किसी जंगल में एक भील रहता था| वह बहुत साहसी,वीर और श्रेष्ट धनुर्धर था| वह नित्य प्रति बन्य जीव जन्तुओं का शिकार करता था और उस से अपनी आजीविका चलता था तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था| एक दिन वह बन में शिकार करने गया हुआ था तो उसे काले रंग का एक विशालकाय जंगली सूअर दिखाई दिया| उसे देख कर भील ने धनुष को कान तक खिंच कर एक तीक्ष्ण बाण से उस पर प्रहार किया| बाण की चोट से घायल सूअर ने क्रुद्ध हो कर साक्षात् यमराज के सामान उस भील पर बड़े वेग से आक्रमण किया और उसे संभलने का अवसर दिए बिना ही अपने दांतों से उसका पेट फाड़ दिया| भील का वहीँ काम तमाम हो गया और वह मर कर भूमि पर गिर पड़ा| सूअर भी बाण के चोट से घायल हो गया था, बाण ने उसके मर्म स्थल को वेध दिया था अतः उस की भी वहीँ मृतु हो गयी| इस प्रकार शिकार और शिकारी दोनों भूमि पर धराशाइ हो गए|
उसी समय एक लोमड़ी वहां आगई जो भूख प्यास से ब्याकुल थी| सूअर और भील दोनों को मृत पड़ा देख कर वह प्रसन्न मन से सोचने लगी कि मेरा भाग्य अनुकूल है, परमात्मा की कृपा से मुझे यह भोजन मिला है| अतः मुझे इसका धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिए, जिस से यह बहुत समय तक मेरे काम आसके|
ऐसा सोच कर वह पहले धनुष में लगी ताँत की बनी डोरी को ही खाने लगी| उस मुर्खने भील और सूअर के मांस के स्थान पर ताँत की डोरी को ही खाना शुरू कर दिया| थोड़ी ही देर में ताँत की रस्सी कट कर टूट गई, जिस से धनुष का अग्र भाग वेग पूर्वक उसके मुख के आन्तरिक भाग में टकराया और उसके मस्तक को फोड़ कर बहार निकल गया| इस प्रकार लोभ के बशीभूत हुयी लोमड़ी की भयानक एवं पीड़ा दायक मृत्यु हुई| इसी लिए कहते हैं कि अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए|
ye kahaniyaan jivan ko disha deti hain
ReplyDeleteसच कहा आपने।
ReplyDeletenamaskaar,
ReplyDeletebachpan yaad dila diyaa apane.
naye blog lekhakon ka bhi haunsala badhayen,ek nazae mere blog par bhi dalen.
krati-fourthpillar.blogspot.com
अनुकरणीय विचार.
ReplyDeleteसार्थक विचार.... अनुकरणीय
ReplyDeleteachha saar-sandesh
ReplyDeleteदिलचस्प और अच्छी कहानी....
ReplyDeleteअच्छी ज्ञान वर्धक कहानी
ReplyDeleteNice story...
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं ! मुझे अफ़सोस है कि मैं आपको पहले नहीं पढ़ सका ! हार्दिक शुभकामनायें स्वीकारें !!
ReplyDeleteज्ञानप्रद...हमेशा की तरह....सुन्दर...लोभ तो नहीं ही करना चाहिए...
ReplyDeleteshikshaprad ,laabhkari kisse ,ye nai raah dikhate hai hame .
ReplyDeleteतमाम ज्ञानीजन कहते आए हैं कि तृष्णा अनेक दुखों का कारण है। मगर,क्या पशु क्या मनुष्य-सब इसके वशीभूत हैं।
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती लघु कथा। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर संदेश देती प्रस्तुति बहुत पसन्द आई।
ReplyDeleteaapki kahaniyan vastav me hamesha se hi gyan vardhak v majedaar bhi rahi hi .lagta hai sach me dadi maa ke mukh se hi kahani sun rahi hun.
ReplyDeletebahut bahut dhanyvaad
poonam
Bahut achi hai ji chalaak lhomdi ki bewkufi sun kar bahut acha lega
ReplyDeleteBahut achi hai ji chalaak lhomdi ki bewkufi sun kar bahut acha lega
ReplyDeleteBahut achi hai ji chalaak lhomdi ki bewkufi sun kar bahut acha lega@/ my facebook id : gourvishnu37@gmail.com ! Plz add me ! No 8946866531
ReplyDeletegreat...knowledgeful story..thanks
ReplyDeleteBahut aacha
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