Thursday, August 26, 2010

भेड़ की खाल मे भेड़िया

           क  गांव मे एक गडरिया  रहता था| उसके पास बहुत सारी भेड़ें थीं| वह भेड़ों को चराने के लिए रोज जंगल में  लेजाया करता था| गडरिये ने भेड़ों की सुरक्षा के लिए दो कुत्ते भी रख्खे हुए थे| कुत्ते काफी खूखार थे| किसी भी जंगली जीव को भेड़ों के नजदीक फटकने भी नहीं देते थे| उसी जंगल में  एक भेड़िया भी रहता था|  भेड़िया  हमेसा ताक मे रहता था कि  कैसे कोई भेड़   हाथ लग जाये| कुत्तों के आगे उसकी एक भी नहीं चलती थी| एक दिन गडरिये ने एक भेड़  को मार कर उसकी खाल   को सूखने डाला हुआ था| भेड़िये की नजर  भेड़ की खाल पर पड़ी तो भेड़िये ने सोचा कि  अगर यह खाल   मुझे मिल जाती तो में  इसे पहन कर भेड़ों के बीच में  आराम से जा सकता हूँ| और भेड़ों को आसानी से हासिल कर सकता हूँ| वह भेड़ों के जंगल जाने का इंतजार  करने लगा | थोड़ी ही देर में  गडरिया आया और भेड़ों को लेकर जंगल की और चला गया| भेड़िये ने मौका पा कर भेड़ की खाल को उठा लिया| भेड़िये ने भेड़ की खाल को पहन लिया और वहीँ पर एक कोने में  छिप कर भेड़ों के वापस  आने का इंतजार करने लग गया ताकि भेड़ों के साथ मिल कर वह भेड़ों के बाड़े  तक  जासके| शाम को जब खेलते कूदते भेड़ें आई तो भेड़िया भी उछलता हुआ उन में  मिल गया| किसी को कुछ भी पता नहीं चला|गडरिया भेड़ों को बाड़े मे बंद करके चला गया| भेड़िये  ने सोचा थोडा अधेरा हो जाये तो एक भेड़ को ले कर जंगल की ओर चला जाऊं | पर कुछ ही देर बाद गडरिया वापस आ गया| गडरिये के घर में  कुछ मेहमान आये हुए थे| गडरिया भेड़ को मार कर उस  के मीट से मेहमानों का स्वागत करना चाहता था| उसने एक मोटी सी भेड़ देखी और उसे उठा लिया | यह भेड़  की खाल मे भेड़िया था| गडरिये ने बाहर लाकर उसका काम तमाम कर दिया और  उसके मीट से ही महमानों को दावत दे दी| इस तरह भेड़िये ने दूसरे की जान लेते लेते खुद की जान गवाली|
                                                   के: आर: जोशी.| (पाटली)

Wednesday, August 11, 2010

"अकलमन्द चूहा"

            किसी  गांव में  एक किसान  रहता था| किसान  के पास थोड़ी बहुत जमीन थी जो एक नदी के किनारे पर थी| वहीँ नदी किनारे उसने अपना एक छोटा सा आशियाना बना रख्खा था| किसान पूरी मेहनत लगाकर जीजान से अपने खेतों मे काम करता था| महंगाई के दौर में  उसका घर का गुजारा ठीक से नहीं चलता था| उसने नदी किनारे अपने खेत में  देशी दारू बनानी शुरू कर दी| ताकि उसके घर का खर्चा चल सके| दारू निकाल कर वह एक डिब्बे में  रखता था| एक दिन एक चूहा खाने की तलाश मे वहां आ गया| खाना ढूढ़ते हुए चूहा दारू के डब्बे के ऊपर चढ़ गया डब्बे का ढक्कन कुछ खुला हुआ था| चूहा उस में  से नीचे झाँकने लगा तो दारू के बीच में  गिर गया|काफी हाथ पांव मारे  पर बाहर  निकल नहीं  सका| आखिर मे वह  बचाओ बचाओ चिल्लाने लगा | उसकी आवाज सुन कर एक बिल्ली वहां आ गयी | उसने देखा कि  चूहा दारू में  गिरा हुआ है| बिल्ली ने चूहे को कहा कि  मै तुम्हें बचा तो लूंगी    पर बाहर निकाल कर तुम्हें खा जाउंगी | चूहे ने कहा शराब  मे डूब कर मरने से तो अच्छा  है किसी के काम आसकू | कम से कम आप की  पेट की भूख तो मिटेगी| बिल्ली ने चूहे को बाहर निकाल लिया और लगी  खाने| चूहे ने कहा मेरे में  से शराब की बदबू आ रही है कम से कम धो तो लो|बिल्ली ने सोचा यह ठीक ही कह रहा है| जैसे ही बिल्ली चूहे को धोने लगी पकड़ थोड़ी सी ढीली हुई चूहा भाग कर पास के बिल मे जा छुपा| बिल्ली ने कहा कि  तुमने तो वादा किया था कि  तुम मेरा भोजन बनोगे पर अब भाग गए | चूहे ने कहा तब तो में  जोकुछ भी कह गया शराबी होके कह गया| लेकिन अब तो  शराब उतर  चुकी है| वादा तो आदमी नहीं निभाता मै क्या निभा सकता हूँ | 
                                                                                                         के: आर: जोशी. (पाटली)