे ने पक्षिराज गरुड़ के पास जाकर प्रार्थना की- महाराज! समुद्र हमें छोटा प्राणी समझ कर अपमानित करता है| उसने मेरी टिटहरी के अण्डों को चुरा लिया है| आप हम सभी पक्षियों के स्वामी हैं और समर्थ हैं, अत: आपको समुद्र की इस नीचता के लिए दंड देना चाहिए| गरुड़ ने कहा- टिटहरे! समुद्र को भगवान श्रीहरि का आश्रय प्राप्त है, अत: में उन्हीं श्रीहरि से उसे दंड दिलाऊंगा| यह कह कर गरुड़ टिटहरे को श्रीहरि के पास ले गया और समुद्र द्वारा की गई नीचता की बात उन से कही| श्रीहरि के कहने पर भय भीत समुद्र ने टिटहरी के अंडे वापस कर दिए, और आगे से कभी ऐसा न करने की शपथ लेकर मांफी मागी|
इसी लिए कहते हैं कि किसी भी छोटे या कमजोर जीव-जंतु का भी अपमान नहीं करना चाहिए| प्रतेक जीव में श्रीहरि का वास है| उस जीव का अपमान श्रीहरि का अपमान है| अपमान करने वाले ब्यक्ति को दंड का भागी बनना पड़ता है|

Sunday, July 24, 2011

चतुर गीदड़

             किसी जंगल में एक चतुर और बुद्धिमान गीदड़ रहता था| उसके चार मित्र बाघ, चूहा, भेड़िया और नेवला भी उसी जंगल में रहते थे| एक दिन चरों शिकार करने जंगल में जा रहे थे| जंगल में उन्हों ने एक मोटा ताजा हिरन देखा उन्हों ने उसे पकड़ने की कोशिश की परन्तु असफल रहे| उन्हों ने आपस में मिलकर विचार किया| गीदड़ ने कहा यह हिरन दौड़ने में काफी तेज है| और काफी चतुर भी है| बाघ भाई! आपने इसे कई बार मारने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सके| अब ऐसा उपाय किया जाए कि जब वह हिरन सो रहा हो तो चूहा भाई जाकर धीरे धीरे उसका पैर कुतर दे, जिस से उसके पैर में जखम हो जाये|  फिर आप पकड़ लीजिए तथा हम सब मिलकर इसे मौज से खाएं| सब ने मिलजुल कर वैसे ही किया| जखम के कारन हिरन तेज नहीं दौड़ पाया और मारा गया| खाने के समय गीदड़ ने कहा अब तुम लोग स्नान कर आओ मैं इसकी देख भाल करता हूँ| सब के चले जाने पर गीदड़ मन-ही-मन विचार करने लगा| तब तक बाघ स्नान कर के लौट आया|
               गीदड़ को चिंतित देख कर बाघ ने पूछा- मेरे चतुर मित्र तुम किस उधेड़ बुन में पड़े हो? आओ आज इस हिरन को खाकर मौज मनाएँ| गीदड़ ने कहा बाघ भाई! चूहे ने मुझ से कहा है कि बाघ के बल को धिक्कार है! हिरन तो मैंने मारा है| आज वह बलवान बाघ मेरी कमाई खाएगा| सो उसकी यह धमंड भरी बात सुन कर मैतो अब हिरन को खाना अच्छा नहीं समझाता| बाघ ने कहा- अच्छा ऐसी बात है? उसने तो मेरी आखें खोल दीं| अब में अपने ही बल बूते पर शिकार कर के खाऊंगा| यह कह कर बाघ चला गया| उसी समय चूहा आ गया| गीदड़ ने चूहे से कहा-चूहे भाई! नेवला मुझ से कह रहा था कि बाघ के काटने से हिरन के मांस में जहर मिल गया है| मैं तो इसे खाऊंगा नहीं, यदि तुम कहो तो मैं चूहे को खाजाऊँ| अब तुम जैसा ठीक समझो करो| चूहा डर कर अपने बिल में घुस गया| अब भेदिये की बारी आई| गीदड़ ने कहा- भेड़िया भाई! आज बाघ तुमपर बहुत नाराज है मुझे तो तुम्हारा भला नहीं दिखाई देता| वह अभी आने वाला है| इसलिए जो ठीक समझो करो| यह सुनकर भेड़िया दुम दबाकर  भाग खड़ा हुआ| तब तक नेवला भी आ गया| गीदड़ ने कहा- देख रे नेवले! मैंने लड़कर बाघ भेड़िये और चूहे को भगा दिया है| यदि तुझे कुछ घमंड है तो आ, मुझ से लड़ ले और फिर हिरन का मांस खा| नेवले ने कहा- जब सभी तुमसे हार गए तो में तुमसे लडनेकी हिम्मत कैसे करूँ? वह भी चला गया| अब गीदड़ अकेले ही मांस खाने लग गया| इस तरह गीदड़ ने अपनी चतुराई से बाघ जैसे ताकतवर को भी मात दे दी|    


Saturday, July 16, 2011

किसान और सारस

                     किसी गांव में एक किसान रहता था| किसान बहुत मेहनती था| उसके खेतों में बहुत अच्छी फसल हुआ करती थी| किसान के खेत के पास ही एक जलाशय भी था| जिसके किनारे बहुत सारे बगुले भी रहा करते थे| बगुले किसान की फसल को काफी नुकसान पहुँचाया करते थे| एक दिन किसान ने बगुलों को पकड़ने के लिए अपने खेत में जाल बिछा दिया| कुछ समाय बाद आकर देखा तो, बहुत सारे बगुले जाल में फंसे हुए थे| इस जाल में एक सारस भी फंसा हुआ था| सारस ने किसान से कहा- किसान भाई में बगुला नहीं हूँ मैं ने तुम्हारी फसल बर्बाद नहीं की है| मुझे छोड़ दो| तुम विचार करके देखो कि मेरी कोई गलती नहीं है| जितने भी पक्षी है, मैं उन सब कि अपेक्षा अधिक धर्म-पारायण हूँ| मैं कभी किसी का नुकसान नहीं करता| मैं अपने बृद्ध माता-पिता का अतीव सम्मान करता हूँ और विभिन्न स्थानों में जाकर प्राण-पण से उनका पालन-पोषण करता हूँ|
                    इस पर किसान बोला- सुनो सारस, तुमने जो बातें कहीं, वे सब ठीक हैं,उनपर मुझे जरा भी संदेह नहीं है| परन्तु तुम फसल बर्बाद करने वालों के साथ पकडे गए हो, इसलिए तुम्हें भी उन्हीं लोगों के साथ सजा भोगनी होगी| इसी लिए कहते हैं कि कुसंगत का फल बुरा होता है|

Saturday, July 9, 2011

एकता में बल है

                   एक गांव में एक किसान रहता था| किसान के चार बेटे थे| किसान अपने बेटों से बहुत दुखी था| उसके चारों बेटे निक्कमे और निखट्टू थे| हमेशा आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे| किसान को इस बात का बहुत दुःख था कि मेरे मरने के बाद मेरे बेटों का क्या बनेगा कैसे खाएंगे| 
                  एक दिन किसान बीमार पड़ गया| उसने अपने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और कभी भी आपस में न लड़ने की नसीहत देनी चाही| उसने अपने बेटों से एक लकड़ी का गट्ठा मगवाया| फिर बारी बारी से गट्ठे को  तोड़ने के लिए कहा परन्तु चारों में से कोई भी उस गट्ठे को नहीं तोड़ पाया| फिर किसान ने सभी लकड़ियों को अलग अलग करने को कहा| अलग अलग करने के बाद चारों को एक एक लकड़ी तोड़ने को कहा|  चारों ने लकड़ी आराम से तोड़ दी| इस पर किसान ने कहा जिस तरह तुम लकड़ी के गट्ठे को पूरा जोर लगाने के बाद भी नहीं तोड़ सके, पर जब वह अलग अलग कर दी तो तुमने आसानी से तोड़ दी, उसी तरह अगर तुम साथ रहो तो कोई भी तुम्हारा बाल तक बांका नहीं कर सकता है| और अगर तुम अलग अलग रहे,  लड़ते झगड़ते रहे तो कोई भी तुम्हें आसानी से हरा सकता है| 
                   किसान के बेटों की समझ में यह बात आगई और उन्हों ने आपस में कभी न लड़ने की कसम खाली| इसी लिए कहते हैं कि एकता में बल है|

Friday, July 1, 2011

हाथी और लोमड़ी

                        किसी जंगल में एक हाथी रहता था| हाथी बहुत बड़ा और ताकतवर था| कोई भी जंगली जानवर उस हाथी के नजदीक नहीं फटकता था| सब जानवर उस से डरते थे| वैसे हाथी किसी जानवर को कुछ भी नहीं कहता था| अकेला ही जंगल में घूमता रहता था| अपनी लम्बी सूंड से ऊँचे ऊँचे पेड़ों की टहनियों को तोड़ कर खाया करता था और जंगल के बीच वाले तालाब से पानी पीकर वहीँ पड़ा रहता था| इसी जंगल में एक लोमड़ियों का झुण्ड भी रहता था| लोमड़ियों का झुण्ड भी हाथी को देख कर परेशान रहता था| खुलकर शिकार नहीं कर सकता था| एक बार लोमड़ियों ने एक सभा बुलाई जिसमें उन्हों ने हाथी को ठिकाने लगाने की सोची| उन्हों ने सोचा की अगर हाथी को मारगिराया  तो काफी दिनों के लिए खाना भी हो जाएगा  और हाथी से छुटकारा भी मिल जाएगा| पर किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि हाथी का मुकाबला कर सके| आखिर में एक लोमड़ी ने कहा हाथी को तो में मार सकती हूँ| अगर सभी मेरा साथ दें तो| सभी ने हामी भरदी| लोमड़ी ने कहा तुम देखते जाओ  में हाथी से कैसे निबटती हूँ|                                                                                                                                

                       अगले दिन लोमड़ी सुबह सुबह हाथी के घर चली गयी और हाथी को प्रणाम किया| हाथी ने लोमड़ी से पूछा तुम कौन हो कहाँ से आई हो, तुम्हें पहले कभी देखा नहीं है| लोमड़ी ने कहा हमारे जंगल में कोई भी राजा नहीं है| आप बहुत बड़े भी हैं और ताकतवर भी हैं, इसलिए सभी जंगल के जानवरों ने फैसला किया है कि आपको ही जंगल का राजा बनाया जाय| राजा बनाने की  बात सुनकर हाथी बहुत खुश हो गया| हाथी को खुश हुआ देखकर लोमड़ी ने कहा राजा बनाने का महूर्त कल सुबह का ही निकला है इस लिए हमें आज ही वहां जाना होगा ताकि सुबह समय पर राज्याभिषेक किया जा सके| इतना सुनते ही हाथी चलने को तयार हो गया| आगे आगे लोमड़ी चलने लगी और पीछे पीछे हाथी चलने लगा| लोमड़ी हाथी को एक ऐसे रास्ते से ले गयी जहाँ दलदल से हो कर जाना पड़ता था| लोमड़ी हलकी होने से दलदल के ऊपर से आराम से निकल गयी लेकिन हाथी ज्यों ही दलदल के ऊपर से जाने लगा उसके पैर दलदल में धंस गए| हाथी ने लोमड़ी को आवाज देकर रुकने को कहा लोमड़ी ने मुड़ कर देखा तो हाथी दलदल में फसा हुआ था और जितनी कोशिश बाहर निकलने की  करता था उतना ही दलदल में फसता जा रहा था| लोमड़ी ने देखा कि उसकी चाल काम कर गयी है| लोमड़ी ख़ुशी ख़ुशी  अपने साथियों को बुलाने को चली गई| वापस आने पर देखा कि हाथी दलदल में दब चुका है यह देख कर लोमड़ी का दल बहुत खुश हुआ और हाथी को खाने के लिए टूट पड़ा| इस तरह हाथी ने बहकावे में आकर अपनी जान  गवा दी| इस लिए कहते हैं कि बिना सोचे समझे किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए|     

Thursday, June 23, 2011

उड़ती हुई अफवाह

                        किसी गांव में एक ब्राह्मन रहता था| वह हमेशा पूजा पाठ में लगा रहता था| एक दिन वह रोज की तरह पूजा पाठ में लगा हुआ था| ब्राह्मन को लगा कि उसके मुंह में कुछ है| ब्राह्मन ने जब अंगुली डाल कर उसे बाहर निकाला तो देखा कि यह एक चिड़िया का छोटा सा पंख है| ब्राह्मन को चिड़िया के पंख को देख कर बहुत हैरानी हुई| पूजा के बाद जब ब्राह्मन अपने घर गया तो उसने यह हैरानी वाली बात अपनी पत्नी को बताई| साथ में यह बात किसी को नहीं बताने की हिदायत दी| उसकी पत्नी ने कहा ठीक है में किसी को भी नहीं बताउगी| यह बात सुन कर ब्राह्मन पत्नी भी काफी हैरान हुई| कुछ समय के बाद ब्राह्मन पत्नी से यह बात पचाई नहीं गई| उसने यह बात अपनी एक सहेली को यह कहकर बता दी कि वह यह बात किसी को नहीं बताएगी| ब्राह्मन पत्नी से कहने में या उसकी सहेली के सुनने में फरक रह गया| उसने बहुत से पंख कह दिए या बहुत से पंख सुन लिए| ब्राह्मन पत्नी की सहेली ने यह बात आगे अपनी सहेली को बता दी| दोनों के कहने में या सुनने में फिर फरक रह गया और उसकी सहेली ने पूरी चिड़िया ही सुन लिया| धीरे धीरे शाम तक यह अफवाह  गांव से बाहर तक फ़ैल गई और एक पंख के बजाय कई पंखों में फिर पूरी चिड़िया में फिर कई  चिड़ियों में बदल गयी| शाम को सभी गांव वाले मिल कर यह चमत्कार देखने के लिए ब्राह्मन के घर आये और ब्राह्मन से चमत्कार दिखाने को कहा| ब्राह्मन ने बहुत समझाने की कोशिश की पर कोई भी मानने को तैयार नहीं हुआ| आखिर में ब्राह्मन ने कहा ठीक है आप सभी लोग बैठ जाओ में अभी आता हूँ| यह कह कर ब्राह्मन पीछे के रास्ते से घर से बाहर चला गया और कई दिन वापस नहीं आया| जब वह वापस आया तो सारी अफवाह  ठंडी पड़ गई थी| इसी लिए कहते हैं कि जिस बात को आप छुपाना चाहते हैं उस बात को किसी को बताना नहीं चाहिए चाहे वह कितना ही विश्वास पात्र क्यों न हो|     
    


Saturday, June 18, 2011

शेर और चूड़ी

                         एक जंगल में एक बूढ़ा शेर रहता था| शेर इतना अधिक बूढ़ा हो चुका था कि उसमें शिकार करने की भी ताकत नहीं रही थी| एक दिन बूढ़ा शेर जंगल में शिकार की तलाश में घूम रहा था, तो उसे कोई चमकती हुई चीज दिखाई दी| शेर ने उसे उठाकर देखा तो यह एक सोने की चूड़ी थी| शेर ने सोचा इसे किसी आदमी को दिखा कर लालच में फसाया जा सकता है| इस से आदमी का स्वादिष्ट मीट भी खाने को मिल सकता है| यह सोच कर शेर जंगल के बिच में नदी के किनारे रास्ते में एक पेड़ के नीचे बैठ कर किसी यात्री का इंतजार करने लगा| कुछ ही देर में एक आदमी उस रास्ते से गुजर रहा था तो शेर ने आवाज दे कर कहा "अरे भाई यह सोने की चूड़ी लेलो " मेरी यह किसी कम की नहीं है, तुम्हारे कोई काम आ जाएगी| राही ने लेने से इंकार कर दिया तो शेर ने कहा ठीक है अगर तुम नहीं लेना चाहते हो तो में किसी और को दे देता हूँ, यह कह कर शेर वहां से जाने लगा तो यात्री ने सोचा अगर शेर ने मुझे खाना ही होता तो वह मुझे वैसे ही मार  कर खा सकता था| यात्री ने शेर से कहा में यह चूड़ी लेने को तयार हूँ| शेर ख़ुशी से मुड़ा और चूड़ी जमीं पर रखते हुए बोला ठीक है ये ले जाओ| यात्री लालच में पड़ कर चूड़ी लेने आगे बढ़ा| जैसे ही यात्री ने चूड़ी उठाने को हाथ आगे बढाया शेर ने छलांग मार कर यात्री को दबोच लिया और मार कर खा गया|  इस तरह यात्री का अंत हो गया| इस लिए कहते हैं कि लालच बुरी बला है|




Sunday, June 12, 2011

शेर और खरगोश

                    किसी जंगल में एक शेर रहता था| शेर कई दिनों से भूखा था| जब वह अपनी मांद से शिकार करने निकल रहा था तो उसने देखा कि एक खरगोश उसकी मांद के करीब ही खेल रहा है| शेर जैसे ही उस पर झपटने वाला था, सामने एक हिरन दिखाई दिया| शेर ने सोचा खरगोश तो बहुत छोटा है,नाश्ता भी पूरा नहीं होगा हिरन काफी बड़ा है उसी को मारना चाहिए|
                  अत: वह शेर खरगोश को छोड़ कर उस हिरन के पीछे दौड़ पड़ा| लेकिन वह हिरन शेर को देख कर, बहुत तेज दौड़ने लगा और जल्दी ही वह शेर की आँखों से ओझल हो गया|
                  शेर ने हिरन को तेज दौड़ते हुए देखा तो वह सोचने लगा कि वह अब हिरन को नहीं पकड़ सकेगा| हिरन के आँखों से ओझल होते ही शेर पूरा भोजन पाने की आशा छोड़ बैठा| उसने मन ही मन निश्चय किया कि हिरन का पीछा करना अब बेकार है| मुझे खरगोश के पास ही लौट जाना चाहिए| उसको खाने से मेरा कुछ तो पेट भरेगा|
                 किन्तु वह जब लौट कर वापस  अपनी मांद के पास पहुंचा तो वहां खरगोश को न पाकर वह आश्चर्य में पड़ गया| वह सोचने लगा मैं तो खरगोश को यहीं छोड़ गया था? फिर यह खरगोश कहाँ चला गया? जरुर यही कहीं छिपा होगा| मैं अभी उसको तलाश करता हूँ| वह मुझसे बच कर कहाँ जा सकता है? यह सोच कर वह शेर उस खगोश को तलाश करने लगा| उसने मांद के अन्दर देखा, मांद के बाहर  देखा मगर उसे कहीं भी वह खरगोश नज़र नहीं आया| खरगोश तो शेर के वहां से जाते ही रफूचक्कर हो गया था| खरगोश को वहां न पाकर शेर बड़ा हताश हुआ| हिरन और खरगोश दोनों ही उसका भोजन बनने से बच गए थे|
                 शेर हिरन का ध्यान कर सोचने लगा जब मैंने उसे देखा था तो सोचा था, हिरन खरगोश से बड़ा है इसलिए उसको खाकर मेरा पेट भर जाएगा| खरगोश तो बहुत छोटा है-उसको खाकर मेरा पेट भी नहीं भर सकता| अत: मैं खरगोश को छोड़ कर हिरन का शिकार करने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ा| लेकिन दुर्भाग्य कि वह हिरन मेरे हाथ नहीं आया और तेजी से भाग गया|
                  अपने दोनों शिकार हाथ से निकल जाने के कारन शेर बड़ा पछताया और बोला,"मैंने थोडा छोड़ कर ज्यादा पाने के लालच में अपना सबकुछ खो दिया"| मैं न थोडा पा सका न ज्यादा| 
                   इस लिए कहते हैं कि ज्यादा पाने के लालच में थोड़े से भी हाथ धोना पड़ जाता है|

   

Saturday, June 4, 2011

सुनी सुनाई बात

                      बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे|  जंगल के बीच में एक बहुत बड़ा तालाब था जहाँ से जानवर पानी पीते थे| इस तालाब के किनारे पर एक पपीते का बहुत ऊँचा पेड़ था उस पर बहुत बड़े बड़े पपीते लगते थे| एक बार कुछ खरगोश पानी पी कर तालाब के किनारे पर खेल रहे थे| एक पका हुआ  बड़ा सा  पपीता टूट कर पानी में गिर गया जिस से बहुत जोर की आवाज आई "गडम" करके| गडम की   आवाज सुन कर खरगोश डर गए और भाग निकले| खरगोशों को भागते हुए देख कर एक लोमड़ी ने पूछा "क्यों भाई क्या बात है क्यों भाग रहे हो" खरगोश ने कहा गडम आ रहा है भागो| लोमड़ी भी उनके साथ भाग ली| आगे चल कर उनको एक हाथियों का झुण्ड मिला| एक हाथी ने पूछा "क्यों भाग रहे हो तो उत्तर मिला गडम आ रहा है भागो| हाथी भी साथ भागने लगे| धीरे धीरे गडम आ रहा है सुन कर बहुत सारे जानवर एकसाथ भागने लगे| यह जानवरों का झुण्ड जब बब्बर शेर की मांद के पास से दौड़ रहा था तो शेर ने पूछा क्यों भाग रहे हो| उत्तर मिला गडम आ रहा है भागो|जैसे ही एक शेर भागने को तयार हो रहा था तो दूसरे शेर ने कहा तुम क्यों भाग रहे हो तुम तो जंगल के राजा हो| तुम्हारे पास शक्तिशाली पंजे हैं तुम जिसे चाहो अपने पंजों से चीर सकते हो| भागने से पहले सच्चाई तो जानलें| इस पर शेर ने एक जानवर से पूछा कि तुम्हें किसने कहा कि गडम आरहा है तो उसने कहा मुझे तो हाथी ने कहा| हाथी से पूछा तो उसने कहा मुझे तो लोमड़ी ने कहा| लोमड़ी ने कहा मुझे तो खरगोश  ने कहा था| जब खरगोश से पूछा तो उसने कहा हम जहाँ पर खेल रहे थे वहां पर गडम की आवाज आई थी जिस को सुन कर हम भागे थे| शेर ने कहा मुझे उस स्थान पर ले चलो| सभी उस स्थान की ओर चल पड़े| जैसे ही सभी जानवर तालाब के किनारे पर पहुंचे एक बड़ा सारा पपीता टूट कर पानी में गिर गया और बहुत जोर से गडम की आवाज आई| शेर ने कहा यह तो पानी की आवाज है जो पपीते के गिरने से हुई| खरगोश ने कहा हम तो यही आवाज सुनकरकर ही  डर के मारे भागे थे| तब शेर ने समझाया कि इसमें डरने की कोई बात नहीं है| यह सब सुनी सुनाई बात से हुआ है| शेर ने कहा आगे से कभी भी सुनी सुनाई बात पर विश्वास मत करना|       

Saturday, May 28, 2011

लोभ से विनाश

                       बहुत समय पहले की बात है| किसी गांव में एक किसान रहता था| गांव में ही  खेती का काम करके अपना और अपने परिवार का पेट पलता था| किसान अपने खेतों में बहुत मेहनत से काम करता था, परन्तु इसमें उसे कभी लाभ नहीं होता था| एक दिन दोपहर में धूप से पीड़ित होकर वह अपने खेत के पास एक पेड़ की छाया में आराम कर रहा था| सहसा उस ने देखा कि एक एक सर्प उसके पास ही बाल्मिक (बांबी) से निकल कर फेन फैलाए बैठा है| किसान आस्तिक और धर्मात्मा प्रकृति का सज्जन व्यक्ति था| उसने विचार किया कि ये नागदेव अवश्य ही मेरे खेत के देवता हैं, मैंने कभी इनकी पूजा नहीं की, लगता है इसी लिए मुझे खेती से लाभ नहीं मिला| यह सोचकर वह बाल्मिक  के पास जाकर बोला-"हे क्षेत्ररक्षक नागदेव! मुझे अब तक मालूम नहीं था कि आप यहाँ रहते हैं, इसलिए मैंने कभी आपकी पूजा नहीं की, अब आप मेरी रक्षा करें|" ऐसा कहकर एक कसोरे में दूध लाकर नागदेवता के लिए रखकर वह घर चला गया| प्रात:काल खेत में आने पर उसने देखा कि कसोरे में एक स्वर्ण मुद्रा रखी हुई है| अब किसान प्रतिदिन नागदेवता को दूध पिलाता और बदले में उसे एक स्वर्ण  मुद्रा प्राप्त होती| यह क्रम बहुत समय तक चलता रहा| किसान की सामाजिक और आर्थिक हालत बदल गई थी| अब वह धनाड्य  हो गया था|
                     एक दिन किसान को किसी काम से दूसरे गांव जाना था| अत: उसने नित्यप्रति का यह कार्य अपने बेटे को सौंप दिया| किसान का बेटा किसान के बिपरीत लालची और क्रूर स्वभाव का था| वह दूध लेकर गया और सर्प के बाल्मिक के पास रख कर लौट आया| दूसरे दिन जब कसोरालेने गया तो उसने देखाकि उसमें एक स्वर्ण मुद्रा रखी है| उसे देखकर उसके मन में लालच  आ गया| उसने सोचा कि इस बाल्मिक में बहुत सी स्वर्णमुद्राएँ हैं और यह सर्प उसका रक्षक है| यदि में इस सर्प को मार कर बाल्मिक खोदूं तो मुझे सारी स्वर्णमुद्राएँ एकसाथ मिल जाएंगी| यह  सोचकर उसने सर्प पर प्रहार किया, परन्तु भाग्यवस   सर्प बच गया एवं क्रोधित हो अपने विषैले दांतों से उसने उसे काट लिया| इस प्रकार किसान बेटे की लोभवस मृतु हो गई| इसी लिए कहते हैं कि लोभ करना ठीक नहीं है|  

Friday, May 20, 2011

लोमड़ी और सारस

                       बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में बहुत सारे पशु पक्षी रहा करते थे| सभी जानवर आपस में मिलजुल कर रहते थे| एक बार एक लोमड़ी जंगल में घूम रही थी| घूमते घूमते उसकी मुलाकात एक सारस से हो गई| धीरे धीरे दोनों की मुलाकात दोस्ती में बदल गई| दोनों पक्के दोस्त बन गए| एक दिन लोमड़ी ने सारस से कहा हमारी दोस्ती काफी दिनों से है पर हमने कभी भी एक दुसरे को दावत नहीं दी| कल को में तुम्हे दावत देना चाहता हूँ,  तुम मेरे घर दावत पर जरुर आना| सारस ने उसकी दावत का निमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया|
                      अगले दिन सारस सही समय पर लोमड़ी के घर दावत लेने पहुँच गया| लोमड़ी ने भी उसका स्वागत किया| खाने में लोमड़ी ने स्वादिष्ट खीर बनाई थी| जब खाने का समय हुआ तो लोमड़ी एक चौड़े बर्तन में खीर परोस कर ले आई| दोनों खाने लगे| सारस की चोंच इस में डूब नहीं रही थी इस लिए खीर का आनंद नहीं ले सका| लोमड़ी फटाफट सारी खीर चाट गई| सारस बिचारा भूखा ही रह गया| सारस लोमड़ी की चालाकी को समझ गया| सारस ने लोमड़ी को सबक सिखाने की सोची| फिर एक दिन सारस ने भी लोमड़ी को अपने घर दावत देने की सोची| उसने लोमड़ी को दावत का निमंत्रण दे दिया| लोमड़ी ने भी दावत को सहर्ष स्वीकार कर लिया| अगले दिन लोमड़ी बड़े चाव से सारस के घर दावत उड़ाने चली गई| सारस ने भी उसकी मनपसंद खीर बनाई थी| जब खाने का समय आया तो सारस एक पतले मुंह वाले बर्तन में खीर परोस कर ले आया और लोमड़ी को खाने का आग्रह किया| जब लोमड़ी खाने लगी तो उसकी जीभ खीर तक पहुंची ही नहीं| सारस ने अपनी लम्बी चौंच से सारी खीर डकार ली| लोमड़ी बेचारी को भूखे पेट ही रहना पड़ा और अपने किए पर काफी पछतावा भी हुआ| इसी लिए कहते है कि जो जैसा व्यवहार दूसरों के साथ करता है उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए|

Wednesday, May 11, 2011

चालाक बिल्ली

                             बहुत समय पहले की बात है| एक जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था| इस पेड़ की शाखाओं पर  बहुत सारे पक्षी रहा करते थे| इस पेड़ की एक शाखा पर एक चिड़िया और एक कौवा भी रहते थे|  दोनों ने अपने अपने घोंसले बना रक्खे थे| एक दिन चिड़िया ने कौवे से कहा "नजदीक में ही बहुत सारी फसल पक कर तयार हुई है में उसकी दवात उड़ाने जा रही हूँ तुम मेरे घर का ख्याल रखना"| कौवे ने कहा ठीक है| चिड़िया फुर्र से उड़ गई| शाम को कौवा चिड़िया का इंतजार करता रहा  पर चिड़िया नहीं आई| धीरे धीरे कई दिन बीतने पर कौवे ने सोचा कि हो सकता है, चिड़िया को किसी ने पकड़ लिया हो| कौवे को अब उमीद नहीं थी कि चिड़िया वापस आ जाएगी| एक दिन एक सफ़ेद रंग का खरगोश  वहां से जा रहा था तो उसकी नज़र उस खाली पड़े घोंसले पर पड़ी| अन्दर जा कर देखा वहां कोई नहीं था| खरगोश  को यह घर पसंद आगया और वह उसी घर में रहने लगा| कौवे ने भी कोई एतराज  नहीं किया|      
                          बहुत दिन बीतने पर जब फसल ख़तम हो गई तो चिड़िया वापस अपने घोंसले में आई| यहाँ आकर उसने देखा कि उसके घर में एक सफ़ेद रंग का खरगोश रह रहा है| उसने खरगोश से कहा कि यह घर तो मेरा है| खरगोश ने कहा में यहाँ कई दिनों से रह रहा हूँ इस लिए यह घर मेरा है| चिड़िया जब तक उड़ने वाली नहीं होती तबतक ही घोंसले में रहती है| चिड़िया नहीं मानी| खरगोश भी नहीं माना| दोनों खूब जोर जोर से बोल रहे थे| आखीर  में खरगोश ने कहा हमें किसी बुद्धिमान के पास जाकर अपना फैसला करवाना चाहिए| जिस के हक़ में फैसला होगा वह इसमें रहेगा , दूसरे को जाना  पड़ेगा| इस बात को चिड़िया भी मान गई| इन की इस  लड़ाई को एक बिल्ली ने भी सुन लिया था| बिल्ली फटा फट एक माला हाथ में लेकर जोर जोर से राम राम रटने लग गई| जैसे ही खरगोश की नज़र उस पर पड़ी तो खरगोश ने कहा वह देखो वह बिल्ली राम राम रट रहीं है उसी से फैसला करवा लेते है| चिड़िया ने कहा यह  हमारी पुरानी दुश्मन है इस लिए इस से दूरी बना कर ही बात करनी होगी| चिड़िया ने दूर से ही आवाज देकर कहा "महाराज हमारा एक फैसला करना है|" बिल्ली ने आँख खोलते कान पर हाथ रख कर कहा "क्या कहा जरा नजदीक आकर जोर से बोलो| चिड़िया ने जोर से कहा हमारा एक फैसला करना है जिस की जीत होगी उसको छोड़ दूसरे को तुम खा लेना| बिल्ली ने कहा "छि:, छि: तुम यह कैसी बातें कर रही हो| मेंने तो शिकार करना कब का छोड़ दिया है| तुम निडर हो कर नजदीक आकर मुझे सब बताओ में फैसला कर दूंगी | खरगोश को उसकी बात पर भरोसा हो गया| वह बिल्ली के नजदीक गया तो बिल्ली बोली "और नजदीक आओ मेरे कान में सारी  बात बताओ| खरगोश ने उसके कान में सभी कहानी बतादी| चिड़िया भी यह देख कर बिल्ली के पास पहुँच गई| मौका देखते ही बिल्ली ने झपटा मार कर दोनों को मार दिया और खा  गई| पेट भर जाने के बाद बिल्ली खुद घोंसले में गई और सोगई|  इसलिए कभी भी अपने दुश्मन पर विश्वास नहीं करना चाहिए|  

Saturday, May 7, 2011

दिमाग के बिना गधा

                  किसी जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे| इस जंगल में एक शेर भी था| शेर ने एक  लोमड़ी को अपना सहायक बनाया हुआ था| अपने शिकार में से वह थोडा सा हिस्सा लोमड़ी को भी दे दिया करता था| एक दिन शेर का मुकाबला हाथी से हो गया| हाथी ने बहुत बुरे तरीके से शेर को घुमाया और बहुत दूर फैंक दिया| शेर को बहुत सी चोटें आईं जिस से वह शिकार करने के काबिल नहीं रहा|  भूखों मरने की नौबत आ गई| शेर के साथ साथ लोमड़ी भी भूखी ही रह गई| एक दिन शेर ने लोमड़ी से कहा कि तुम बहुत चतुर हो क्यों न तुम किसी जानवर को अपने साथ यहाँ तक ले आती ? यहाँ लाने के बाद में उसे मार गिराऊंगा और हमारे भोजन का इंतजाम हो जाएगा| लोमड़ी ने कहा ठीक है| लोमड़ी जंगल  में किसी मूर्ख जानवर को ढूढने चल पड़ी| बहुत दूर जाने के बाद उसे एक मूर्ख गधा चरता हुआ  दिखाई दिया| उसने सोचा इसी को पटाना चाहिए| वह गधे के पास गयी और उसको लालच देते हुए बोली  "आप यहाँ क्या कर रहे हैं यहाँ तो कोई हरी घास चरने को नहीं है, आप लोग कितने कमजोर हैं "| गधे को पहली बार किसी ने इतने मीठे शब्दों में बोला था| तो गधे ने जवाब दिया लोमड़ी बहिन  अब में तुम्हें क्या बताऊ मेरा मालिक जरुरत से जादा बोझ मेरे ऊपर लादता है और पेट भर कर खाना भी नहीं देता है| लोमड़ी ने उसके साथ सहमति जताते हुए कहा कि क्यों न तुम मेरे साथ जंगल में चलो वहां तो बहुत सारी हरी घास है| इसपर गधे ने कहा वहां जंगल में बहुत सारे शिकारी जानवर भी तो हैं| यह सुनते ही लोमड़ी सावधान हो गई और बोली तुम्हें किसी भी जंगली जानवर से डरने की जरुरत नहीं है| तुम जानते हो मुझे यहाँ जंगल के राजा शेर ने भेजा है| शेर चाहता है कि आदमी के सताए हुए सभी जानवरों को जंगल में शरण  दी जाए| उन्हों ने तो तुम्हें मंत्री बनाने का भी फैसला किया है| इस बात को सुन कर गधा बहुत खुश होया और लोमड़ी के साथ जंगल को चल दिया| बहुत दिनों से भूखा होने पर जैसे ही गधा शेर के सामने गया शेर उस पर कूद पड़ा| गधा डर गया और वहां से भाग खड़ा हुआ| बेचारा शेर फिर भूखा रह गया| लोमड़ी ने शेर ने कहा आप ने इतनी जल्दी क्यों हमला कर दिया उसको अपने नजदीक तो आने देना था| कोई बात नहीं में गधे को दुबारा यहाँ ले आती हूँ| आप चिंता मत करें| यह कहते हुए लोमड़ी गधे के पीछे भागी| शेर ने एक लम्बी साँस ली और सोचने लगा गधा  दुबारा यहाँ क्यों आएगा| जैसे ही लोमड़ी गधे के पास पहुंची उसने उसको विस्वास दिलाते हुए कहा जंगल का राजा तुम्हारे स्वागत के लिए आगे आया और तुम वहां से भाग खड़े हुए| मुझे यह बताओ कि अगर राजाने तुम्हें मारना ही होता तो क्या तुम अपने प्राणों को बचा पाते राजा तुम्हें एक ही पंजे से ख़तम कर सकता था| अब आओ तुम्हारे पास एक मौका है मंत्री बन ने का| में भी तुम्हारी सिफारिस करूँगा  राजा तुम्हें मंत्री बना देंगे| यह सुनते ही गधा फिर शेर के पास जानेको तयार हो गया| इस बार शेर ने गधे को बहुत नजदीक आने दिया| नजदीक आने पर शेर ने एक पंजा मारा गधा मर गया| इसके बाद शेर ने लोमड़ी से कहा यहाँ बैठ कर इसकी रखवाली करो तब तक में नहा आता हूँ| नहाकर इसे खाएंगे| लोमड़ी बहुत भूखी थी उसने चुप करके गधे का दिमाग निकला और खागई | कुछ देर बाद शेर नहाके आया उसने देखा कि गधे का दिमाग गायब है| उसने गुस्से में आकर लोमड़ी से कहा ये लोमड़ी मुझे इस गधे का दिमाग दिखाई नहीं दे रहा है यह कहाँ गया| लोमड़ी ने चतुराई से कहा राजा जी अगर इस गधे के पास दिमाग होता तो क्या यह मरने के लिए हमारे पास आता  इस गधे के पास तो दिमाग ही नहीं था|    

Saturday, April 30, 2011

मूर्ख घोड़ा

             किसी जंगल में एक घोडा रहता था| जहाँ पर घोडा रहता था वहां बहुत सारी हरी हरी घास उगी हुई थी| यह घास बहुत स्वादी और रसीली थी| घोडा यह घास बहुत चाव से खाता  था| घोड़े की जिंदगी आराम से बीत रही थी| एक दिन वहां एक हाथी घूमता हुआ आ गया| हाथी को कोमल घास में चलने में बहुत मजा आ रहा था| उसी घास में वह लोटनी खाने लगा| हरी घास को टूटता हुआ देख कर घोडा बहुत दुखी हुआ| हाथी को वह जगह बेहद पसंद आगई थी| इसी कारण से वह कहीं जानेका नाम ही नहीं ले रहा था| घोडा सोचता रहता था कि हाथी को यहाँ से कैसे भगाया जाये| 
             हाथी का सब से बड़ा शत्रु है शेर! शेर की ही मदद ली जाय तो? पर कहीं वह शेर मुझे ही खा गया तो? उसके बदले मनुष्य की सहायता ली जाय तो कैसा रहेगा| ऐसा सोच कर घोडा मनुष्य के पास  गया| उसने मनुष्य को सारी बात बताई कि कैसे हाथी हरी हरी घास को ख़राब कर रहा है| मनुष्य ने कहा सिर्फ हाथी को मारना है| तुम्हारा ये कम में कर दूंगा पर इसके लिए तुम्हें मेरी मदद करनी होगी| अगर हाथी अपनी जान बचाने  के लिए भागा तो मुझे उसका पीछा करना  पड़ेगा| उसके लिए मुझे तुम्हारी पीठ पर बैठ कर दौड़ना पड़ेगा| घोडा उत्त्साह में बोला अगर हाथी मरता है तो  जो तुम कहोगे में करने को तयार हूँ| अब मनुष्य  ने घोड़े की सवारी करने के लिए घोड़े की पीठ पर जीन बांधा और  मुंह में लगाम डाल दी| फिर उसने अपने धनुष और बाण लिए और घोड़े पर सवार हो गया| घोड़े को टक टक करके भगाया| मनुष्य को घोड़े की पीठ पर बैठ कर चलना बहुत अच्छा लगा| कुछ ही देर में वे दोनों हाथी के पास पहुंचे| हाथी आखें फाड़ फाड़ कर देखने लगा घोड़े की पीठ पर ये नवीन प्राणी कौन है भला| इतने में मनुष्य ने हाथी पर निशाना लगाकर जहरीले बाण चलाने शुरू कर दिए| बाण के लगते ही हाथी यहां वहां भागने लगा| आखिर कार हाथी गिर पड़ा| जहर के कारन हाथी को अपनी जान गवानी पड़ी| घोड़े ने मनुष्य से कहा कि मैं  तुम्हारा मन से धन्यवाद करता हूँ| अब तुम नीचे उतरो और यह जीन और लगाम उतार लो| अब मुझे मुक्त कर दो| यह सुनकर मनुष्य जोर जोर से हसने लगा फिर घोड़े से कहा मुक्त होने की आशा तुम हमेसा के लिए छोड़ दो| उसी में भलाई है| उसदिन से घोडा मनुष्य का गुलाम बन गया| इस लिए बिना सोचे समझे किसी पर विस्वास नहीं करना चाहिए|        (फोटो गूगल)
 

Saturday, April 23, 2011

ईश्वर देता है|

            बहुत समय पहले की बात है| एक शहर में एक दयालु राजा रहता था| उस के यहाँ रोज दो भिखारी भीख मांगने आया करते थे| उन में एक भिखारी जवान था और एक भिखारी बूढ़ा था| राजा उनको रोज रोटी और पैसा दिया करता था| भीख लेने के बाद बूढ़ा भिखारी कहता था ईश्वर देता है| जवान भिखारी कहता था हमारे महाराज की देन है| एक दिन राजा ने उन्हे आम दिनों से जादा धन दिया| छोटे भिखारी ने कहा हमारे महाराज की देन है| बूढ़े भिखारी  ने कहा ईश्वर की  देन  है| यह सुन कर राजा को बहुत गुस्सा आया उसने सोचा इन का भरण पोषण तो मैं करता हूँ और यह भिखारी कहता है की ईश्वर की देन है| राजा ने छोटे भिखारी की और सहायता करने की सोची और अगले दिन राजा ने कहा आज तुम इस नए रस्ते से जाओगे लेकिन पहले छोटा भिखारी जाएगा बाद में बूढ़ा भिखारी जाएगा| यह कहते हुए राजा ने नए रस्ते में एक सोने से भरी थैली रखवा दी ताकि छोटे भिखारी को मिल सके| जब छोटा भिखारी इस नए रस्ते से जा रहा था तो उसने देखा की यह रास्ता काफी चौड़ा और समतल है| उसने सोचा इस रस्ते से में आँखें बंद कर के जा सकता हूँ| जहाँ पर राजा ने सोने की थैली रखी थी छोटा भिखारी वहां से आँखें बंद करके आगे निकल गया और सोने की थैली वहीँ रह गई| कुछ देर बाद जब बूढ़ा भिखारी पीछे से गया तो उसे यह थैली मिल गई| उसने उठाई और भगवान का धन्यवाद किया| अगले दिन जब भिखारी फिर राजा के पास गए तो राजा ने छोटे भिखारी को देखते हुए बोला  आप को मेरे  भेजे हुए रस्ते में कुछ मिला कि नहीं| छोटे भिखरी ने कहा रास्ता तो बहुत अच्छा था पर मुझे वहां कुछ नहीं मिला| बूढ़े भखारी ने कहा मुझे एक सोने से भरी थैली मिली जो ईश्वर की देन थी| राजा ने अब निश्चय  कर लिया की वह बूढ़े वाले भिखारी को ये दिखा के रहेगा की वह उसका असली पालन करता है| जैसे ही दोनों  भिखारी जाने लगे राजा ने छोटे  भिखारी को बुलाकर उसे एक कद्दू दिया जो सोने चाँदी से भरा हुआ था| पर ऊपर से बंद था| भिखरी यह नहीं जानता था कि यह कद्दू सोने चाँदी से भरा है| रास्ते में एक दुकान में उसने यह कद्दू बेच दिया| अगले दिन राजा ने उन भिखारियों से पूछा कि बताओ पिछले दिन कोई महत्वपूर्ण घटना घटी हो| छोटे भिखारी ने कहा महाराज जो कद्दू आपने मुझे दिया था वह मेंने एक ब्यापारी को बेच दिया जिस से मुझे थोडा सा धन मिल गया| राजा को बहुत गुस्सा आया पर राजा ने अपने गुस्से को ब्यक्त नहीं किया| बूढ़े भिखारी से  कहा क्या तुने भी पहले से जादा कमाया? बूढ़े भिखारी ने कहा, निश्चय  ही कमाया है जैसे ही में जा रहा था एक ब्यापारी ने मुझे एक कद्दू दिया| जब घर जाकर मेंने कद्दू को चीरा तो उसमें से सोने चाँदी के सिक्के निकले| उसने कहा ईश्वर देता है|
इसी लिए कहते हैं कि इश्वर की मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं होता है|  

Saturday, April 16, 2011

बन्दर और मगरमच्छ

           बहुत समय पहले की बात है| एक नदी में एक मगरमच्छ  का जोड़ा रहता था| नर और मादा मगरमच्छ| नर मगरमच्छ रोज सुबह सुबह धूप सेकने के लिए नदी के किनारे पर आ जाया करता था| मादा मगरमच्छ नदी के बीच में ही रहा करती थी|  नदी के किनारे पर बहुत सारे जामुन के पेड़ थे| मौसम आने पर ये पेड़ काले काले मीठे जामुनों से लद जाते थे| इन जामुनों को खाने के लिए एक बन्दर भी वहां आता था| बन्दर और मगरमच्छ रोज मिला करते थे| धीरे  धीरे बन्दर और मगरमच्छ में घनिष्ट दोस्ती हो गई| बन्दर मगरमच्छ के लिए मीठे रसीले जामुन तोड़ कर लाया करता था| दोनों बैठे आराम से जामुनों का मजा लेते थे| एक दिन बन्दर बहुत सारे जामुन तोड़ कर लाया और मगरमच्छ से कहा आज इन जामुनों को भाभी जी के लिए लेकर जाना| भाभी जी इन्हें खा कर बहुत खुश होंगी| मगरमच्छ ने जामुन लिए और सीधे मादा मगरमच्छ के पास चला गया| मादा मगरमच्छ मीठे जामुनों का स्वाद लेकर बहुत खुश हुई| खाते  खाते उस के दिमाग में आया की अगर ये जामुन इतने मीठे हैं तो इन जामुनों को रोज खाने वाले बन्दर का जिगर कितना मीठा नहीं होगा| उसने मगरमच्छ से कहा मुझे बन्दर के जिगर  का नाश्ता करना है| मुझे बन्दर का जिगर चाहिए| सुनते ही मगरमच्छ ने कहा " तुम्हारा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया वह तो मेरा पक्का दोस्त है"| दोस्त से गद्दारी करना ठीक नहीं| पर मादा मगरमच्छ ने उसकी एक भी नहीं सुनी| मादा मगरमच्छ ने खाना पीना भी छोड़ दिया| नर मगरमच्छ ने बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी| आखिर  में नर मगरमच्छ को ही मानना पड़ा| अगले दिन जब नर मगरमच्छ  नदी के किनारे पर आया तो बन्दर भी आगया| मगरमच्छ ने बन्दर से कहा तुम्हारी भाभी ने तुम्हें धन्यवाद दिया है और नाश्ते पर बुलाया है| बन्दर ने बिना सोचे समझे हाँ कर दी, पर कहा की मुझे तो तैरना नहीं आता है| में कैसे जाऊंगा| मगरमच्छ ने कहा तुम मेरे पीठ पर बैठो में तुम्हें ले चलूँगा| बन्दर छलांग मारकर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया| मगरमच्छ उसको लेकर अपने घर की ओर चला गया| रास्ते में मगरमच्छ ने बन्दर को बताया की तेरी भाभी तेरा जिगर का नाश्ता करना चाहती है| मैं ने गलत कहता की तुम्हें नाश्ते पर बुलाया है| सुनते ही बन्दर अचम्भे में पड़ गया|  कुछ सोचने के बाद बन्दर ने कहा " यह तो मेरा अहोभाग्य है की में किसी के काम आ सकूँ"| आप ने यह बात मुझे पहले नहीं बताई में अपना दिल सुरक्षा के तौर पर जामुन  के पेड़ पर टांग कर आता हूँ| आप कहते तो उसे साथ लेते आता| मगरमच्छ ने कहा हम मुड़ जाते है तुम जिगर उतर कर ले आना| बन्दर ने कहा ठीक है| जैसे ही मगरमच्छ किनारे पर पहुंचा बन्दर ने छाल मारी और पेड़ पर चढ़ गया| ऊपर टहनी में बैठ कर बोला "अरे मुर्ख कोई बगैर जिगर के भी जी सकता है"| जैसे तुमने मुझे मूर्ख बनाया था वैसे ही मैंने तुम्हें मूर्ख बनाया है| अब जाओ फिर कभी लौट के यहाँ मत आना|                                                                                        (फोटो गूगल से)

Friday, April 8, 2011

चतुर मेमना

           
  बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल के किनारे घास के मैदान में एक बकरियों का झुण्ड रहा करता था|  इस बकरियों के झुण्ड की रखवाली के लिए दो गद्दी कुत्ते हुआ करते थे| बकरियां कभी भी जंगल के अन्दर हरी घास खाने नहीं जाती थी| जंगल के बीच में कई शिकारी जानवर रहते थे| जिनसे बकरियों को हमेशा खतरा बना रहता था| बकरियां मैदान के नजदीक ही चर कर अपना पेट भर लेती थी| बकरियां अपने मेमनों को भी जंगल के बीच में जाने से रोकती रहती थी और समझाती रहती थी कि अगर वे जंगल में जाएँगे तो उनकी जान को खतरा हो सकता है| एक दिन एक छोटा सा मेमना हरी और मीठी घास खाते  खाते जंगल के बीच में चला गया| जैसे ही वह जंगल में गया एक भेड़िए ने उसे देख लिया| भेड़िए ने अपने मन में सोचा "आज के भोजन का इंतजाम हो गया है| इतना सोचते ही दुष्ट भेडिया मेमने के सामने कूद पड़ा| उसने अपने बड़े बड़े नुकीले दांत भींच कर बोला तुम्हें मालूम है तुम्हे इस तरह यहाँ घूमना नहीं चाहिए| भेड़िए को देख कर मेमना डर गया और भय के मारे कांपने लगा|  परन्तु उसने धैर्य के साथ कहा मुझे मालूम है इस तरह घूम कर में बड़ी शरारत कर रहा हूँ| यह सुन कर भेडिया उस पर जोर से हंस पड़ा| और जोर से बोला अब तुम शरारती बने हो तुम्हें दंड मिलना चाहिए| मैं तुम्हें दंड दूंगा| तुम्हे खाकर  अपना भोजन पूरा करूँगा|  मेमना बड़ा भयभीत हुआ| उसने अपनी रक्षा करना जरुरी समझा| इस लिए उसने एक उपाय सोचा| उसने भेड़िए से प्रार्थना की कि क्या आप मेरी अंतिम  इच्छा पूरी नहीं करोगे| भेड़िए ने कहा हां हां इस से मुझे कोई हानि नहीं होगी| मेमने ने कहा  हे दयालु भेडिये क्या आप मेरे लिए एक गाना नहीं गाओगे| इस बात से भेडिया बहुत खुश हुआ और जोर जोर से गाने लगा| गाने की आवाज कुत्तों के कानों में पड़ गई , कुत्ते समझ गए की छोटा मेमना जंगल में चला गया है| वे दौड़ते हुए जंगल में पहुँच गए| मेमने को ठीक ठाक देखते ही कुत्ते भेड़िए पर टूट पड़े| कुत्ते उसके टुकड़े टुकड़े कर देते पर  भेड़िए ने बड़ी मुश्किल से भाग कर अपनी जान बचाई| मेमने ने कुत्तो से बोला मुझे बचाने के लिए धन्यवाद| वह अपनी माँ के पास दौड़ता हुआ गया और कहने लगा में आगे से  इस तरह भटकता हुआ कभी नहीं जाऊंगा| हमेशा अपने बुजर्गों की बातों को मान लिया करूँगा|  
सारांश :  हमें अपने बुजर्गों की बाते हमेशा मान लेनी चाहिए|      

Tuesday, March 29, 2011

सियार और गधा


           एक समय की बात है एक गधा एक धोबी के पास रहता था| धोबी उसपर  कपडे लाद कर रोज नदी किनारे कपडे  धोने जाया करता था| दिन में खाली समय में गधा नदी किनारे की घास खाया करता था| एक दिन वहां कहीं से एक सियार आ गया| सियार और गधा आपस में बातें करने लगे| कुछ ही दिनों में दोनों की दोस्ती पक्की हो गई| दोनों आस पास घूमने जाया करते थे|  एक दिन घूमते घूमते दोनों एक फारम में चले गए| फारम में हरी हरी ककड़ीयां  देख कर उनके मुंह में पानी आ गया| दिन के समय में माली के रहते ककड़ी खाना बहुत मुश्किल था इस लिए दोनों वापस आगए| रास्ते में आते आते उन्हों ने फैसला किया कि रात में आ कर ककड़ियों का स्वाद लिया जाए| अगले दिन ही रात में गधा और सियार दोनों ककड़ी के फारम में जा पहुंचे| उन्हें ककड़िया बहुत स्वाद लगी| खूब भर पेट खाने के बाद गधे कि नज़र आसमान की ओर गई जहाँ पूर्णिमा का चाँद खिला हुआ था| चाँद को देखते ही गधे का मन गाना गाने को मचलने लगा| गधे ने सियार से कहा "देखो कितना सुन्दर दिख रहा है चंद्रमा | ऐसे में मेरा जी गाने को कर रहा है| सियार ने कहा ऐसा हरगिज मत करना नहीं तो हम मुसीबत में फंस जाएँगे| माली तुम्हारे गाने को सुनकर जाग जाएगा| तुम्हारी आवाज भी काफी ऊँची होती है| गधे ने कहा तुम गाने के बारे में क्या जानो| गाना कब गाया जाता है| इतने सुन्दर मौसम को में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता हूँ| में तो गाना गाऊंगा| सियार समझ गाया की गधा अब मानने वाला नहीं है| उस ने कहा ठीक है जब आप गाना ही चाहते हैं तो में बहार गेट पर चला जाता हूँ ओर माली का ख्याल रखता हूँ| जब माली आएगा तो में आप को सावधान कर दूंगा| सियार गेट से बहार आ गाया| गधे ने अपनी ऊँची आवाज में गाना शुरू  कर दिया| गधे की आवाज सुन कर माली वहां आ गाया| माली ने गधे की डंडे से  खूब पिटाई की| मार की वजह से गधा वहीँ गिर पड़ा| होश आने पर गधा बहार आया जहाँ सियार उसका इंतजार कर रहा था| गधे को देखते ही सियार हँसते हुए बोला "आप ने मेरी बात नहीं मानी और उसका आप को उपहार भी मिल गाया है|" गधे ने कराहते हुए कहा "मेंरी बेवकूफी का मखौल मत उडाओ में पहले ही बहुत शर्मिंदा हूँ  अपने प्यारे दोस्त की सलाह न मानाने पर|"फिर दोनों अपने गंतब्य की ओर चल दीए| इसी लिए कहते हैं कि अच्छे दोस्त की अच्छी बात मान लेने में ही भलाई है|   

Sunday, March 20, 2011

मोर की शिकायत


 किसी जंगल में बहुत  सारे पक्षी रहते थे|  उन में एक मोर भी रहता था| मोर के पंख बहुत सुन्दर थे| एक बार बारिष के समय में मोर अपने पंखों को फैला कर नाच रहा था और इधर उधर दौड़ रहा था| मोर अपने पंखों को देख देख कर बहुत खुश हो रहा था| पर थोड़ी ही देर में  मोर की ख़ुशी बारिष  में धुल गयी| उसने देखा कि सामने एक पेड़ पर एक  बुलबुल गा रही है और उसकी आवाज बहुत मीठी और सुरीली  है| मोर ने भी अपनी आवाज में गाने के लिए अपना मुंह खोला पर मोर की आवाज बहुत भद्दी और कठोर   थी| यह देख कर मोर बहुत उदास  हुआ और  अपना सर नीचे कर के आंशु  बहाने लग गया| मोर सोचने लगा  कि भगवान ने मेरे साथ अन्याय किया है मुझे सुन्दर पंख तो दिए हैं पर सुन्दर आवाज नहीं दी| बाकि पक्षियों को इतनी सुन्दर सुरीली आवाज दे रक्खी है | मोर को आंशु बहाते देख कर एक देवी को दया आ गयी और वह वहां  प्रकट हो गयी और मोर को सांत्वना  देते हुए बोली कि तुम इतने उदास क्यूँ हो रहे हो, भगवान ने तो सब को उनके हिस्से मुताबिक सुन्दरता निर्धारित की है| अगर भगवान ने बुलबुल को मीठी आवाज दी है तो उसके पंख काले हैं| तुम्हारी आवाज कठोर  है तो तुम्हारे  पंख सुन्दर  हैं| देवी की बातों को सुन कर  मोर ने सोचा देवी ठीक ही कह रही है|  और उसके बाद मोर ने उसी में खुश रहना सीख लिया था, जो भगवान ने  मोर के लिए निर्धारित किया था| इसी लिए कहते हैं कि अपने  पास जितना है उसी में संतुष्ट रहना सिखाना चाहिए|







                 

Saturday, March 12, 2011

शारीरिक बल से उपाय श्रेष्ट है

           किसी बनमें बरगद का एक विशाल वृक्ष था| उसकी घनी  शाखाओं पर अनेक पक्षी रहा करते थे| उन्हीं में से एक शाख पर एक काक दम्पति रहता था और वृक्ष के  ही खोखले में एक कला सांप रहता था| जब भी मादा कौआ  अंडे देती  तो वह उन्हें खा जाया करता था | कौए के अण्डों को खा जाना उस दुष्ट सर्प का स्वभाव बन गया था| काक दम्पति उसके इस आचरण से बहुत दुखी रहता था, परन्तु उन्हें इसका कोई उपाय नहीं सूझता था|
           एक दिन वे दोनों अपने मित्र श्रृगाल के पास गए और उस से अपना दुःख कहते हुए रो पड़े| उनके करुण वृतान्त को सुन कर श्रृगाल भी बहुत दुखी हुआ और बोला-"मित्र ! चिंता करने से कुछ नहीं होगा| हम इस दुष्ट सर्प को शारीरिक बल से तो नहीं जीत सकते , क्यूंकि उसके बिषदन्त का ही प्रहार हमें यमलोक का रही बना देगा| परन्तु किसी उपाय या युक्ति से काम बन सकता है| मैं तुम्हें ऐसा उपाय बताऊंगा, जिस से तुम्हारा शत्रु अवश्य ही मारा जाएगा|
           इस पर काक ने कहा- हे मित्र !शीघ्र वह उपाय बतलाओ; क्योंकि वह दुष्ट सर्प मेरी वंश -परम्परा का ही लोप करने पर तुला हुआ है| श्रृगाल ने कहा-तुम किसी रजा की राजधानी में चले जाओ, वहां किसी धनि ब्यक्ति, राजा अथवा मंत्री की सोने की लड़ी या हर लाकर उस दुष्ट सर्प के खोखले में डाल दो| उस हार को खोजते हुए राजसेवक आकर काले सांप को मार डालेंगे और हार भी लेजाएँगे| इस प्रकार तुम्हारा बैरी मारा जाएगा|
          यह सुन कर वे दोनों नगर की और उड़े, वहां राज सरोबर में अन्तःपुर की स्त्रियाँ जलक्रीडा कर रही थीं|
उनके आभूषण किनारे रक्खे हुए थे और राज सेवक उनकी निगरानी कर रहे थे| राजपुरुषों को असावधान  देख कर कौए की स्त्री ने एक झपट्टे में ही रानी का हार उठाया और अपने घोंसले  की तरफ उड़ गयी| कौए की स्त्री को हार ले जाते देख कर राजपुरुष भी शोर मचाते हुए उन के पीछे पीछे दौड़ पड़े, परन्तु आकाशमार्ग से जाती हुई उसे वे कैसे पकड़ सकते थे? उसने हार लेजाकर सांप के खोखले में डाल दिया और स्वयं दूर एक पेड़ पर बैठ गई| राजपुरुषों ने उसे हार को खोखले में डालते हुए देख लिया था| जब वे वहां पहुचे तो उन्हों ने फन उठाये एक काले सांप को देखा| फिर क्या था ? डंडों के प्रहार से राज पुरुषों ने उस काले सर्प को मार डाला और हार लेकर चले गए| काक-दम्पति ने भी श्रृगाल को उसके बुद्धि चातुर्य के लिए धन्यवाद किया और फिर वे दोनों निश्चिन्त हो आनंदपूर्वक रहने लगे|
           इसीलिए कहा गया है कि "बलवान को उपाय से ही जितना चाहिए"|

Friday, March 4, 2011

जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता है स्वयं ही गढ्ढे में गिर जाता है|

            एक जंगल में बहुत सारे पशु पक्षी रहते थे|  एक बार एक कुत्ते और एक मुर्गे के बीच काफी प्रेम बढ़ गया| दोनों एक दूसरे की सहायता करते रहते थे|  एक दिन दोनों साथ मिल कर जंगल के बीच घूमने गए| घूमते घूमते उन्हें रात हो गयी|  रात बिताने के लिए मुर्गा एक वृक्ष की शाख पर चढ़ गया और कुत्ता उसी वृक्ष के निचे लेट गया|
           धीरे धीरे  भोर होने को आयी|  मुर्गे का स्वभाव है कि वह भोर के समय जोर की आवाज में बांग देता है| मुर्गे की बांग देने की आवाज सुन कर एक सियार ने मन ही मन सोचा आज कोई न कोई उपाय कर के इस मुर्गे को मार कर इसका  मांस खा जाऊगा|  ऐसा निश्चय कर के धूर्त सियार वृक्ष के पास जाकर मुर्गे को संबोधित करते हुए बोला-भाई तुम कितने भले हो; तुम्हारी आवाज कितनी मीठी है, सब का कितना उपकार करते हो| मैं तुम्हारी आवाज सुनकर बहुत प्रशन्न हो कर आया हूँ|  वृक्ष से नीचे उतर आओ, हम दोनों मिल कर थोडा आमोद प्रमोद करेंगे|
          मुर्गे को सियार की चालाकी समझ में आगई| सियार की चालाकी को समझ कर मुर्गे ने  उसकी धूर्तता का मजा चखाने की सोची और कहा-भाई सियार! तुम वृक्ष के निचे आकर  थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, में उतर रहा हूँ| यह सुन कर सियार ने सोचा, मेरा उपाय काम कर गया है| वह आनंदपूर्वक उस पेड़ के नीचे आगया, वहां कुत्ता पहले ही उसके इंतजार में बैठा हुआ था| जैसे ही सियार वृक्ष के नीचे आया कुत्ते ने उसपर आक्रमण कर दिया और अपने पंजे और दांतों से प्रहार कर के उसे मार डाला| इसी लिए कहते हैं जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता है स्वयं ही गढ्ढे में गिर जाता है| 

Thursday, February 24, 2011

अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए

            किसी जंगल में एक भील रहता था| वह बहुत साहसी,वीर और श्रेष्ट धनुर्धर था| वह नित्य प्रति बन्य जीव जन्तुओं का शिकार करता था और उस से अपनी आजीविका चलता था तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था| एक दिन वह बन में शिकार करने गया हुआ था तो उसे काले रंग  का एक विशालकाय जंगली सूअर दिखाई दिया| उसे देख कर भील ने धनुष को कान तक खिंच कर एक तीक्ष्ण  बाण से उस पर प्रहार किया| बाण की चोट से घायल सूअर ने क्रुद्ध हो कर साक्षात् यमराज के सामान उस भील पर बड़े वेग से आक्रमण किया और उसे संभलने का अवसर दिए बिना ही अपने दांतों से उसका पेट फाड़ दिया| भील का वहीँ काम तमाम हो गया और वह मर कर भूमि पर गिर पड़ा| सूअर भी बाण के चोट से घायल हो गया था, बाण ने उसके मर्म स्थल को वेध दिया था अतः उस की भी वहीँ मृतु हो गयी| इस प्रकार शिकार और शिकारी दोनों भूमि पर धराशाइ  हो गए|
            उसी समय एक लोमड़ी वहां आगई जो भूख प्यास से ब्याकुल थी| सूअर और भील दोनों को मृत पड़ा देख कर वह प्रसन्न मन से सोचने लगी कि मेरा भाग्य अनुकूल है, परमात्मा की कृपा से मुझे यह भोजन मिला है| अतः मुझे इसका धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिए, जिस से यह बहुत समय तक मेरे काम आसके|
           ऐसा सोच कर वह पहले धनुष में लगी ताँत की बनी डोरी को ही खाने लगी| उस मुर्खने भील और सूअर के मांस के स्थान पर ताँत की डोरी को ही खाना शुरू कर दिया| थोड़ी ही देर में ताँत की रस्सी कट कर  टूट गई, जिस से धनुष का अग्र भाग वेग पूर्वक उसके मुख के आन्तरिक भाग में टकराया और उसके मस्तक को फोड़ कर बहार निकल गया| इस प्रकार लोभ के बशीभूत  हुयी लोमड़ी की भयानक एवं पीड़ा दायक मृत्यु  हुई| इसी लिए कहते हैं कि अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए|

Wednesday, February 16, 2011

दुष्ट का क्षणिक संग भी कष्टकरी होता है

            किसी जंगल के रस्ते  में एक पीपल का विशाल पेड़ था| इस पीपल के पेड़ में अनेक पक्षियों ने अपने घोंसले बना रक्खे थे| उसी पेड़ पर एक हंस भी रहता था| हंस अपने उदार स्वभाव के कारन सभी पक्षियों के आदर का पत्र था| उसी पेड़ में एक कौआ भी रहता था| हंस के इस उदार भाव के कारन कौआ हंस से इर्ष्या करता था| 
           एक दिन कोई यात्री उस मार्ग से जा रहा था, उस के शारीर पर मूल्यवान वस्त्र और कंधे पर धनुष-बाण सोभा  दे रहे  थे| वह गर्मी की तपिश से ब्याकुल हो रहा था| पीपल के पेड़ की घनी छाया देख कर उसने उस पेड़ के निचे आराम करने का निश्चय किया| पेड़ की सुखद छाया में लेटते ही उसे नींद आगई| थोड़ी देर बाद सूर्य की रोशनी उस पथिक के ऊपर आगई| नींद गहरी होने के कारन वह सोता ही रहा| हंस ने जब सूर्य किरणों को उसके मुंह पर पड़ते देखा तो दयावश उसने अपने पंखों को फैला कर छाया कर दी, जिस से पथिक को सुख मिल सके| यात्री सुख पूर्वक सोता रहा| नींद में उसका मुंह खुल गया| उसी समय कौआ भी उडाता हुवा आया और हंस के पास बैठ गया| साधु स्वभाव वाले हंसने कौवे को अपने समीप आया देख उसे सादर बैठाया और कुशल-प्रश्न पूछा| कौवा तो स्वभाव से ही दुष्ट था, हंस को छाया किये देख कर वह मन ही मन सोचने लगा कि यदि में इस यात्री के ऊपर बीट कर के उड़ जाऊ तो यह यात्री जाग जाएगा तथा पंख फैलाए हंस को ही बीट करने वाला समझ कर मार डालेगा, इस से में इस हंस से मुक्ति पा जाऊंगा| जब तक यह हंस यहाँ रहेगा, तब तक सब इसी की प्रशंसा करते रहेंगे|
            यह विचार कर उस ईर्ष्यालु  कौएने सोए हुए पथिक के मुंह में बीट कर दी और उड़ गया| मुख में बीट गिरते ही यात्री चौंककर उठ बैठा| जब उसने ऊपर कि और देखा तो हंस को पंख फैलाए बैठा पाया| यद्यपि हंस ने उसका उपकार किया था, परन्तु दुष्ट के क्षणिक संग ने उसे ही दोषी बना दिया| यात्री ने सोचा कि इस हंस ने ही मेरे मुंह में बीट की है, यात्री को गुस्सा तो थाही उसने धनुष-बाण उठाया और एक ही तीर से हंस का काम तमाम कर दिया| बेचारा हंस उस दुष्ट कौए  के क्षणिक संग के कारन मृत्यु को प्राप्त हुआ|
            इस लिए कहा गया है कि दुष्ट के साथ न तो कभी बैठना चाहिए और नाही कभी दुष्ट का साथ देना चाहिए|

Thursday, February 10, 2011

अनुभव

             हुत समय पहले  की बात है एक गांव मे देवदत्त नाम का आदमी रहता था| उसका एक बेटा था जिस  का नाम पान देव था| पान देव को देव दत्त ने बड़े लाड़ प्यार से पाला  पोषा और उसको ऊँची तालीम दिलाई ताकि पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने और बुढ़ापे  मे उस  का सहारा बने| पान देव पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन गया और उसको शहर मे एक अच्छी सी नौकरी मिल गई अब पान देव नौकरी करने शहर जाया करता था| कुछ समय बाद  पान देव की शादी हो गई| शादी के बाद कुछ ही दिनों मे पानदेव ने शहर मे एक कमरा किराए पर लेलिया और अपनी घर वाली को साथ  लेकर शहर मे ही रहने लगा| कुछ समय बाद उस के घर मे बेटे ने जन्म लिया| समय धीरे धीरे आगे बढता गया| पान देव ने बेटे का नाम शोम देव रख्खा| शोमदेव समय के साथ साथ बड़ा होता गया| स्कूल की पढाई चालू हो गई| उधर पान देव के माँ  बाप भी गांव मे रहते हुए बूढ़े हो गए थे| पान देव ने कभी भी उनके बारे मे नहीं सोचा कि उनको भी साथ रखले| उसने उन्हे बेकार समझ कर  ही गांव मे छोड़ा था|
            शोमदेव अब बड़ा हो गया था |उसके स्कूल मे कुछ यार दोस्त भी बन गए|शिव लाल उसका अच्छा दोस्त था और दोनों एक दूसरे के घर आया जाया करते थे| एक दिन उनका परिक्षा का परिणाम आने वाला था दोनों दोस्त स्कूल गए| परिक्षा परिणाम देखा तो शोमदेव के  अंग्रेजी मे नंबर कम थे उसके दोस्त शिवलाल अच्छे नंबरों मे पास हुआ था| दोनों दोस्त मिल कर शोम देव के घर आ गए| शोम देव के पिता पान देव ने परीक्षा परिणाम के बारे मे पूछा तो शोम देव ने बताया कि मेरी  अंग्रेजी मे कमपार्टमेंट  है  और शिवलाल अच्छे नम्बरों से पास हुआ है| पान देव ने शिव लाल की तरफ देखा तो शिव लाल बोल पड़ा कि ताया जी यह सब मेरे दादाजी, दादीजी के  आशीर्वाद का फल है| मेरे दादाजी मुझे रात दिन पढ़ाते हैं और अच्छी अच्छी बातें बताते हैं| दादाजी ने मुझे कई किसम के खेल भी सिखाए हैं| उन के अनुभव ही मेरे काम आ रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे | शिव लाल से अपने दादा,दादी की प्रशंसा सुन कर पान देव को भी अपने माँ बाप की याद आ गई| वह सोचने लगा कि मैंने  तो कभी अपने माँबाप के अनुभवों  का लाभ उठाने के बारे मे सोचा ही नहीं था| पुराने लोगों के अनुभव ही आदमी को सफलता की सीडियां पार  करने मे सहायक हो सकती हैं| यह सोचते ही पान देव के मन मे  आया कि वह कल ही जा कर अपने माँ  बाप को शहर अपने पास ले आये| उसने अपने बेटे से कहा  बेटा अब तुम भी अच्छी पोजीसन मे पास हुआ करोगे | मे कल ही जाकर तुम्हारे दादा, दादीजी को यहाँ शहर अपने साथ ले आऊंगा | वे हमारे साथ ही शहर मे रहेंगे| इतना सुनते ही शोम देव के चहरे पर मुस्कराहट आ गई| और सोचने लगा कि अब मे भी शिवलाल की तरह अपने दादाजी दादीजी के अनुभवों का फ़ायदा ले सकूँगा| जिन्दगी मे सफलता की सीड़ियों को आसानी से पार  कर सकूँगा|  अगले ही दिन पान देव गांव गया और अपने माता  पिताजी को साथ लेकर शहर आगया| बुजर्गों के पास अनुभवों का ऐसा अनमोल खजाना होता है,जिस का लाभ उठाकर उनके परिवार के लोग अपने जीवन को सुखी, सुसंस्कृत और संपन्न बना सकते हैं| इस लिए हमेसा बुजर्गों का आदर सत्कार करना चाहिए| और उनका  आशीर्वाद  लेना चाहिए| 

Friday, February 4, 2011

विचारकर काम करने में ही शोभा है

       किसी बन में एक शेर रहता था|  एक दिन उसे बड़ी भूख लगी| वह शिकार की खोज में दिन भर इधर उधर दौड़ता रहा, पर उस दिन उसे कुछ नहीं मिला| शाम को उसे एक बहुत बड़ी गुफा दिखाई दी| वह उस गुफा में घुस गया, पर उसे वहां कुछ नहीं मिला| उसने सोचा कि यह मांद  जरुर किसी जानवर ने बनाई है| वह रात को यहाँ जरुर आएगा| शेर यहाँ छिप कर बैठ गया| ताकि मांद वाले जानवर के आने पर शेर का खाने का  इंतजाम हो सके| कुछ समाय बाद एक लोमड  और लोमड़ी  वहां आए| लोमड़ी चालाक तो होती ही है उसने देखा कि कोई जानवर के  पैरों के निशान मांद की तरफ गए हैं पर वापसी के कोई निशान  नहीं हैं| वह सोचने लगी  कि इस मांद में जरुर कोई है, अब में क्या करूँ, और कैसे पाता लगाऊं  कि मांद में कौन है| कुछ सोचने के बाद उसे एक उपाय सूझा| उसने मांद को पुकारना आरम्भ किया| वह कहने लगी  " ओ मांद!, ओ मांद!" फिर थोड़ी देर रुक कर बोली  " ए मांद क्या तुम्हे याद नहीं है, हम लोगों में तय हुआ है कि जब भी मैं यहाँ आऊं तब तुम्हे मुझे आदरपूर्वक बुलाना चाहिए| पर यदि अब तुम मुझे नहीं बुलाते हो तो मैं दूसरी मांद में जा रही  हूँ|" यह आवाज सुनकर शेर सोचने लगा "ऐसा लगता है कि यह गुफा इस लोमड़ी को बुलाया करती थी, पर आज मेरे डर से यह नहीं बोलरही है| इसलिए मैं इसे प्रेमपूर्वक बुला लूँ और जब आजाए तब इसे पकड़ कर खा जाऊं  |" ऐसा सोचकर शेर ने जोर से पुकारा| शेर की जोर की आवाज से मांद गूंज उठी और बन के सभी जीव डर गए| लोमड़ी को भी पाता चल गया कि मांद में शेर बैठा है| लोमड़ी भी लोमड को साथ लेकर कहीं दूर भाग गई| और कहने लगी कि जो सावधान होकर विचारपूर्वक काम करता है वह सोभा पाता है| जो बिना विचारे कोई काम करता है उसे बादमें पछताना पड़ता है|

Friday, January 28, 2011

कीमती उपहार

           एक राजा था| एक बार राजा अपने राजमहल के बगीचे में सैर कर रहा था| उसने देखा कि कोई आदमी दरवाजे पर खड़ा है| उसने दरवान से कहा कि वह उस आदमी के बारे में पता करे वह दरवाजे पर क्यों खड़ा है| दरवान ने दरवाजा खोला तो देखा एक आदमी एक मोटी ताज़ी मुर्गी लिए खड़ा था| दरवान ने उस आदमी से आने का कारण पूछा तो आदमी ने कहा, मैं राजा को यह मुर्गी देने आया हूँ| दरवान ने आदमी को राजा से मिलवा दिया| आदमी बोला, राजा जी राजा जी मैं ने आप के नाम पर यह मुर्गी जीती है| यह मैं आप को देने आया हूँ| राजा ने कहा इसको मेरे मुर्गी खाने में देदो| आदमी मुर्गी देकर चला गया| कुछ दिनों बाद वह आदमी फिर से आया | इस बार वह अपने साथ एक बकरी लेकर आया था| उसने राजा से कहा राजा जी राजा जी इस बार में ने आप के नाम पर यह बकरी लगाई थी और मैं जीत गया| यह बकरी मैं आप को देने आया हूँ| राजा बहुत खुश हुवा| उसने कहा इस बकरी को मेरे बकरियों के झुण्ड में शामिल कर दो| वह आदमी बकरी देकर चला गया| वह आदमी कुछ हफ़्तों बाद फिर  राजा के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया इस बार उसके साथ  दो आदमी और थे| दरवान ने उसको फिर राजा को मिलवा दिया| राजा ने आदमी से पूछा इसबार मेरे लिए क्या ले कर आये  हो, और तुम्हारे साथ ये दोनों कौन हैं| आदमी ने राजा से कहा, राजा जी राजा जी इस बार मैंने आपके नाम पर ५०० चाँदी के सिक्के लगाये थे और मैं हार गया हूँ| अब इन लोगों को ५०० चाँदी के सिक्के देने हैं| यह सुन कर राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया| पर वह उनको मना भी नहीं कर सकता था| क्यूँ कि उसने लेते  समय मना नहीं किया था|  उसने उन दोनों आदमियों को चाँदी के सिक्के देकर जाने को कह दिया| फिर राजा ने उस जुआरी आदमी से कहा आज के बाद तुम मेरे नाम पर  कोई दाव नहीं लगाओगे, और ना ही कभी मेरे दरवाजे पर दिखोगे| इस तरह राजा को अपनी गलती की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी|  इस लिए बगैर सोचे समझे किसी से कोई चीज नहीं लेनी चाहिए|

Saturday, January 22, 2011

रस्सी का जादू

        एक गांव में एक किसान रहता था| किसान के तीन बेटे थे और तीन बहुएं थीं| किसान के पास थोड़ी बहुत जमीन थी जिस में मेहनत कर के किसान की रोजी  रोटी चलती थी| एक साल सूखे के कारण फसल नहीं हुई | किसान ने सोचा शहर में जाकर मेहनत मजदूरी कर के रोटी का जुगाड़ किया जाए| किसान  अपने परिवार को साथ लेकर शहर की तरफ चल दिया| दिन में जब धूप तेज हो गई तो किसान ने सोचा कुछ देर के लिए किसी पेड़ के नीचे बैठा जाए| वे एक घनी छाया वाले बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए| किसान ने सोचा कि खाली बैठने से भला कोई काम कर लिया जाए| उसने अपने एक बेटे से कहा कि तुम जाकर जूट ले आओ, दूसरे बेटे से कहा तुम कहीं से सब्जी ले आओ, तीसरे बेटे से कहा तुम  कहीं से खाने का बाकी सामान ले आओ| किसान ने अपनी बहुओं को भी काम पर लगा  दिया| एक को कहा तुम पानी ले आओ , दूसरी से कहा तुम लकड़ी ले आओ, तीसरी से कहा तुम आटा गूंध लो| सब अपने अपने काम पर लग गए| जूट  आने पर किसान रस्सी बनाने में लग गया| जिस   पेड़ के नीचे वे बैठे थे उस पेड़ में एक दानव  रहता था| दानव यह सब कुछ देख रहाथा| उसे रस्सी के बारे में कुछ समझ नहीं आई| वह पेड़ से नीचे उतरा और किसान से पूछने लगा आप इस रस्सी से क्या करोगे? किसान कुछ नहीं बोला अपना काम करता रहा| दानव ने फिर किसान से पूछा :आप यह रस्सी क्यूँ बना रहे हैं| किसान ने कहा तुम्हें बांधने के लिए| यह सुन कर दानव डर गया और बोला आप को जो कुछ भी चाहिए मैं देने को तैयार  हूँ| आप मुझे छोड़ दीजिए| यह सुन कर किसान ने कहा मुझे अभी एक  बक्सा सोने का भरा हुवा देदो तो में तुम्हें छोड़ दूंगा| दानव उसी समय एक बक्सा सोने से भरा हुवा ले आया और किसान से बोला  ये लो सोने से भरा बक्सा और यहाँ से चले जाओ| किसान ने सोने का बक्सा लिया और गांव की तरफ चल दिया| किसान के दिन  अच्छे कटने  लग गए| किसान के ठाट बाट देख कर उसके पडोसी ने इसके बारे में जानना चाहा तो किसान ने सारा किस्सा पडोसी किसान को बतादिया| पडोसी किसान लालच में आ गया| उस ने भी यह तरकीब अपनाने की सोची| वह अपने सारे परिवार के साथ चल दिया| उसी पेड़ के नीचे वह भी जा बैठा जिस पेड़ में दानव रहता था| पडोसी किसान ने अपने बेटे से कहा कि तुम कहीं से जूट ले आओ,दूसरे बेटे से कहा तुम कहीं से सब्जी ले आओ, तीसरे बेटे से कहा तुम खाने का बाकी सामान ले आओ|  फिर उसने अपनी बहुओं को भी कहा कि तुम पानी ले आओ,तुम लकड़ी ले आओ और तुम आटा गूंध लो| पर किसी ने भी पडोसी किसान की नहीं सुनी सब अपने में ही मस्त थे| आखिर में किसान खुद ही सारा काम करके रस्सी बनाने  में लग गाया| दानव यह सब कुछ  देख रहा था| कुछ देर में दानव किसान के पास आया और बोला- तुम यह रस्सी किस लिए बना रहे हो| किसान ने सोचा दानव डर गया है| किसान हँसते हुए बोला तुम डर  गए हो! यह रस्सी में तुम्हें बांधने के लिए ही बना रहा हूँ| इसपर दानव जोर से हंसा और बोला -तुम्हारा अपना परिवार तो तुम से नहीं डरता है में तुम से क्या डरूंगा| पहले अपने परिवार को बांध लो फिर किसी  को बांधना| यह कह कर दानव पेड़ में चला गया| लालची किसान अपना सा मुंह ले कर गांव को लौट गया| इस लिए आदमी को चाहिए कि वह पहले अपने परिवार को आज्ञा करी बनाए  फिर दूसरे से कोई उमीद करे|