Thursday, October 10, 2013

देने का आनंद



                      
                 एक बार एक शिक्षक संपन्न परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक युवा शिष्य के साथ कहीं टहलने निकले . उन्होंने देखा की रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं , जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे जो अब अपना काम ख़त्म कर घर वापस जाने की तयारी कर रहा था .शिष्य को मजाक सूझा उसने शिक्षक से कहा , “ गुरु जी क्यों न हम ये जूते कहीं छिपा कर झाड़ियों के पीछे छिप जाएं ; जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा !!”
                 शिक्षक गंभीरता से बोले , “ किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना ठीक नहीं है . क्यों ना हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छिप कर देखें की इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है !!”शिष्य ने ऐसा ही किया और दोनों पास की झाड़ियों में छुप गए .मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया . उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ , उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा की अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे , उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें पलट -पलट कर देखने लगा . फिर उसने इधर -उधर देखने लगा , दूर -दूर तक कोई नज़र नहीं आया तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए . अब उसने दूसरा जूता उठाया , उसमे भी सिक्के पड़े थे …मजदूर भावविभोर हो गया , उसकी आँखों में आंसू आ गए , उसने हाथ जोड़ ऊपर देखते हुए कहा – “हे भगवान् , समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए उस अनजान सहायक का लाख -लाख धन्यवाद , उसकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दावा और भूखें बच्चों को रोटी मिल सकेगी .”
                 मजदूर की बातें सुन शिष्य की आँखें भर आयीं . शिक्षक ने शिष्य से कहा – “ क्या तुम्हारी मजाक वाली बात की अपेक्षा जूते में सिक्का डालने से तुम्हे कम ख़ुशी मिली ?” शिष्य बोला , “ आपने आज मुझे जो पाठ पढाया है , उसे मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा . आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया हूँ जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था कि लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है . देने का आनंद असीम है!

Tuesday, October 1, 2013

अर्जुन का अहंकार


                        एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए। रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी। अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’ ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’ आपके शत्रु कौन हैं? अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की। ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं। सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है।नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं। फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।’
                       आपका तीसरा शत्रु कौन है? अर्जुन ने पूछा। वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिएविवश किया। और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवान की असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा।कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए। यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया।
                       उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।

Tuesday, September 17, 2013

कर्ज


                     एक बादशाह बड़ा ही न्यायप्रिय था। वह अपनी प्रजा के दुख-दर्द में शामिल होने की हरसंभव कोशिश करता था। प्रजा भी उसका बहुत आदर करती थी। एक दिन वह जंगल में शिकार के लिए जा रहा था। रास्ते में उसने एक वृद्ध को एक छोटा सा पौधा लगाते देखा।

                      बादशाह ने उसके पास जाकर कहा- यह आप किस चीज का पौधा लगा रहे हैं? वृद्ध ने धीमे स्वर में कहा- अखरोट का। बादशाह ने हिसाब लगाया कि उसके बड़े होने और उस पर फल आने में कितना समय लगेगा। हिसाब लगाकर उसने अचरज से वृद्ध की ओर देखा। फिर बोला- सुनो भाई, इस पौधे के बड़े होने और उस पर फल आने में कई साल लग जाएंगे, तब तक तुम तो रहोगे नहीं। वृद्ध ने बादशाह की ओर देखा। बादशाह की आंखों में मायूसी थी। उसे लग रहा था कि वृद्ध ऐसा काम कर रहा है, जिसका फल उसे नहीं मिलेगा।

                      वृद्ध राजा के मन के विचार को ताड़ गया। उसने बादशाह से कहा- आप सोच रहे होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूं। जिस चीज से आदमी को फायदा नहीं पहुंचता, उस पर कौन मेहनत करता है, लेकिन यह भी सोचिए कि इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना फायदा उठाया है?

                      दूसरों के लगाए पेड़ों के कितने फल अपनी जिंदगी में खाएं हैं। क्या उस कर्ज को उतारने के लिए मुझे कुछ नहीं करना चाहिए? क्या मुझे इस भावना से पेड़ नहीं लगाने चाहिए कि उनसे फल दूसरे लोग खा सकें? बूढ़े की यह बात सुनकर बादशाह ने निश्चय किया कि वह प्रतिदिन एक पौधा लगाया करेगा।

Wednesday, September 11, 2013

सफलता


                     एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ कि हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! 
                      ये स्पष्ट था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे. उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती कि इस बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते, और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.”  आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!!
                     इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं. 

                    याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है. यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए आप हाथी नहीं इंसान हैं ।

Monday, September 9, 2013

समय की कीमत

                      एक व्यक्ति आफिस में देर रात तक काम करने के बाद थका-हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि उसका छोटा सा बेटा सोने की बजाय उसका इंतज़ार कर रहा है . अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा , क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?” “ हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?” पिता ने कहा . बेटा – “ पापा , आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं ?” “ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे हो?” पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया .बेटा – “ मैं बस यूँ ही जाननाचाहता हूँ . प्लीज बताइए कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ?” पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा , नहीं बताऊंगा , तुम जाकर सो जाओ “यह सुन बेटा दुखी हो गया …और वह अपने कमरे में चला गया . व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच रहा था कि आखिर उसके बेटे ने ऐसा क्यों पूछा ……पर एक -आधघंटा बीतने के बाद वह थोडा शांत हुआ ,फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया और बोला , “ क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाब आया . “ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट दिया ,

                       दरअसल दिन भर के काम से मै बहुत थक गया था .” व्यक्ति ने कहा. सारी बेटा “…….मै एक घंटे में १०० रूपया कमा लेता हूँ। थैंक यूं पापा ” बेटे ने ख़ुशी से बोला और तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गया , वहां से उसने अपने गोल्लक तोड़े और ढेर सारेसिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हेंगिनने लगा . “ पापा मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैं आपसे आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? प्लीज आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , मैं आपके साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ .” दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा अहमयित रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि इस आपा-धापी भरी जिंदगी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें अहसासहोगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया है।

Friday, September 6, 2013

आंसू और दुःख


              एक आदमी की 8 साल की इकलोती और लाडली बेटी बीमार पड़ गयी. बहुत कोशिश के बाद भी वो नहीं बच पाई. पिता गहरे शोक में डूब गया और खुद को दुनिया और दोस्तों से दूर कर लिया. एक रात उसे सपना आया की वो स्वर्ग में था जहाँ नन्ही परियो का जुलुस जा रहा था. वो सब जलती मोमबत्ती को हाथ में लिए सफ़ेद पोशाक में थी. उनमे से एक लड़की की मोमबत्ती बुझी हुई थी. व्यक्ति ने पास जाकर देखा तो वो उसकी बेटी थी. उसने अपनी बेटी को दुलारा और पूछा की बेटी तुम्हारी मोमबत्ती में रौशनी क्यों नहीं हैं?’ लड़की बोली की पापा ये लोग कई बार मेरी मोमबत्ती जलाते हैं लेकिन आपके आंसुओ से हर बार बुझ जाती हैं.एकदम से उस आदमी की नीदं खुली और उसे सपने का मतलब समझ आ गया. तब से उसने दोस्तों से मिलना खुश रहना शुरू कर दिया ताकि उसके आंसुओ से उसकी बेटी की मोमबत्ती न बुझे.
                  “
कई बार हमारे आंसू और दुःख, हमारे न चाहते हुए भी अपनों को दुःख देते हैं. और वे भी दुखी हो जाते हैं.

Wednesday, June 12, 2013

" इश्वर कहाँ रहता है, किधर देखता है और क्या करता है"

                 किसी गांव में  एक गरीब ब्राहमण रहता था| वह लोगों के घरों में पूजा पाठ कर के अपनी जीविका चलाता  था| एक दिन एक राजा ने इस ब्राहमण को पूजा के लिए बुलवाया| ब्राहमण ख़ुशी ख़ुशी राजा के यहाँ चला गया | पूजा पाठ करके जब ब्राहमण अपने घर को आने लगा तो राजा ने ब्राहमण से पूछा "इश्वर कहाँ रहता है, किधर देखता है और क्या करता है"? ब्राहमण कुछ सोचने लग गया और फिर राजा से कहा, महाराज मुझे कुछ समय चाहिए इस सवाल का उत्तर देने के लिए| राजा ने कहा ठीक है, एक महीने का समय दिया| एक महीने बाद आकर  इस सवाल का उत्तर दे जाना | ब्राहमण इसका उत्तर सोचता रहा और घर की ओर चलता रहा परन्तु उसके कुछ समझ नहीं आरहा था| समय बीतने के साथ साथ ब्राहमण की चिंता भी बढ़ने लगी और  ब्राहमण उदास रहने लगा| ब्रह्मण का एक बेटा था जो काफी होशियार था उसने अपने पिता से उदासी का कारण  पूछा | ब्राहमण ने बेटे को बताया कि राजा ने उस से एक सवाल का जवाब माँगा है कि इश्वर  कहाँ रहता है;किधर देखता है,ओर क्या करता है ? मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है| बेटे ने कहा पिताजी आप मुझे राजा के पास ले चलना  उनके सवालों का जवाब मै दूंगा|
                 ठीक एक महीने बाद ब्राह्मण  अपने बेटे को साथ लेकर राजा के पास गया और कहा कि आप के सवालों के जवाब मेरा बेटा देगा| राजा  ने  ब्राहमण के बेटे से पूछा बताओ इश्वर कहाँ रहता है? ब्राहमण के बेटे ने कहा राजन ! पहले अतिथि का आदर सत्कार किया जाता है उसे कुछ खिलाया पिलाया जाता है, फिर उस से कुछ पूछा जाता है| आपने तो बिना आतिथ्य किए ही प्रश्न पूछना शुरू  कर दिया है| राजा इस बात पर कुछ लज्जित हुए और  अतिथि के लिए दूध लाने  का आदेश दिया| दूध का गिलास प्रस्तुत किया गया| ब्राहमण बेटे ने दूध का गिलास हाथ मै पकड़ा  और  दूध में  अंगुल डाल कर घुमा कर बार बार दूध से बहार निकाल  कर देखने लगा| राजा ने पूछा ये क्या कर रहे हो  ? ब्राहमण पुत्र बोला सुना है दूध में  मक्खन  होता है| मै वही देख रहा हूँ कि दूध में  मक्खन  कहाँ है? राजा ने कहा दूध मै मक्खन  होता है,परन्तु वह ऐसे  दिखाई नहीं देता| दूध को जमाकर दही बनाया जाता है  फिर उसको मथते है तब मक्खन  प्राप्त होता है| ब्राहमण बेटे ने कहा महाराज यही आपके सवाल का जवाब है| परमात्मा प्रत्येक  जीव के अन्दर बिद्यमान  है | उसे पाने के लिए नियमों का अनुष्ठान करना पड़ता है | मन से ध्यान द्वारा अभ्यास से आत्मा में  छुपे हुए परम देव पर आत्मा के निवास का आभास होता है| जवाब सुन कर राजा खुश  हुआ ओर कहा अब मेरे दूसरे सवाल का जवाब दो|
              "इश्वर किधर देखता है"? ब्राहमण के बेटे ने तुरंत एक मोमबत्ती मगाई और उसे जला कर राजा से बोला महाराज यह मोमबत्ती किधर रोशनी करती है? राजा ने कहा इस कि रोशनी चारो  तरफ है| तो ब्राहमण  के बेटे ने कहा यह ही आप के दूसरे सवाल का जवाब है| परमात्मा सर्वदृष्टा  है और  सभी प्राणियों के कर्मों को देखता है| राजा ने खुश होते हुए कहा कि अब मेरे अंतिम सवाल का जवाब दो  कि"परमात्मा क्या करता है"? ब्राहमण के बेटे ने पूछा राजन यह बताइए कि आप इन सवालों को गुरु बन कर पूछ रहे हैं या शिष्य बन कर? राजा विनम्र हो कर बोले मै शिष्य बनकर पूछ रहा हूँ| ब्राहमण बेटे ने  कहा वाह महाराज!आप बहुत अच्छे शिष्य हैं| गुरु तो नीचे  जमीन पर खड़ा  है और  शिष्य सिहासन पर विराजमान है| धन्य है महाराज आप को और आप के शिष्टचार को | यह सुन कर राजा लज्जित हुए वे अपने सिहासन से नीचे उतरे और ब्राहमण बेटे को सिंहासन पर बैठा कर पूछा अब बताइए  इश्वर क्या करता है? ब्राहमण बेटे ने कहा अब क्या बतलाना रह गया है| इश्वर यही करता है कि राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है| राजा उस के जवाब सुन कर काफी प्रभावित हुआ और ब्राहमण बेटे को  अपने दरबार में  रख लिया|
             इस प्रकार परमात्मा प्रत्येक जीव के ह्रदय में  आत्मा रूप से विद्यमान रहता है| परमात्मा  के साथ प्रेम होने पर सभी प्रकार के सुख एश्वर्य की प्राप्ति होती है परमात्मा के बिमुख जाने पर दुर्गति होती है|

Thursday, May 9, 2013

जो तुम ने करी सो हमने जानी


  बहुत पुराने समय की  बात है एक गांव  मे अमर नाम का एक गरीब ब्राहमण रहता था| इधर उधर से मांग कर अपना और अपने परिवार का गुजारा  बड़ी  मुश्किल  से चलाता  था|वहीँ पास के गांव मे एक नामी  सेठ घनश्याम दास भी रहता था| सेठ घनश्याम दास की  कोई औलाद नहीं थी| सेठ जगह जगह अपनी औलाद के लिए प्रार्थना करता और धरम करम के काम भी करवाता रहता था आखिर भगवान्  ने उस की सुन ली | सेठ घनश्याम दास के घर एक सुन्दर सा बेटा पैदा हुआ| सेठ घनश्याम दास ने पुत्र रतन पाने पर भगवान्  का शुक्रिया  अदा किया और इस ख़ुशी मे एक दावत का आयोजन किया जिस मे आस पास के सभी ब्राहमणों को बुलावा भेजा| यह बात गरीब ब्राहमण अमर के कानों मे भी पड  गयी| दावत मे ३६ प्रकार के भोजन होंगे यह सोचते ही अमर के मुंह मे पानी आ गया| और उस ने भी दावत मे शामिल होने की सोची लेकिन अगले ही पल उदास हो गया क्योँ कि खाना खाने के बाद टीका लगते समय कोई मंत्र या श्लोक बोलना होता था| जो बेचारे गरीब अमर को नहीं आता था| अमर ने फिर भी हिम्मत नहीं हांरी  सोचा कम से कम भर पेट खाना तो मिलेगा ही आगे जो होगा देखा जाएगा भगवान् भली करेंगे? अमर साफ सुथरे कपडे  पहन कर कंधे मै अंगोछा लटकाए सेठ घनश्याम दास के घर की तरफ चल दिया| वहां जा कर क्या कहूँगा यह सोचते सोचते वह एक तालाब के नजदीक से गुजरा| तालाब के नजदीक से गुजरते समय उसने देखा कि कुछ मेढक तालाब के किनारे धूप  सेक रहे थे| अमर के तालाब  के नजदीक जाते ही मेढ़को  ने पानी मे छलाग लगा दी| मेढ़को के पानी मे छलाग लगाते  ही पानी की बूंदें इधर उधर बिखर गयीं और तालाब के पानी मे लहरें हिलने लगीं | इस दृश्य को देख कर अमर के मनमे एक ख्याल आया और उस के मुंह से निकल पढ़ा" छिटपित छिटपित उप्पर छटकायो पानी, जो तुम ने करी सो हमने जानी"| अमर का चेहरा खिल उठा उसने सोचा कि टीका लगाते समय के लिए यह श्लोक ही ठीक रहेगा| वह इस श्लोक को याद करता हुआ सेठ घनश्याम दास के घर पहुँच गया| यहाँ उसने देखा कि बहुत बड़े  बड़े  विद्वान पहुंचे हुए हैं और काफी चहल पहल है| अमर भी एक तरफ हो कर बैठ गया| कुछ समय बाद खाने का बुलावा आया सभी लोग खाने को बैठ गए अमर भी बैठ गया| खूब डट कर खाया  आनंद आ गया |
                   खाना खाने के बाद अब बारी  आई टीका लगाने की तो अमर ने देखा की यहाँ तो ब्राहमण एक से बढ़ कर एक श्लोक या मंत्र बोल रहे थे अमर का दिल घबराया, पर अब क्या हो सकता था जब आ ही गया था| अमर ने हिम्मत से काम  लिया और जब उसकी बारी आई तो उसने डरते हुए धीरे से मंत्र बोल दिया जो उसे तालाब के किनारे सुझा था| घबराहट मै उसकी आवाज साफ नहीं सुन रही थी| सेठ घनश्याम दास ने मंत्र दुबारा कहने को कहा तो अमर ने डरते हुए जोर से बोल दिया "छिटपित छिटपित उप्पर छटकायो पानी, जो तुम ने करी सो हमने जानी"| सेठ को ये शब्द अच्छे  लगे और उसने इन्हे एक तख्ती मै लिख कर लटका दिया| ब्राहमण अमर को काफी सारा धन दे कर विदा कर दिया| अमर धन पाकर बहुत खुश हो गया और सेठ को आशीर्वाद दे कर ख़ुशी ख़ुशी अपने घर को चला गया| 
                    सेठ घनश्याम दास की अपने पडोसी  सेठ जीवन दास से पुरानी  दुश्मनी थी| घनश्याम दास के ज्यादा पैसे वाला  होने की वजह से जीवन दास उस का कुछ भी बिगाड़  नहीं सकता था| घनश्यामदास और जीवन दास का नाई एक ही था | जीवनदास ने उस नाई को लालच दे कर कहा कि तुम मेरा एक काम  कर सकते हो,अगर तुम मेरा काम कर दो तो मै तुम्हें मुह माँगा इनाम दुगा? इस पर नाई ने पूछा क्या काम  है? मै कर दुगा| जीवनदास ने बताया कि जब तुम घनश्यामदास की शेव करोगे तो वह गले के बाल  काटने के लिए अपनी गर्दन ऊपर करेगा तो उस्तरे से उस का गला चीर  देना| पैसे के लालच मे आ कर नाई ऐसा करने को तैयार  हो गया| अगले दिन जब नाई घनश्यामदास के घर शेव करने गया तो शेव करते समय जब घनश्यामदास ने गला ऊपर किया तो उसकी नजर अमर की लिखी तख्ती पर पढ़ गई और वह  बोल उठा "छिटपित छिटपित ऊपर छटकायो  पानी,जो तुम ने करी सो हमने जानी"| नाई के हाथ से उस्तरा नीचे गिर गया और सेठ घनश्यामदास से मांफी मागने लगा| घनश्याम दास के पूछने पर नाई ने सारी   हकीकत बता दी कि किस तरह जीवनदास उसकी हत्या करवाना चाहता था| उसने नाई को माफ़ कर दिया और आगे से शेव करने घर आने को मना कर दिया| सेठ घनश्यामदास ने भगवान् को धन्यवाद किया और फिर उस गरीब अमर को याद किया जिस की वजह से उस की जान बच गई | सेठ घनश्यामदास ने तुरंत अपना आदमी भेज कर अमर को बुलवाया| अमर बेचारा डर गया पता नहीं सेठ ने क्यों बुलाया है? जब बुलावा आया ही था तो जाना ही था | अमर सेठ घनश्यामदास के घर गया और  हाथ जोड़ कर खड़ा  हो गया | सेठ घनश्यामदास ने उस की अच्छी तरह से खातिरदारी  की और बताया की किस तरह आज अमर के कहे शब्दों  ने घनश्यामदास की जान बचाई| सेठ घनश्यामदास ने अमर को खूब सारा धन दिया और उसका  धन्यवाद किया| अमर ने  सेठ घनश्याम दास को आशीर्वाद दिया और अपने घर आ कर आराम से अपनी जिन्दगी बसर करने लगा|                                  के. आर. जोशी (पाटली)


Saturday, January 5, 2013

कर्म ही कर्तव्य है


              मानव-जीवन पाकर भी, भगवत्प्राप्ति का उद्देश्य समझकर भी मनुष्य दिग्भ्रमित क्यों रहता है? क्या जीवन उसे उसकी इच्छा से प्राप्त हुआ है? अमुक वंश या अमुक जाति में जन्म पाना मनुष्य के बस की बात नहीं है| फिर क्यों न मनुष्य जहाँ प्रभु की इच्छासे जीवन जीने का स्थान मिला, उसे ही अपनी कर्मभूमि समझ अपने योग्यतानुसार प्रभु कार्य में लगाकर अपना जीवन सफल करने का प्रयास करे|
                मनुष्य को जो कुछ भगवान ने दिया है उसके प्रति आभार ब्यक्त करने की अपेक्षा जो नहीं मिला उसे लेकर वह चिंतित तथा दु:खी रहता है|  भौतिक सुख-साधनों को सर्वोपरि  समझ कर परमार्थ को भूल जाता है| अपने जिम्मे आये कार्यों  को करना नहीं चाहता| केवल भोग भोगना चाहता है, कितनी बड़ी मूर्खता  करता है|
                एक किसान हल चलाता  और खेत की मिटटी को नरम कर उसमें बीज  डालता है| उसके पश्चात् प्राकृत या परमात्मा के अनुग्रह से फसल होती है तथा फल भी प्राप्त होता है| यदि भाग्य में नहीं होता तो वर्षा न होने या कम होने से लाभसे वंचित भी रह जाता है| मगर यदि मेहनत नहीं करेगा, बीज  नहीं बोएगा तो  कितनी ही अच्छी वर्षा से फल लाभ     दायक नहीं हो सकता | ईश्वर की सहायता भी तभी फली भूत होती है जब हम ने अपना कार्य किया हो| केवल आशावादी बनकर कर्म-विमुख जीवन निरर्थक है| बिना बीज बोए तो अनपेक्षित झाड़-झंखाड़ ही पैदा होंगे और शेष जीवन उन झाड़ियों के उखाड़ फेंकने में ही बीत जाएगा|