Friday, January 28, 2011

कीमती उपहार

           एक राजा था| एक बार राजा अपने राजमहल के बगीचे में सैर कर रहा था| उसने देखा कि कोई आदमी दरवाजे पर खड़ा है| उसने दरवान से कहा कि वह उस आदमी के बारे में पता करे वह दरवाजे पर क्यों खड़ा है| दरवान ने दरवाजा खोला तो देखा एक आदमी एक मोटी ताज़ी मुर्गी लिए खड़ा था| दरवान ने उस आदमी से आने का कारण पूछा तो आदमी ने कहा, मैं राजा को यह मुर्गी देने आया हूँ| दरवान ने आदमी को राजा से मिलवा दिया| आदमी बोला, राजा जी राजा जी मैं ने आप के नाम पर यह मुर्गी जीती है| यह मैं आप को देने आया हूँ| राजा ने कहा इसको मेरे मुर्गी खाने में देदो| आदमी मुर्गी देकर चला गया| कुछ दिनों बाद वह आदमी फिर से आया | इस बार वह अपने साथ एक बकरी लेकर आया था| उसने राजा से कहा राजा जी राजा जी इस बार में ने आप के नाम पर यह बकरी लगाई थी और मैं जीत गया| यह बकरी मैं आप को देने आया हूँ| राजा बहुत खुश हुवा| उसने कहा इस बकरी को मेरे बकरियों के झुण्ड में शामिल कर दो| वह आदमी बकरी देकर चला गया| वह आदमी कुछ हफ़्तों बाद फिर  राजा के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया इस बार उसके साथ  दो आदमी और थे| दरवान ने उसको फिर राजा को मिलवा दिया| राजा ने आदमी से पूछा इसबार मेरे लिए क्या ले कर आये  हो, और तुम्हारे साथ ये दोनों कौन हैं| आदमी ने राजा से कहा, राजा जी राजा जी इस बार मैंने आपके नाम पर ५०० चाँदी के सिक्के लगाये थे और मैं हार गया हूँ| अब इन लोगों को ५०० चाँदी के सिक्के देने हैं| यह सुन कर राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया| पर वह उनको मना भी नहीं कर सकता था| क्यूँ कि उसने लेते  समय मना नहीं किया था|  उसने उन दोनों आदमियों को चाँदी के सिक्के देकर जाने को कह दिया| फिर राजा ने उस जुआरी आदमी से कहा आज के बाद तुम मेरे नाम पर  कोई दाव नहीं लगाओगे, और ना ही कभी मेरे दरवाजे पर दिखोगे| इस तरह राजा को अपनी गलती की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी|  इस लिए बगैर सोचे समझे किसी से कोई चीज नहीं लेनी चाहिए|

Saturday, January 22, 2011

रस्सी का जादू

        एक गांव में एक किसान रहता था| किसान के तीन बेटे थे और तीन बहुएं थीं| किसान के पास थोड़ी बहुत जमीन थी जिस में मेहनत कर के किसान की रोजी  रोटी चलती थी| एक साल सूखे के कारण फसल नहीं हुई | किसान ने सोचा शहर में जाकर मेहनत मजदूरी कर के रोटी का जुगाड़ किया जाए| किसान  अपने परिवार को साथ लेकर शहर की तरफ चल दिया| दिन में जब धूप तेज हो गई तो किसान ने सोचा कुछ देर के लिए किसी पेड़ के नीचे बैठा जाए| वे एक घनी छाया वाले बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए| किसान ने सोचा कि खाली बैठने से भला कोई काम कर लिया जाए| उसने अपने एक बेटे से कहा कि तुम जाकर जूट ले आओ, दूसरे बेटे से कहा तुम कहीं से सब्जी ले आओ, तीसरे बेटे से कहा तुम  कहीं से खाने का बाकी सामान ले आओ| किसान ने अपनी बहुओं को भी काम पर लगा  दिया| एक को कहा तुम पानी ले आओ , दूसरी से कहा तुम लकड़ी ले आओ, तीसरी से कहा तुम आटा गूंध लो| सब अपने अपने काम पर लग गए| जूट  आने पर किसान रस्सी बनाने में लग गया| जिस   पेड़ के नीचे वे बैठे थे उस पेड़ में एक दानव  रहता था| दानव यह सब कुछ देख रहाथा| उसे रस्सी के बारे में कुछ समझ नहीं आई| वह पेड़ से नीचे उतरा और किसान से पूछने लगा आप इस रस्सी से क्या करोगे? किसान कुछ नहीं बोला अपना काम करता रहा| दानव ने फिर किसान से पूछा :आप यह रस्सी क्यूँ बना रहे हैं| किसान ने कहा तुम्हें बांधने के लिए| यह सुन कर दानव डर गया और बोला आप को जो कुछ भी चाहिए मैं देने को तैयार  हूँ| आप मुझे छोड़ दीजिए| यह सुन कर किसान ने कहा मुझे अभी एक  बक्सा सोने का भरा हुवा देदो तो में तुम्हें छोड़ दूंगा| दानव उसी समय एक बक्सा सोने से भरा हुवा ले आया और किसान से बोला  ये लो सोने से भरा बक्सा और यहाँ से चले जाओ| किसान ने सोने का बक्सा लिया और गांव की तरफ चल दिया| किसान के दिन  अच्छे कटने  लग गए| किसान के ठाट बाट देख कर उसके पडोसी ने इसके बारे में जानना चाहा तो किसान ने सारा किस्सा पडोसी किसान को बतादिया| पडोसी किसान लालच में आ गया| उस ने भी यह तरकीब अपनाने की सोची| वह अपने सारे परिवार के साथ चल दिया| उसी पेड़ के नीचे वह भी जा बैठा जिस पेड़ में दानव रहता था| पडोसी किसान ने अपने बेटे से कहा कि तुम कहीं से जूट ले आओ,दूसरे बेटे से कहा तुम कहीं से सब्जी ले आओ, तीसरे बेटे से कहा तुम खाने का बाकी सामान ले आओ|  फिर उसने अपनी बहुओं को भी कहा कि तुम पानी ले आओ,तुम लकड़ी ले आओ और तुम आटा गूंध लो| पर किसी ने भी पडोसी किसान की नहीं सुनी सब अपने में ही मस्त थे| आखिर में किसान खुद ही सारा काम करके रस्सी बनाने  में लग गाया| दानव यह सब कुछ  देख रहा था| कुछ देर में दानव किसान के पास आया और बोला- तुम यह रस्सी किस लिए बना रहे हो| किसान ने सोचा दानव डर गया है| किसान हँसते हुए बोला तुम डर  गए हो! यह रस्सी में तुम्हें बांधने के लिए ही बना रहा हूँ| इसपर दानव जोर से हंसा और बोला -तुम्हारा अपना परिवार तो तुम से नहीं डरता है में तुम से क्या डरूंगा| पहले अपने परिवार को बांध लो फिर किसी  को बांधना| यह कह कर दानव पेड़ में चला गया| लालची किसान अपना सा मुंह ले कर गांव को लौट गया| इस लिए आदमी को चाहिए कि वह पहले अपने परिवार को आज्ञा करी बनाए  फिर दूसरे से कोई उमीद करे|


Monday, January 17, 2011

"जिस का काम उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे"

किसी गांव मे एक गरीब घोबी  रहता था| धोबी के पास एक गधा था और एक कुत्ता था| दोनों धोबी के साथ रोज सुबह  धोबी घाट जाया करते थे| शाम  को घर आया करते थे| धोबी का गधा शांत स्वभाव का था और स्वामी भक्त भी था| लेकिन धोबी का कुत्ता आलसी और कृत्घन था | गधा अपना काम पूरी लगन के साथ करता था| जब सुबह धोबी धोबीघाट को जाता था तो सारे कपडे गधे पर लाद  के लेजाता था और शाम को गधे पर ही कपडे लाद  कर लाया करता था | कभी कभी तो धोबी जब थका होता था तो खुद भी गधे पर बैठ जाया करता था| दिन भर गधा धोबी घाट के नजदीक हरी हरी घास चारा करता था | धोबी का कुत्ता सारा दिन धोबी घाट मे सोया ही रहता था | एक दिन गधे ने कुत्ते से पूछा की तुम भी मालिक के लिए कोई काम क्यूँ  नहीं करते? कुत्ते ने जवाब दिया कि मालिक कौन सा हमें पेट भर के खाना देता है | अपना बचा खुचा खाना हमें डाल देता है| इतना कह कर कुत्ता फिर से सोगया | एक दिन धोबी के घर मे कोई चोर घुस आया| चोर को आते हुए कुत्ते ने देख लिया था पर कुत्ता भौका नहीं | उधर गधे ने भी चोर को देख लिया था | गधे ने कुत्ते से कहा की इस समय तुम्हारा फर्ज बनाता है कि तुम भौक  कर मालिक को जगाओ ताकि मालिक को पता चल सके कि चोर आया है| कुत्ते ने कहा मालिक सो रहा है जगाने पर मारेगा | गधे ने कहा कि क्यूँ मारेगा हम तो उसका फ़ायदा कर रहे है| कुत्ता इस बात के लिए नहीं माना| गधे से रहा नहीं गया और खुद रैकना शुरू कर दिया| आधी रात को गधे के रेकने पर धोबी को गुस्सा  आ गया | धोबी उठा उसने डंडा उठा कर तीन चार  डंडे गधे को जड़ दिए और सो गया| धोबी के सो जाने के बाद कुत्ते ने गधे से कहा देखा मे कहता था न कि मालिक मारेगा | फिर  उसने बताया कि "जिस का काम उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे  " इस पर  गधे ने कहा भाई  तुम ठीक थे मे ही गलत था |

Tuesday, January 4, 2011

कछुआ और गरुड़

           एक  कछुआ  यह  सोच  कर बड़ा दुखी रहता था कि पक्षिगन बड़ी आसानी से आकाशमें उड़ सकते हैं, परन्तु में नहीं उड़ पाता| वह मन ही मन सोच-विचारकर इस नतीजे पर पहुंचा कि यदि कोई मुझे एक बार भी आकाशमें पहुंचादे, तो फिर में भी पक्षियों के सामान ही उड़ते हुए सैर करूँगा| उसने एक गरुड़ पक्षी के पास जाकर कहा "अगर आप दया करके मुझे एक बार आकाश में पहुंचा दो, तो में समुन्द्र के नीचे पड़े सारे रत्न निकाल कर आप को दे दुँगा| " मुझे आकाश में उड़ते हुए सैर करने की बड़ी इच्छा हो रही है| कछुए की प्रार्थना सुनकर गरुड़  बोला "तुम जो चाहते हो उसका पूरा होना असम्भव है| जमीन पर चलने वाला प्राणी कभी आकाश में नहीं उड़ सकता| तुम  अपनी यह कामना को त्याग दो| यदि में तुम्हें आकाश में पहुंचा भी दूँ तो तुम उसी समय गिर जाओगे और हो सकता है इस से तुम्हारी मौत भी हो जाए"|
         परन्तु कछुआ नाहीं माना, उसने कहा- "बस एक बार आप मुझे ऊपर पहुंचा दो, मैं उड़ सकूँगा और उडूँगा, अगर नहीं उड़ सका तो गिर कर मर जाउगा| इसके लिए आप को चिंता करने की जरुरत नहीं है|" इस प्रकार कछुआ गरुड़ से बार बार अनुरोध करने लगा|
          तब गरूर ने हंस कर कछुए को उठा लिया और उसे काफी ऊंचाई पर पहुंचा दिया| उसके बाद गरुड़ ने कहा-अब तुम उड़ना शुरू करो' इतना कहकर गरुड़ ने कछुए को छोड़ दिया| उसके छोड़ते ही कछुआ एक पहाड़ी पर जा गारा और गिरते ही उसके प्राण चले गए| इसलिए आदमी को अपनी क्षमता के अनुसार ही इच्छा(कामना) रखनी चाहिए, नाहीं तो बहुत दुःख उठाने पड़ सकते हैं|