बहुत समय पहले की बात है| एक नदी में एक मगरमच्छ का जोड़ा रहता था| नर और मादा मगरमच्छ| नर मगरमच्छ रोज सुबह सुबह धूप सेकने के लिए नदी के किनारे पर आ जाया करता था| मादा मगरमच्छ नदी के बीच में ही रहा करती थी| नदी के किनारे पर बहुत सारे जामुन के पेड़ थे| मौसम आने पर ये पेड़ काले काले मीठे जामुनों से लद जाते थे| इन जामुनों को खाने के लिए एक बन्दर भी वहां आता था| बन्दर और मगरमच्छ रोज मिला करते थे| धीरे धीरे बन्दर और मगरमच्छ में घनिष्ट दोस्ती हो गई| बन्दर मगरमच्छ के लिए मीठे रसीले जामुन तोड़ कर लाया करता था| दोनों बैठे आराम से जामुनों का मजा लेते थे| एक दिन बन्दर बहुत सारे जामुन तोड़ कर लाया और मगरमच्छ से कहा आज इन जामुनों को भाभी जी के लिए लेकर जाना| भाभी जी इन्हें खा कर बहुत खुश होंगी| मगरमच्छ ने जामुन लिए और सीधे मादा मगरमच्छ के पास चला गया| मादा मगरमच्छ मीठे जामुनों का स्वाद लेकर बहुत खुश हुई| खाते खाते उस के दिमाग में आया की अगर ये जामुन इतने मीठे हैं तो इन जामुनों को रोज खाने वाले बन्दर का जिगर कितना मीठा नहीं होगा| उसने मगरमच्छ से कहा मुझे बन्दर के जिगर का नाश्ता करना है| मुझे बन्दर का जिगर चाहिए| सुनते ही मगरमच्छ ने कहा " तुम्हारा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया वह तो मेरा पक्का दोस्त है"| दोस्त से गद्दारी करना ठीक नहीं| पर मादा मगरमच्छ ने उसकी एक भी नहीं सुनी| मादा मगरमच्छ ने खाना पीना भी छोड़ दिया| नर मगरमच्छ ने बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी| आखिर में नर मगरमच्छ को ही मानना पड़ा| अगले दिन जब नर मगरमच्छ नदी के किनारे पर आया तो बन्दर भी आगया| मगरमच्छ ने बन्दर से कहा तुम्हारी भाभी ने तुम्हें धन्यवाद दिया है और नाश्ते पर बुलाया है| बन्दर ने बिना सोचे समझे हाँ कर दी, पर कहा की मुझे तो तैरना नहीं आता है| में कैसे जाऊंगा| मगरमच्छ ने कहा तुम मेरे पीठ पर बैठो में तुम्हें ले चलूँगा| बन्दर छलांग मारकर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया| मगरमच्छ उसको लेकर अपने घर की ओर चला गया| रास्ते में मगरमच्छ ने बन्दर को बताया की तेरी भाभी तेरा जिगर का नाश्ता करना चाहती है| मैं ने गलत कहता की तुम्हें नाश्ते पर बुलाया है| सुनते ही बन्दर अचम्भे में पड़ गया| कुछ सोचने के बाद बन्दर ने कहा " यह तो मेरा अहोभाग्य है की में किसी के काम आ सकूँ"| आप ने यह बात मुझे पहले नहीं बताई में अपना दिल सुरक्षा के तौर पर जामुन के पेड़ पर टांग कर आता हूँ| आप कहते तो उसे साथ लेते आता| मगरमच्छ ने कहा हम मुड़ जाते है तुम जिगर उतर कर ले आना| बन्दर ने कहा ठीक है| जैसे ही मगरमच्छ किनारे पर पहुंचा बन्दर ने छाल मारी और पेड़ पर चढ़ गया| ऊपर टहनी में बैठ कर बोला "अरे मुर्ख कोई बगैर जिगर के भी जी सकता है"| जैसे तुमने मुझे मूर्ख बनाया था वैसे ही मैंने तुम्हें मूर्ख बनाया है| अब जाओ फिर कभी लौट के यहाँ मत आना| (फोटो गूगल से)
आपने किसे मूर्ख बनाया? क्या सामान्य सीख देने के लिए पोस्ट की है या इसके द्वारा कोई सीख देना चाह रहे हैं?
ReplyDeleteय तो दादी मां की कहानी ही है। सीख देती। हमने भी बचपन में सुनी थी।
ReplyDeleteसंकट में अपने उचित निर्णय ही सही साबित होते है ! बचपन में इस कहानी को पढ़ा था !
ReplyDeleteअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteयह कहानी सबसे पुरानी याद कहानियों में है।
ReplyDeleteबहुत प्रेरणादायक कहानी !
ReplyDeletebahut rochak prastutikaran ke sath prastut kahani .badhai .
ReplyDeletemagarmachchh agar magarmachchhin ko bhi saath le aata to unke paas option hota ki jamun khayein ya jigar...ye bhi seekh milati hai ki jo cheej chahiye usake paas jaiye...usake khud-b-khud aane ka intzaar na karein...
ReplyDeleteमजेदार कहानी ....अच्छी बात बताती
ReplyDeleteमजेदार कहानी .... जो कभी नहीं भूलती....
ReplyDeleteमजेदार कहानी
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को भगवान हनुमान जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteअंत में :-
श्री राम जय राम जय राम
हारे राम हारे राम हारे राम
हनुमान जी की तरह जप्ते जाओ
अपनी सारी समस्या दूर करते जाओ
!! शुभ हनुमान जयंती !!
आप भी सादर आमंत्रित हैं,
भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ
भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteबहुत मजेदार कहानी
ReplyDeleteये तो मैंने पहले सुन रखी है ... मुझे नई कहानी चाहिए ...
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