Thursday, October 28, 2010

'गौरवा और हाथी'

            एक जंगल में एक तमाल का पेड़ था| तमाल के पेड़ पर गौरवा  पक्षियों का एक जोड़ा रहता था| गौरवा के घौसले में  छोटे छोटे चार अंडे थे| अण्डों में से अभी बच्चे निकल भी नहीं पाए थे कि एक दिन एक मतवाले हाथी ने पेड़ की शाखाओं को तोड़ डाला,जिस पर गौरवा पक्षियों का घौसला था| पक्षी खुद तो बच गए पर सारे अंडे फूट गए|
गौरवी व्यथित ह्रदय से रोने लगी, उसे किसी प्रकार से शांति नहीं मिली| गौरवा का एक मित्र था कठफोड़वा| गौरवा को रोते  देख कर कठफोड़वा उसके नजदीक जाकर उसको तसल्ली देने लगा| गौरवा ने कहा उस दुष्ट ने हमारे घौसले को तोड़ दिया और सारे अण्डों को फोड़ डाला| उसे दंड दिए बिना मेरे मन को शांति नहीं मिलेगी|
कठफोड़वा ने कहा हम उस हाथी के सामने बहुत छोटे हैं, परन्तु संगठन में बड़ी ताकत होती है| हम लोग मिल कर प्रयास कर के उस से बदला ले सकते हैं| मेरी एक सहेली  है मधु मक्खी, मैं उस से भी सहायता करने को कहूँगा |
      गौरवा को आश्वासन दे कर कठफोड़वा मधु मक्खी  के पास गया| उसने गौरवा की सारी कहानी उस को सुना दी| सुन कर मधु मक्खी  भी सहायता के लिए तैयार  हो गई| मधु मक्खी  ने कहा कि पहले मेरे मित्र मेढक के पास चलना होगा वह काफी बुद्धिमान है | उसकी योजना से हम हाथी को जरुर  कोई दंड दे सकते हैं| और वे दोनों मेढक के पास चले गए|
      कठफोड़वा ओर मधु मक्खी  ने  मेढक  को गौरवा की सारी कहानी बताई तो मेढक ने कहा संगठन के समक्ष वह हाथी क्या चीज है? इस के लिए आप सब मेरी योजना अनुसार काम करें| मेढक ने बताया कल दोपहर को मधु मक्खी  हाथी के कान के पास जाकर वीणा जैसी मधुर धुन में गाएगी, जिसे सुन कर हाथी मुग्ध हो जाएगा और अपनी आँखें बंद कर लेगा| ठीक उसी समय  कठफोड़वा हाथी की  दोनों आँखोंको अपनी तेज चौंच से फोड़ देगा| अँधा हाथी जब प्यास से ब्याकुल होगा तो मैं एक बड़े गढ्ढे के पास से अपने परिवार के साथ टर्र टर्र की आवाज करूँगा,जिस से उसको जल का भ्रम होगा और वह उधर को भागेगा और  वह गढ्ढे में गिर जाएगा|
        अगले दिन उन सबने इसी प्रकार योजनाबध्द ढंग से हाथी को अँधा कर के गढ्ढे में गिरा दिया और वह हाथी बाहर नहीं निकल सका| भूख प्यास से तड़प कर वहीँ मर गया| इसी लिए कहते हैं कि संगठन में बड़ी ताकत होती है| संगठन से काम करने पर बड़े से बड़ा काम भी संभव हो जाता है|

Wednesday, October 20, 2010

" भेड़िया और बकरी"

एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे| उनमें एक भेड़िया भी था| भेड़िया अपने आप को काफी चालाक समझता था| एक दिन जंगल में काफी दौड़ धूप करने के बाद भी भेड़िए को कुछ खाने को नहीं मिला | थक हार कर वह एक पत्थर पर बैठ गया| बैठे बैठे ही उसकी नजर एक बकरी पर पड़ गयी जो एक ऊँची और फिसलन वाली पहाड़ी पर घास चर रही थी| भेड़िये ने सोचा फिसलन वाली पहाड़ी पर चढ़ना  तो मुश्किल है,पर बकरी को कोई लालच दे कर नीचे बुलाया जा सकता है, और भोजन की ब्यवस्था हो सकती है| वह उठा और उस फिसलन वाली पहाड़ी के नजदीक पहुँच गया| वहां पहुच कर उसने बकरी को आवाज दी "बकरी बहिन  बकरी बहिन " तुम गलती से ऊँची और फिसलन भरी पहाड़ी पर चढ़ गई हो यहाँ से तुम फिसल कर नीचे गिर जाओगी वापिस आ जाओ | बकरी ने उसकी बात अनसुनी  कर दी और घास चरती रही| भेड़िए ने सोचा बकरी को मेरी आवाज सुनाई नहीं दी| भेड़िए ने फिर दुबारा बकरी को जोर से  आवाज दी "बकरी बहिन बकरी बहिन" नीचे उतर आओ तुम फिसलन भरी पहाड़ी पर चढ़ गई हो यहाँ से तुम फिसल कर नीचे गिर जाओगी| बकरी ने फिर कोई जवाब नहीं दिया| चरने में ही मस्त रही| भेड़िए ने सोचा की बकरी तो हरी हरी घास खाने में ही ब्यस्त है उसको मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है| उसने और ऊँची आवाज में कहा "बकरी बहिन बकरी बहिन"नीचे उतर आओ तुम फिसलन भरी पहाड़ी पर चढ़ गई हो, यहाँ से तुम फिसल कर नीचे गिर जाओगी| और ऊपर  ठण्ड भी बहुत है | ऊपर  की घास से तो नीचे की घास बहुत मीठी है| इस बार बकरी से रहा नहीं गया और उसने जवाब दिया कि तुम्हें मेरे खाने की चिंता हो रही है या अपने खाने की| में जहाँ भी चर रही हूँ ठीक चर रही हूँ| बकरी का जवाब सुन कर भेड़िया समझ गया कि यहाँ मेरी दाल गलने वाली नहीं है, चुप चाप जंगल की ओर चला गया| इसी लिए कहते हैं कि किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए| 

Saturday, October 9, 2010

"एक से भले दो "

            किसी गांव में एक ब्राहमण  रहता था| एक बार किसी कार्यवश ब्राहमण  को  किसी दूसरे गांव जाना था| उसकी माँ ने उस से कहा कि किसी को साथ लेले क्यूँ कि रास्ता जंगल का था| ब्राहमण ने कहा माँ! तुम डरो मत,मैं अकेला ही चला जाऊंगा क्यों  कि कोई साथी मिला नहीं है| माँ ने उसका यह निश्चय जानकर कि वह अकेले ही जा रहा है पास की एक नदी  से माँ एक केकड़ा पकड कर ले आई और बेटे को देते हुए बोली कि बेटा अगर तुम्हारा वहां जाना आवश्यक है तो इस केकड़े को ही साथ के लिए लेलो|  एक से भले दो| यह तुम्हारा सहायक सिध्द होगा| पहले तो ब्राहमण को केकड़ा साथ लेजाना अच्छा नहीं लगा, वह सोचने लगा कि केकड़ा मेरी क्या सहायता कर सकता है| फिर माँ की बात को आज्ञांरूप मान कर उसने पास पड़ी एक डिब्बी में केकड़े को रख लिया| यह डब्बी कपूर की थी| उसने इस को अपने झोले में डाल लिया और अपनी यात्रा के लिए चल पड़ा|
                   कुछ दूर जाने के बाद धूप काफी तेज हो गई| गर्मी और धूप से परेशान होकर वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा| पेड़ की ठंडी छाया में उसे जल्दी ही नींद  भी आगई| उस पेड़ के कोटर  में एक सांप भी रहता था| ब्राहमण  को सोता देख कर वह उसे डसने के लिए कोटर से बाहर निकला| जब वह ब्राहमण  के करीब आया तो उसे कपूर की सुगंध आने लगी| वह ब्राहमण  के बजाय झोले में रखे केकड़े वाली डिब्बी की तरफ हो लिया|उसने जब डब्बी को खाने के लिए झपटा मारा तो डब्बी टूट गई जिस से केकड़ा बाहर आ गया और डिब्बी सांप के दांतों में अटक गई केकड़े ने मौका पाकर सांप  को गर्दन से पकड़ कर अपने तेज नाखूनों से कस लिया|सांप वहीँ पर ढेर  हो गया| उधर नींद खुलने पर ब्राहमण  ने देखा की पास में ही एक सांप मारा पड़ा है| उसके दांतों में डिबिया देख कर वह समझ गया कि इसे केकड़े ने ही मारा है| वह सोचने  लगा कि माँ की आज्ञां मान लेने के कारण आज मेरे प्राणों की रक्षा हो गई, नहीं तो यह सांप मुझे जिन्दा नहीं छोड़ता| इस लिए हमें अपने बड़े, माता ,पिता और गुरु जनों की आज्ञां का पालन जरुर करना चाहिए|                                  के: आर: जोशी.   (पाटली)