Tuesday, March 29, 2011

सियार और गधा


           एक समय की बात है एक गधा एक धोबी के पास रहता था| धोबी उसपर  कपडे लाद कर रोज नदी किनारे कपडे  धोने जाया करता था| दिन में खाली समय में गधा नदी किनारे की घास खाया करता था| एक दिन वहां कहीं से एक सियार आ गया| सियार और गधा आपस में बातें करने लगे| कुछ ही दिनों में दोनों की दोस्ती पक्की हो गई| दोनों आस पास घूमने जाया करते थे|  एक दिन घूमते घूमते दोनों एक फारम में चले गए| फारम में हरी हरी ककड़ीयां  देख कर उनके मुंह में पानी आ गया| दिन के समय में माली के रहते ककड़ी खाना बहुत मुश्किल था इस लिए दोनों वापस आगए| रास्ते में आते आते उन्हों ने फैसला किया कि रात में आ कर ककड़ियों का स्वाद लिया जाए| अगले दिन ही रात में गधा और सियार दोनों ककड़ी के फारम में जा पहुंचे| उन्हें ककड़िया बहुत स्वाद लगी| खूब भर पेट खाने के बाद गधे कि नज़र आसमान की ओर गई जहाँ पूर्णिमा का चाँद खिला हुआ था| चाँद को देखते ही गधे का मन गाना गाने को मचलने लगा| गधे ने सियार से कहा "देखो कितना सुन्दर दिख रहा है चंद्रमा | ऐसे में मेरा जी गाने को कर रहा है| सियार ने कहा ऐसा हरगिज मत करना नहीं तो हम मुसीबत में फंस जाएँगे| माली तुम्हारे गाने को सुनकर जाग जाएगा| तुम्हारी आवाज भी काफी ऊँची होती है| गधे ने कहा तुम गाने के बारे में क्या जानो| गाना कब गाया जाता है| इतने सुन्दर मौसम को में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता हूँ| में तो गाना गाऊंगा| सियार समझ गाया की गधा अब मानने वाला नहीं है| उस ने कहा ठीक है जब आप गाना ही चाहते हैं तो में बहार गेट पर चला जाता हूँ ओर माली का ख्याल रखता हूँ| जब माली आएगा तो में आप को सावधान कर दूंगा| सियार गेट से बहार आ गाया| गधे ने अपनी ऊँची आवाज में गाना शुरू  कर दिया| गधे की आवाज सुन कर माली वहां आ गाया| माली ने गधे की डंडे से  खूब पिटाई की| मार की वजह से गधा वहीँ गिर पड़ा| होश आने पर गधा बहार आया जहाँ सियार उसका इंतजार कर रहा था| गधे को देखते ही सियार हँसते हुए बोला "आप ने मेरी बात नहीं मानी और उसका आप को उपहार भी मिल गाया है|" गधे ने कराहते हुए कहा "मेंरी बेवकूफी का मखौल मत उडाओ में पहले ही बहुत शर्मिंदा हूँ  अपने प्यारे दोस्त की सलाह न मानाने पर|"फिर दोनों अपने गंतब्य की ओर चल दीए| इसी लिए कहते हैं कि अच्छे दोस्त की अच्छी बात मान लेने में ही भलाई है|   

Sunday, March 20, 2011

मोर की शिकायत


 किसी जंगल में बहुत  सारे पक्षी रहते थे|  उन में एक मोर भी रहता था| मोर के पंख बहुत सुन्दर थे| एक बार बारिष के समय में मोर अपने पंखों को फैला कर नाच रहा था और इधर उधर दौड़ रहा था| मोर अपने पंखों को देख देख कर बहुत खुश हो रहा था| पर थोड़ी ही देर में  मोर की ख़ुशी बारिष  में धुल गयी| उसने देखा कि सामने एक पेड़ पर एक  बुलबुल गा रही है और उसकी आवाज बहुत मीठी और सुरीली  है| मोर ने भी अपनी आवाज में गाने के लिए अपना मुंह खोला पर मोर की आवाज बहुत भद्दी और कठोर   थी| यह देख कर मोर बहुत उदास  हुआ और  अपना सर नीचे कर के आंशु  बहाने लग गया| मोर सोचने लगा  कि भगवान ने मेरे साथ अन्याय किया है मुझे सुन्दर पंख तो दिए हैं पर सुन्दर आवाज नहीं दी| बाकि पक्षियों को इतनी सुन्दर सुरीली आवाज दे रक्खी है | मोर को आंशु बहाते देख कर एक देवी को दया आ गयी और वह वहां  प्रकट हो गयी और मोर को सांत्वना  देते हुए बोली कि तुम इतने उदास क्यूँ हो रहे हो, भगवान ने तो सब को उनके हिस्से मुताबिक सुन्दरता निर्धारित की है| अगर भगवान ने बुलबुल को मीठी आवाज दी है तो उसके पंख काले हैं| तुम्हारी आवाज कठोर  है तो तुम्हारे  पंख सुन्दर  हैं| देवी की बातों को सुन कर  मोर ने सोचा देवी ठीक ही कह रही है|  और उसके बाद मोर ने उसी में खुश रहना सीख लिया था, जो भगवान ने  मोर के लिए निर्धारित किया था| इसी लिए कहते हैं कि अपने  पास जितना है उसी में संतुष्ट रहना सिखाना चाहिए|







                 

Saturday, March 12, 2011

शारीरिक बल से उपाय श्रेष्ट है

           किसी बनमें बरगद का एक विशाल वृक्ष था| उसकी घनी  शाखाओं पर अनेक पक्षी रहा करते थे| उन्हीं में से एक शाख पर एक काक दम्पति रहता था और वृक्ष के  ही खोखले में एक कला सांप रहता था| जब भी मादा कौआ  अंडे देती  तो वह उन्हें खा जाया करता था | कौए के अण्डों को खा जाना उस दुष्ट सर्प का स्वभाव बन गया था| काक दम्पति उसके इस आचरण से बहुत दुखी रहता था, परन्तु उन्हें इसका कोई उपाय नहीं सूझता था|
           एक दिन वे दोनों अपने मित्र श्रृगाल के पास गए और उस से अपना दुःख कहते हुए रो पड़े| उनके करुण वृतान्त को सुन कर श्रृगाल भी बहुत दुखी हुआ और बोला-"मित्र ! चिंता करने से कुछ नहीं होगा| हम इस दुष्ट सर्प को शारीरिक बल से तो नहीं जीत सकते , क्यूंकि उसके बिषदन्त का ही प्रहार हमें यमलोक का रही बना देगा| परन्तु किसी उपाय या युक्ति से काम बन सकता है| मैं तुम्हें ऐसा उपाय बताऊंगा, जिस से तुम्हारा शत्रु अवश्य ही मारा जाएगा|
           इस पर काक ने कहा- हे मित्र !शीघ्र वह उपाय बतलाओ; क्योंकि वह दुष्ट सर्प मेरी वंश -परम्परा का ही लोप करने पर तुला हुआ है| श्रृगाल ने कहा-तुम किसी रजा की राजधानी में चले जाओ, वहां किसी धनि ब्यक्ति, राजा अथवा मंत्री की सोने की लड़ी या हर लाकर उस दुष्ट सर्प के खोखले में डाल दो| उस हार को खोजते हुए राजसेवक आकर काले सांप को मार डालेंगे और हार भी लेजाएँगे| इस प्रकार तुम्हारा बैरी मारा जाएगा|
          यह सुन कर वे दोनों नगर की और उड़े, वहां राज सरोबर में अन्तःपुर की स्त्रियाँ जलक्रीडा कर रही थीं|
उनके आभूषण किनारे रक्खे हुए थे और राज सेवक उनकी निगरानी कर रहे थे| राजपुरुषों को असावधान  देख कर कौए की स्त्री ने एक झपट्टे में ही रानी का हार उठाया और अपने घोंसले  की तरफ उड़ गयी| कौए की स्त्री को हार ले जाते देख कर राजपुरुष भी शोर मचाते हुए उन के पीछे पीछे दौड़ पड़े, परन्तु आकाशमार्ग से जाती हुई उसे वे कैसे पकड़ सकते थे? उसने हार लेजाकर सांप के खोखले में डाल दिया और स्वयं दूर एक पेड़ पर बैठ गई| राजपुरुषों ने उसे हार को खोखले में डालते हुए देख लिया था| जब वे वहां पहुचे तो उन्हों ने फन उठाये एक काले सांप को देखा| फिर क्या था ? डंडों के प्रहार से राज पुरुषों ने उस काले सर्प को मार डाला और हार लेकर चले गए| काक-दम्पति ने भी श्रृगाल को उसके बुद्धि चातुर्य के लिए धन्यवाद किया और फिर वे दोनों निश्चिन्त हो आनंदपूर्वक रहने लगे|
           इसीलिए कहा गया है कि "बलवान को उपाय से ही जितना चाहिए"|

Friday, March 4, 2011

जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता है स्वयं ही गढ्ढे में गिर जाता है|

            एक जंगल में बहुत सारे पशु पक्षी रहते थे|  एक बार एक कुत्ते और एक मुर्गे के बीच काफी प्रेम बढ़ गया| दोनों एक दूसरे की सहायता करते रहते थे|  एक दिन दोनों साथ मिल कर जंगल के बीच घूमने गए| घूमते घूमते उन्हें रात हो गयी|  रात बिताने के लिए मुर्गा एक वृक्ष की शाख पर चढ़ गया और कुत्ता उसी वृक्ष के निचे लेट गया|
           धीरे धीरे  भोर होने को आयी|  मुर्गे का स्वभाव है कि वह भोर के समय जोर की आवाज में बांग देता है| मुर्गे की बांग देने की आवाज सुन कर एक सियार ने मन ही मन सोचा आज कोई न कोई उपाय कर के इस मुर्गे को मार कर इसका  मांस खा जाऊगा|  ऐसा निश्चय कर के धूर्त सियार वृक्ष के पास जाकर मुर्गे को संबोधित करते हुए बोला-भाई तुम कितने भले हो; तुम्हारी आवाज कितनी मीठी है, सब का कितना उपकार करते हो| मैं तुम्हारी आवाज सुनकर बहुत प्रशन्न हो कर आया हूँ|  वृक्ष से नीचे उतर आओ, हम दोनों मिल कर थोडा आमोद प्रमोद करेंगे|
          मुर्गे को सियार की चालाकी समझ में आगई| सियार की चालाकी को समझ कर मुर्गे ने  उसकी धूर्तता का मजा चखाने की सोची और कहा-भाई सियार! तुम वृक्ष के निचे आकर  थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, में उतर रहा हूँ| यह सुन कर सियार ने सोचा, मेरा उपाय काम कर गया है| वह आनंदपूर्वक उस पेड़ के नीचे आगया, वहां कुत्ता पहले ही उसके इंतजार में बैठा हुआ था| जैसे ही सियार वृक्ष के नीचे आया कुत्ते ने उसपर आक्रमण कर दिया और अपने पंजे और दांतों से प्रहार कर के उसे मार डाला| इसी लिए कहते हैं जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता है स्वयं ही गढ्ढे में गिर जाता है|